राहुल गांधी, यह नाम प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के मुख पर हमेशा क्रोध, तमतमाहट, घबराहट और विरोध का भाव दर्शाता है। वर्तमान चुनाव में ४०० सीटें जीतने की सोच रखने के बाद भी वे राहुल गांधी के जिक्र के बिना भाषण पूरा नहीं कर पाते हैं। हमारे प्रधानमंत्री कभी ‘पप्पू’ कभी ‘शहजादे’ और न जाने क्या संबोधन करके केवल एक व्यक्ति से सबसे अधिक चिंतित या चिढ़े-चिढ़े से दिखते हैं और वह नाम है राहुल गांधी। इससे प्रतीत होता है कि राहुल गांधी केवल एक नाम मात्र नहीं, देश में सत्ता की गलतियों के खिलाफ मुद्दे लेकर सड़कों पर निकली हुई यात्राओं और आम लोगों की सामाजिक पीड़ाओं की आवाज का मजबूत आधार हैं। वे स्वयं न सत्ता में हैं न खुद कभी रहे। उनकी पार्टी की सत्ता जरूर रही। उनके पूर्वज सत्ता के शीर्ष पर रहे। इसलिए उनके पूर्वजों को लेकर उन पर भी खूब तंज कसा जाता है। परिवारवाद के आरोप लगाए जाते हैं। उनकी पार्टी का नाम लेकर अतीत की गलतियों और खामियों की सूची बना कर उसका पूरा दोषारोपण राहुल गांधी पर ही किया जाता है। दूसरी ओर राहुल गांधी हैं, जो यह सब लगातार बर्दाश्त करते हुए आम जनता के बीच सतत जुड़े हुए हैं। आम लोगों के बीच राहुल गांधी की सहज उपस्थिति को देखकर मुझे १९८४ और उसके बाद के वर्षों में राहुल के पिताजी दिवंगत राजीव गांधी के प्रधानमंत्रित्व काल के दिन याद आते हैं। राजीव गांधी की माताजी एवं देश की प्रथम महिला प्रधानमंत्री रहीं इंदिरा गांधी ने अपने वक्त में सारी दुनिया में भारत का नाम जगमगाया। यह उन्हीं की राजनीतिक और कूटनीतिक सफलता थी कि पाकिस्तान दो टुकड़ों में बिखर गया और बांग्लादेश एक अलग देश के रूप में स्थापित हुआ। इंदिरा गांधी की निर्मम हत्या के बाद कांग्रेस ने बहुत ही सूझ-बूझ और समझदारी से राजीव गांधी को प्रधानमंत्री का पद सौंपा। उसके बाद हुए चुनाव में राजीव गांधी ने लोकसभा की ५१४ सीटों में से ४१४ सीटें जीत कर सत्ता बनाई। यह एक रिकॉर्ड है। मुझे याद है कि प्रधानमंत्री बनने के बाद राजीव गांधी ने गांव-गांव, घर-घर पहुंचने का उपक्रम चलाया। सरकारी योजनाओं का जायजा लेने लोगों के बीच पहुंच जाया करते थे। मैंने मुंबई में कई सभाओं में पहुंचकर उनके कई भाषण सुने हैं। उनके भाषणों में साफगोई थी और चालाकियां नहीं थी। ठीक उसी तरह जिस तरह आजकल उनके सुपुत्र राहुल गांधी लोगों के बीच जाकर उनके दुख-तकलीफों, उनके हालात का जायजा लेते रहते हैं। राजनेताओं की यह सक्रियता उन्हें आम जनता से जोड़ती है और यह भी दर्शाती है कि वे जनता के दुख-तकलीफों से वाकई दिल से सरोकार रखते हैं। केवल दिखावे के लिए लच्छेदार भाषण और चुनावी वादों वाली जुमलेबाजी नहीं करते। मुझे याद है चार-पांच दशक पहले मालाड की हमारी चालियों में घूम-घूम कर उस वक्त की वरिष्ठ समाजवादी नेता मृणाल गोरे अक्सर लोगों का हाल-चाल पूछने आया करती थीं। वह हमारी बस्ती के लोगों के बीच बैठकर जलपान करते हुए उनसे