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शिंदे सरकार में विकास की हकीकत… पक्की सड़क के अभाव में नहीं पहुंची एंबुलेंस!

-गर्भवती महिला को स्ट्रेचर से पहुंचाया गया 

-किसी तरह से बची महिला की जान

धीरेंद्र उपाध्याय / मुंबई

महाराष्ट्र में जब से शिंदे सरकार सत्ता में आई है, तभी से स्वास्थ्य विभाग के साथ तमाम व्यवस्थाएं राम भरोसे चल रही हैं। आए दिन कोई न कोई कारनामा संज्ञान में आ रहा है। इसी क्रम में एक ताजा -तरीन मामला मुख्यमंत्री के जिले ठाणे के एक गांव में सामने आया है। बताया जा रहा है कि ठाणे जिले के एक गांव में पक्की सड़क न होने के कारण एक गर्भवती महिला को परिजनों को ही स्ट्रेचर पर एंबुलेंस तक ले जाना पड़ा। इसके बाद एंबुलेंस महिला को लेकर प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्र पहुंची, तब कहीं जाकर महिला की जान बच सकी है।
घर तक नहीं जा पाई एंबुलेंस 
यह घटना ठाणे जिले की मुरबाड तहसील के आदिवासी क्षेत्र कातकरी वाड़ी से सामने आया है। जहां अंबरनाथ की वांगणी डोणे निवासी चित्रा संदीप पवार १९ जून को मुरबाड के कातकरवाडी स्थित अपने मायके गई हुई थी। २४ जून की सुबह ५.३० बजे अचानक उसे लेबर पेन शुरू हो गया। इसी बीच ओजीवले की आशा सेविका नंदा लहू पवार को खबर की गर्ई। उन्होंने तुरंत धसई प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्र के चिकित्सा अधिकारी से सुबह ६.३० बजे फोन कर अस्पताल से एंबुलेंस की मांग की। साथ ही गर्भवती महिला को प्रसव के लिए अस्पताल ले जाने की तैयारी शुरू कर दी।
कई गांवों में नहीं है पक्की सड़कें 
मुरबाड तालुका में धसई प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्र  के तहत आनेवाले ओजीवले गांव से एक किलोमीटर दूर कातकरीवाड़ी है। इस गांव में कुल सात घर हैं, जबकि इसकी कुल जनसंख्या ४२ है। गांव के लोगों का आरोप है कि यह स्थिति अकेले केवल हमारे ही गांव की नहीं है, बल्कि राज्य में ऐसे कई गांव हैं, जो पक्की सड़कों की बाट जोह रहे हैं।
डिलीवरी के बाद भी महिला को गांव के बाहर छोड़ा 
इस बीच एंबुलेंस ओजीवले गांव की कातकरी वाड़ी की पक्की सड़क तक तो पहुंच गई, लेकिन आगे कोई सड़क न होने के कारण एंबुलेंस को वहीं रुकना पड़ा। गर्भवती महिला को एंबुलेंस तक पहुंचाने के लिए परिजनों को एंबुलेंस में रखा स्ट्रेचर दिया गया। परिजनों ने किसी तरह से महिला को एंबुलेंस तक पहुंचाया। इसके बाद एंबुलेंस की मदद से प्रसव के लिए स्वास्थ्य केंद्र लाया गया, जहां सुबह ७.५६ बजे उसकी डिलीवरी हुई, साथ ही २६ जून की शाम मां और बच्चे को एंबुलेंस से वापस कातकरी वाड़ी छोड़ दिया गया।

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