महाराष्ट्र लोकसभा चुनाव में जनता ने भाजपा को परिणाम दे दिया है। ‘अब की बार चार सौ पार’ वालों की नाक महाराष्ट्र ने काट दी, जबकि उनके दोनों कान उत्तर प्रदेश ने और ‘मुंडन’ कार्यक्रम राहुल गांधी ने किया। फिर भी ये लोग विजय का ढिंढोरा पीटते फिरते हैं, यह मजाक है। महाराष्ट्र में भाजपा का आंकड़ा नौ पर आ गया। इन नौ में से कुछ लोग तो घात-पात से या फिर दुर्घटनावश जीते। उनमें से एक महामानव रत्नागिरी-सिंधुदुर्ग के खा. नारायण राणे हैं। राणे कुछ भी जीतने की स्थिति में नहीं थे। कमजोर भैंस बिना उम्मीद के गर्भवती हो जाए, ऐसी उनकी जीत है। अब श्रीमान राणे ने दावा किया है कि, ‘हमने लोकसभा चुनाव में कोकण में शिवसेना को खत्म कर दिया है। हम अब कोकण में किसी को खड़ा नहीं होने देंगे। अगर कोई हमारे खिलाफ आएगा तो हम उन्हें उनकी जगह दिखा देंगे।’ नारोबा की ये फुत्कार भाजपा के अहंकारी रवैए के अनुरूप है। कुछ लोग ‘जय’ को विनम्रता से स्वीकार नहीं कर पाते, ऐसे ये महाशय हैं। राणे पिछली मोदी सरकार में सूक्ष्म, लघु और मध्यम उद्योग विभाग के मंत्री थे। नए रालोआ मंत्रिमंडल में उन्हें जगह नहीं मिली। इससे उनके अति-सूक्ष्म दिमाग को झटका लगा और उससे ही वे ‘शिवसेना खत्म हो गई, खत्म कर दी’ की भाषा बोलने लगे। राणे पुन: मंत्री नहीं बने, यह उनकी योग्यता है। (‘औकात’ शब्द अधिक उपयुक्त है।) राणे एक समय शिवसेना में थे। शिवसेना में मुख्यमंत्री पद तक सभी पदों पर रहने के बाद उन्होंने पार्टी छोड़ दी। शिवसेना की वजह से राणे आर्थिक रूप से समृद्ध हुए। उनके घर पर सोने का छज्जा और सिर पर लहराते बालों का विग चढ़ा, लेकिन जिस थाली में खाया, उसी में छेद किया, जैसा उनका व्यवहार बदला। राणे शिवसेना से कांग्रेस में और कांग्रेस से भाजपा में चले गए। भाजपा में शामिल होते वक्त उन्होंने कांग्रेस के वरिष्ठ नेताओं की गंदी आलोचना की। निजी तौर पर वे भाजपा नेताओं के बारे में भी जो मन में आए वो बोल देते हैं। मोदी ने अब उन्हें मंत्री नहीं बनाया है और सांसद होने के बावजूद उन्हें बेरोजगारी की मार झेलनी पड़ रही है, इसलिए मोदी विरोध की बौखलाहट निकालकर शिवसेना को खत्म करने की बात कर रहे हैं। राणे को देखकर लग रहा है कि उनकी हालत थोड़ी नाजुक है। इसलिए उन्हें विजय का अजीर्ण हुआ है। राणे को पहले भी कई बार बदहजमी की समस्या हुई, लेकिन उनके इस पेटदर्द का शिवसेना ने ही समय-समय पर जालिम उपाय किया। शिवसेना ने राणे और उनके गिरोह के कोकण में पैâले दहशतवाद को खत्म करके उन्हें पराजित किया। शिवसेना ने राणे को कोकण में भी हराया और मुंबई में भी पराजित किया। (यहां ‘दफन’ शब्द ज्यादा उपयुक्त है।) इसलिए शिवसेना को खत्म करने की बात करने वालों को कई बार वैâसी मिट्टी खानी पड़ी, ये कोकण की जनता जानती है। कोकण में चुनाव यानी ‘हर्या-नार्या’ गिरोह द्वारा अक्सर खून की होली और हत्याएं होती थी। हालांकि रमेश गोवेकर, श्रीधर नाईक, अंकुश परब, सत्यविजय भिसे की हत्या को ‘पचा’ कर बिल्ली आज जीत की ‘म्याऊं’ मना रही है, लेकिन इस बिल्ली का असली इतिहास स्वयं देवेंद्र फडणवीस ने ही विधानसभा में जाहिर किया है। इस बार कोकण में नारायण राणे कैसे जीते इसका सबूत सामने आ गया है। घर-घर पैसों के पैकेट पहुंचाकर, भेज कर, लोगों को भ्रष्ट कर, वोट खरीदकर राणे ने यह जीत हासिल की है, जो कैमरे पर साफ दिख रहा है। चुनाव प्रणाली और जिले का प्रशासनिक तंत्र हाथों की कठपुतली होने के कारण ही राणे को ४८ हजार वोटों से सांसद का मुकुट सिर पर पहनते बना, लेकिन वोट खरीदने का यह मामला कोर्ट पहुंचने से राणे की सांसदी क्षणभंगुर हो सकती है। राणे को ४,४८,५१४ वोट मिले, जबकि शिवसेना के विनायक राऊत को ४,००,६५६ वोट मिले। यानी खुद को महान नेता मानने वाले राणे को पचास हजार की भी लीड नहीं मिली। अगर प्रशासन-पुलिस के सहयोग से पैसे का खेल नहीं हुआ होता तो राणे कम से कम डेढ़ से दो लाख के अंतर से हारते, लेकिन पचास हजार से जीतने वाले राणे ‘कोकण’ दिग्विजय का जश्न मना रहे हैं। सच तो ये है कि भाजपा हार गई और महाराष्ट्र ने मोदी-शाह को उनकी जगह दिखा दी। मोदी-शाह ने शिवसेना को खत्म करने के लिए क्या कसर छोड़ा? लेकिन उद्धव ठाकरे ने कांग्रेस और राकांपा की मदद से एक तूफान खड़ा कर दिया, जिसमें भाजपा उड़ गई। राणे खुद तो किसी तरह जीत गए, लेकिन भाजपा हार गई। राणे जिस पार्टी में जाते हैं, उस पार्टी का महाराष्ट्र में यही हाल होता है, वह पार्टी हार जाती है, ऐसा राणे के वर्तमान सहकारी दीपक केसरकर ने कहा वह सच ही साबित हुआ। यह झूठ है कि राणे ने कोकण में शिवसेना को हराया। पैसा और पुलिस यंत्रणा की मदद से उन्होंने कोकणी शान और स्वाभिमान को पीछे छोड़ दिया। कोकण की जमीन और उद्योगों पर परप्रांतियों की नजर है। कोकण में जहरीले प्रोजेक्ट आ रहे हैं, जिस पर राणे को बोलना चाहिए। शिवसेना को पराजित करना राणे जैसे लोगों के लिए कभी मुनासिब नहीं होगा। किसी हार से टूटकर पीछे हटने वाली शिवसेना नहीं है। राणे और उनके परिवार को शिवसेना ने तीन बार धूल चटाई। चौथी बार भी हार होगी। जीत से इंसान नम्र हो जाता है। राणे का व्यवहार इसके विपरीत है। जीत से वे हिंसक और बेलगाम हो जाते हैं। मोदी-फडणवीस-शाह के साथ भी यही हुआ। महाराष्ट्र ने उन्हें हरा दिया!