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राजधानी लाइव : पर्दे के पीछे की पॉलिटिक्स!… एनडीए का सच

डॉ. रमेश ठाकुर नई दिल्ली

सदन में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का दिया एक बयान चर्चाओं में है। उन्होंने कहा है कि आगामी आम चुनाव में इस बार भाजपा ३७० सीटें और एनडीए ४०० से ज्यादा सीटें जीतेगा! दरअसल, उनके इस गणित में कई सियासी राज छिपे हुए हैं। बयान सुनकर एनडीए में शामिल दल खासे परेशान हैं। हालांकि, वो खुलकर तो कुछ नहीं बोल रहे, लेकिन गुणा-भाग लगाकर डरे-सहमे हैं। वो इस सोच में पड़े हैं कि जब ३७० सीटें अकेली भाजपा ही जीतेगी तो बाकी दलों के हिस्से क्या मात्र ३० या ३५ सीटें ही आएंगी? जबकि, एनडीए में पहले से ३८ दल शामिल हैं और अब इसमें नीतिश कुमार का भी आगमन हो चुका है। इसके अलावा कुछ दल कतार में हैं। जैसे, आरएलडी, टीडीपी और अकाली दल भी एनडीए में दोबारा आने को बेताब हैं। इस हिसाब से एनडीए के दलों का आंकडा ३८ से बढ़कर ४० को पार करेगा। तो क्या सभी के हिस्से में मात्र एक-एक ही सीट आएगी और कुछ खाली हाथ ही रहेंगे? राजनीतिक पंडित कहते हैं कि इस बार भाजपा एनडीए में शामिल कई दलों को निगल जाएगी। कुछ दलों से तो गुप्त तरीकों से मोदी-शाह को बदला लेना है, जिसमें जेडीयू मुख्य है, वहीं ‘इंडिया’ गठबंधन प्रधानमंत्री के ३७० और ४०० सीटों वाले बयान को सिरे से नकार रहा है। उनका मानना है कि प्रधानमंत्री मनोवैज्ञानिक दबाव बनाने के लिए ये हथकंडा अपना रहे हैं। क्योंकि महाराष्ट्र, बंगाल, कर्नाटक, ओडिशा, जम्मू, दिल्ली, तेलंगाना, केरल व बिहार जैसे राज्य अभी भी भाजपा की पहुंच से दूर हैं। वैसे, देखा जाए तो इन राज्यों में स्थानीय दलों व कांग्रेस की पकड़ अच्छी है इसलिए भाजपा एनडीए का कुनबा बढ़ाना चाहती है।
प्रधानमंत्री उत्तर प्रदेश को लेकर भी काफी परेशान हैं। उन्हें लगता है कि जाट समुदाय उनका खेल बिगाड़ सकते हैं क्योंकि वह प्रधानमंत्री से नाराज हैं। तभी भाजपा ने जयंत चौधरी की रालोद पर भी डोरे डालने शुरू कर दिए हैं। पश्चिम यूपी को साधने में जयंत का साथ आना जरूरी है। कहते हैं कि दिल्ली का रास्ता सदैव उत्तर प्रदेश से होकर जाता है, जिसमें पश्चिम उत्तर प्रदेश की भूमिका अग्रणी होती है। सब जानते हैं कि पश्चिम यूपी में जाटों के बिना राजनीति संभव नहीं है। पिछले दस सालों में भाजपा ने महसूस किया है कि यूपी के जाट पूरी तरह से उसके साथ नहीं हैं। अभी लगभग आधे जाट रालोद में तो आधे इधर-उधर हैं। अब सारे जाटों को अपने साथ जोड़ने और सपा व ‘इंडिया’ गठबंधन का माकूल इलाज करने के लिए भाजपा ने एक बड़ा दांव खेला है। दरअसल सबसे पहले तो जयंत चौधरी की पार्टी को ‘इंडिया’ गठबंधन से अपनी ओर करने के लिए जयंत को भाजपा ने एनडीए में शामिल होने का ऑफर दिया है। विश्वसनीय सूत्रों के मुताबिक तमाम बातचीत हो चुकी है। रालोद को चार लोकसभा की सीटें, अगली केंद्र सरकार बनने पर जयंत को मंत्री पद, साथ ही यूपी में एक मंत्री पद का ऑफर देने की बात सामने आई है। इसके साथ ही संभावना है कि चौधरी चरण सिंह को भारत रत्न तथा जाटों को केंद्र में आरक्षण देने की पुरानी लंबित मांग को भी माना जा सकता है।
