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मोदी राज में मंदी की मार … ७ साल में बंद हुए १८ लाख उद्योग!

५४ लाख लोग हो गए बेरोजगार
एनएसओ की रिपोर्ट का खुलासा
सामना संवाददाता / नई दिल्ली
मोदी राज में देश के उद्योग-धंधे तबाह हो चुके हैं और बेरोजगारी भीषण तरीके से बढ़ी है। इस बात का खुलासा एनएसओ की रिपोर्ट से हुआ है। इसके अनुसार, ७ वर्षों में देश में १८ लाख उद्योग बंद हो चुके हैं। इनमें कई छोटे व लघु उद्योग शामिल हैं। इनके बंद होने से जुड़े करीब ५४ लाख लोग बेरोजगार हो चुके हैं।
एनएसओ की रिपोर्ट के अनुसार, हिंदुस्थान में जुलाई २०१५ से जून २०१६ और अक्टूबर २०२२ से सितंबर २०२३ के दौरान विनिर्माण क्षेत्र के १८ लाख असंगठित उद्योग बंद हो गए। हाल में जारी ‘असंगठित क्षेत्र के उद्यमों के वार्षिक सर्वेक्षण’ की पैâक्ट शीट और राष्ट्रीय सांख्यिकी कार्यालय (एनएसओ) द्वारा २०१५-१६ में किए गए ७३वें दौर के सर्वेक्षण के तुलनात्मक विश्लेषण से यह बात सामने आई है। अक्टूबर २०२२ से सितंबर २०२३ के दौरान विनिर्माण क्षेत्र में करीब १७८.२ लाख असंगठित इकाइयां काम कर रही थीं, जो जुलाई २०१५ से जून २०१६ के बीच काम कर रहीं १९७ लाख असंगठित इकाइयों की तुलना में करीब ९.३ प्रतिशत कम हैं।

महामारी की तुलना में अभी भी
कम है कर्मचारियों की संख्या!
मोदी सरकार के राज में ७ वर्षों में १८ लाख उद्योग बंद हो गए। ऐसे में इन प्रतिष्ठानों में काम करने वाले लोगों की संख्या भी इस दौरान करीब १५ प्रतिशत घटकर ३.०६ करोड़ रह गई, जो पहले ३.६०४ करोड़ थी। आमतौर पर इन उद्यमों में छोटे व्यवसाय, एकल स्वामित्व, साझेदारी और अनौपचारिक क्षेत्र के कारोबार शामिल होते हैं। हाल ही में खबर आई थी कि अप्रैल २०२१ से मार्च २०२२ में महामारी के दौरान जो कर्मचारियों की संख्या का निचला स्तर था, उसकी तुलना में अक्टूबर २०२२ से सितंबर २०२३ के बीच १.१७ करोड़ कामगार शामिल हुए हैं और भारत के व्यापक अनौपचारिक क्षेत्र में कुल कर्मचारियों की संख्या १०.९६ करोड़ हो गई है, लेकिन यह संख्या अभी भी महामारी के पहले की तुलना में कम है।
सांख्यिकी पर बनी स्थायी समिति के चेयरपर्सन प्रणव सेन ने कहा कि अनिगमित क्षेत्र, जिसमें व्यापक अनौपचारिक क्षेत्र शामिल होता है, लगातार लगने वाले आर्थिक झटकों से गंभीर रूप से प्रभावित हुआ है। ऐसे झटकों में जीएसटी और कोविड महामारी प्रमुख हैं। उन्होंने कहा, ‘इसमें कोई संदेह नहीं है कि इन नीतिगत पैâसलों और महामारी के कारण हुए लॉकडाउन के कारण अनौपचारिक क्षेत्र बुरी तरह से प्रभावित हुआ है। इस क्षेत्र के प्रतिष्ठान अमूमन करीब २.५ से ३ लोगों को काम देते हैं। इसमें ज्यादातर लोगों के खुद के कारोबार हैं या इसमें काम करने वालों में परिवार के सदस्य शामिल होते हैं इसलिए यह तर्कसंगत है कि इसकी वजह से विनिर्माण क्षेत्र में करीब ५४ लाख नौकरियां खत्म हुई हैं।’ श्रमिक अर्थशास्त्री संतोष मेहरोत्रा का कहना है कि सूक्ष्म, लघु और मझोले उद्यम (एमएसएमई) बड़े पैमाने पर असंगठित क्षेत्र में होते हैं और ये गैर कृषि क्षेत्र के बाद सबसे बड़े रोजगार प्रदाता हैं। उन्होंने कहा, ‘लगातार लग रहे नीतिगत झटकों के कारण २०१६ के बाद असंगठित क्षेत्र के एमएसएमई और इन इकाइयों में गैर कृषि रोजगार की स्थिति में गिरावट देखी जा रही है। हालांकि, मौजूदा आंकड़ों से पता चलता है कि कुल प्रतिष्ठानों की संख्या महामारी के बाद बढ़ी है। अपना उद्यम खोलने वाले लोगों की बढ़ती संख्या के कारण संख्या में बढ़ोतरी हुई है। यह बड़ी आबादी के जीवनयापन की रणनीति बनी है। इस तरह के प्रतिष्ठानों में अमूमन बाहर के लोगों की नियुक्ति नहीं होती है। यही वजह है कि इसी अनुपात में रोजगार सृजन की दर नहीं बढ़ पाई है।’ आंकड़ों के विश्लेषण से यह भी पता चलता है कि ट्रेडिंग सेक्टर में अनिगमित प्रतिष्ठानों की संख्या २ प्रतिशत घटकर अक्टूबर २०२२ से सितंबर २०२३ के दौरान २.२५ करोड़ रह गई है, जो जुलाई २०१५ से जून २०१६ के दौरान २.३०५ करोड़ थी।

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