सड़क, नाली, नल के पानी आदि के बारे में भी पूछताछ किया करती थीं। मुझे याद है हमारे नगरसेवक हर हफ्ते हमारी गली-गली में घूम-घूम कर लोगों से उनके हाल-चाल पूछा करते थे। उनके ही नेतृत्व में नालियों, नल के पाइपों, रास्तों आदि के कार्य के किए जाते थे। वे स्वयं वहां खड़े होकर वह काम करवाते थे। चार-पांच दशक पहले इस तरह के नेताओं को मैंने मुंबई में खुद लोगों के बीच सक्रिय देखा है। इसीलिए जब आज लोग माइक पर खड़े होकर थोथी घोषणाबाजी और जुमलेबाजी करते हैं तो मुझे उन बीते दिनों की याद आती है। जब मैं राहुल गांधी को आम जनता की तकलीफों, महंगाई-बेरोजगारी, किसानों की समस्याओं आदि पर चिंता करते देखती हूं तो लगता है कि यह व्यक्ति वाकई आम लोगों के दुख-तकलीफ को हल करने का माद्दा रखता है। सत्ता पर बैठे लोग जब आम जनता की तकलीफें, समस्याओं को दरकिनार करते हैं तो अफसोस भी होता है। हालांकि, जो कार्य सरकारी स्तर पर हो रहे हैं, वे तो हमेशा से होते आए हैं। मुफ्त अनाज वर्षों से लोगों को राशन कार्ड पर मिलता रहा है। देश के बुनियादी ढांचे को विकास की राह पर ले जाने के उपक्रम पहले भी खूब हुए हैं। इसीलिए भारत दुनिया के समकक्ष खड़ा है। हमें विकास की जड़ें मजबूत करने वालों, विकास की नींव रखने वालों और देश को सुविधा-संपन्न बनाने वालों के अतीत के कार्यों को झुठलाना नहीं चाहिए। राजनेताओं को आम जनता के बीच पहुंचकर उनके दुख-तकलीफों और समस्याओं की जानकारी सीधे लेनी चाहिए और उनके ठोस हल का प्रयत्न करना ही चाहिए।
राहुल गांधी ने कन्याकुमारी से कश्मीर तक लगभग ४,००० किलोमीटर तक की पदयात्रा की। यात्रा में उन्होंने आम आदमी, गरीबों, किसानों, युवाओं, बुजुर्गों, बेरोजगारों, महिलाओं सभी से मुलाकात की। उनकी तकलीफों को, उनकी जीवनशैली को, उनकी समस्याओं को जाना। उन्हें वैâसे हल किया जा सकता है, इस पर चर्चाएं कीं। इस यात्रा के माध्यम से उन्होंने लोगों से गहरा जुड़ाव बनाया और जनता ने भी उन्हें हाथों उठाया, स्वागत किया, उनका समर्थन किया। उसके बाद उन्होंने ‘भारत न्याय यात्रा’ भी निकाली। इसका उद्देश्य था नागरिकों पर सामाजिक, आर्थिक जो भी अन्याय हो रहा है, उन्हें न्याय किस तरह दिया जा सकता है, इसके समाधान और इसके उपाय ढूंढ़े जाएं। राहुल गांधी के प्रयास आम आदमी के साथ जुड़े हुए हैं। वह एक ऐसी पार्टी के नेता हैं, जो कभी देश में सत्ता के शीर्ष पर रही है। आज वह एक तरह से हाशिए पर आई दिखती है। इसके बावजूद राहुल गांधी अकेले नेता हैं, जो समूचे विपक्ष की मजबूत आवाज हैं। यह हमारे लोकतंत्र की खूबसूरती है कि देश में सरकार की गलतियां गिनाने, उनकी आलोचना करने और आम जनता के पक्ष को मजबूती से उठाने के लिए राहुल गांधी अपने साथ समूचे विपक्ष को लेकर मजबूती से डटे हुए हैं। विपक्ष की यही एकता सत्तापक्ष के लिए तगड़ी चुनौती है और उनके ४०० पार के लक्ष्य की सबसे बड़ी बाधा भी।
(लेखिका स्तंभकार एवं सामाजिक, राजनीतिक मामलों की जानकार हैं।)