खबरें ऐसी आ रही हैं कि जयंत की अखिलेश से इस बात को लेकर नाराजगी है कि अखिलेश ने रालोद को दी सात सीटों में तीन पर सपा और सातवीं सीट फतेहपुर सीकरी पर कांग्रेस प्रत्याशी को देने की शर्त रखी है, इससे रालोद कार्यकर्ताओं, पदाधिकारियों और शुभचिंतकों में भारी रोष व्याप्त है साथ ही जयंत भी नाराज हैं। साल-२०२२ के यूपी चुनाव में भी अखिलेश ने जयंत को तीन दर्जन सीटें देकर रालोद के टिकट पर एक दर्जन सपा के प्रत्याशी लड़ाने के लिए मजबूर किया था। इसमें जाटों को अखिलेश की कुटिलता नजर आती है और उनको चौधरी अजीत सिंह और मुलायम सिंह यादव के आपसी टकराव की पुरानी बातें और घाव फिर ताजा होते दिखे। जाट ये भी नहीं भूले हैं कि जाट आरक्षण का सबसे ज्यादा विरोध यादव परिवार ने ही किया था। इस कारण २०२२ में जाट गठबंधन के बावजूद सपा को वोट देने की जगह बहुत बड़ी संख्या में भाजपा की तरफ चले गए थे।
गौरतलब है कि रालोद ने सबसे ज्यादा लोकसभा सीट २००९ में भाजपा गठबंधन में ही जीती थीं। उसके बाद तो पिता-पुत्र दोनों हार गए थे। जयंत जानते हैं कि अभी भी भाजपा के साथ मिलकर लड़ने से सभी सीटों पर जीत पक्की है।
बहरहाल, यूपी में सपा ही अब मुख्य विपक्षी दल है। इसलिए भाजपा सपा का तोड़ निकालना चाहती है। इसके लिए जयंत को समझाया गया है कि कालांतर में उत्तर प्रदेश का बंटवारा तो होना ही है। अत: चौधरी अजीत सिंह के हरित प्रदेश के सपने को भी भाजपा ही पूरा कर सकती है, इसमें जयंत को भविष्य में हरित प्रदेश का मुख्यमंत्री बनने की भी संभावना दिखाई देने लगी है। जाहिर है सपा हरित प्रदेश की भी विरोधी रही है और यदि यूपी का बंटवारा हुआ तो इसके बाद सपा का वजूद पश्चिमी उत्तर प्रदेश में तो समाप्त ही हो जाएगा। जनता में भी हरित प्रदेश का पूरा समर्थन है। राजनीति संभावनाओं का खेल है। मोदी असंभव और चौकाने वाले बड़े फैसले लेते हैं। अगले कुछ माह में बड़े-बड़े खेल होने तय हैं। जो आज यहां है, कल दूसरे पाले में चला जाए तो कोई आश्चर्य नहीं करना चाहिए। जिस तरह से उन्होंने कहा है उनका तीसरा कार्यकाल बड़े फैसलों के लिए होगा, तो उन बड़े फैसलों में यूपी को कई हिस्सों में बांटना भी शामिल रहेगा। फिलहाल, लोकसभा चुनाव में अभी एकाध महीने बचे हैं। इस दरम्यान बहुत सारे राजनैतिक ड्रामे देखने को मिलेंगे।
(उपरोक्त आलेख में व्यक्त विचार लेखक के निजी विचार हैं। अखबार इससे सहमत हो यह जरूरी नहीं है।)

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