मुख्यपृष्ठस्तंभउम्मीद की किरण : डॉक्टरों ने जीने की उम्मीद जगाई!

उम्मीद की किरण : डॉक्टरों ने जीने की उम्मीद जगाई!

धीरेंद्र उपाध्याय

एवैस्कुलर नेक्रोसिस (एवीएन) से पीड़ित एक ४५ वर्षीय मरीज की टोटल हिप रिप्लेसमेंट सर्जरी नई मुंबई खारघर स्थित मेडिकवर अस्पताल में की गई है। कोविड संक्रमण के दौरान इस मरीज का इलाज करने के लिए स्टेरॉयड का उपयोग किया गया था। इस स्टेरॉयड के कारण मरीज को एवीएन का निदान हुआ था। मेडिकवर अस्पताल के ऑर्थोपेडिक मेडिसिन के निदेशक डॉ. दीपक गौतम के नेतृत्व में अन्य एक डॉक्टर की टीम ने यह सर्जरी की है। सर्जरी के चार घंटे बाद मरीज फिर से अपने पैरों पर खड़ा हुआ और २४ घंटे के भीतर उसे डिस्चार्ज दिया गया।
नई मुंबई में रहने वाले ४५ वर्षीय महेश धवलकर होटल में काम करते हैं। एक साल से उन्हें चलने में तकलीफ हो रही थी। उन्होंने कई डॉक्टरों से इलाज करवाया, लेकिन सेहत में कोई सुधार नहीं हुआ। बिगड़ती सेहत को देखकर परिवार वालों ने उन्हें मेडिकवर अस्पताल में दाखिल किया।
मेडिकवर अस्पताल के ऑर्थोपेडिक मेडिसिन निदेशक और सर्जन डॉ. दीपक गौतम ने कहा कि एवैस्कुलर नेक्रोसिस (एवीएन) या ऑस्टियो नेक्रोसिस रक्त की आपूर्ति में कमी के कारण हड्डी के ऊतकों को नुकसान होता है। इससे हड्डियां छोटे-छोटे टुकड़ों में टूट जाती हैं और नाजुक हो जाती हैं। स्टेरॉयड का लंबे समय तक उपयोग, शराब का सेवन और कूल्हे की चोट के कारण एवीएन की समस्या होती है। हालांकि, इस मरीज को कोविड होने के बाद स्टेरॉयड के अत्यधिक उपयोग के कारण यह समस्या हुई थी।
मरीज की ओपीडी के माध्यम से ऑपरेशन से पहले की सभी जांचें की गर्इं। चांज रिपोर्ट में उन्हें अन्य कोई समस्या दिखाई नहीं दी। डॉ. गौतम ने कहा कि हिप रिप्लेसमेंट सर्जरी के बाद मरीज को २-३ दिनों के लिए अस्पताल में भर्ती कराया जाता है, जिससे मरीज पर वित्तीय बोझ नहीं पड़ता है, इसके अलावा अस्पताल में रहने पर मानसिक स्वास्थ्य पर भी असर और संक्रमण का खतरा कम होता है।
पारंपरिक हिप रिप्लेसमेंट सर्जरी के दौरान कूल्हे के पीछे के जोड़ का उपयोग पोस्टीरियर दृष्टिकोण के माध्यम से किया जाता है। भारत में एक नई तकनीक के माध्यम से टोटल हिप रिप्लेसमेंट की जा रही है। यह सर्जरी किसी मांसपेशी को काटे बिना की जाती है इसलिए दर्द बहुत कम होता है और एनेस्थीसिया खत्म होने के बाद मरीज फिर से चलना-फिरना शुरू कर सकता है। इसके अलावा सर्जरी के दौरान रक्तस्राव कम होता है। इस नई तकनीक के साथ मरीज को ऑपरेशन के बाद किसी भी तरह की सावधानियों का पालन नहीं करना पड़ता है, जो पारंपरिक सर्जरी में अनावश्यक होती है। मरीज को २८ नवंबर की सुबह अस्पताल में भर्ती कराया गया। उनकी सर्जरी की गई और सर्जरी के ठीक ४ घंटे बाद वो फिर से अपने पैरों पर खड़े हो गए। मरीज की सेहत में सुधार देखकर सर्जरी के २४ घंटे बाद उसे डिस्चार्ज दिया गया।
मरीज महेश धवलकर ने कहा कि चलते समय मुझे काफी दर्द महसूस हो रहा था। दैनिक गतिविधियां भी ठीक से नहीं कर पा रहा था। अस्पताल के डॉक्टरों के समय रहते इलाज के कारण मैं पहले की तरह फिर से अपने पैरों पर चलने लगा हूं। मुझे नई जिंदगी देने के लिए मैं डॉक्टर्स की टीम का आभारी हूं।

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