लोकमित्र गौतम
पहले विश्वयुद्ध के बाद सन १९१९ में मित्र देशों ने जर्मनी को नीचा दिखाने के लिए उस पर वर्साय की संधि थोपी थी। इसके चलते न सिर्फ जर्मनी के एक बड़े हिस्से पर इन देशों ने कब्जा कर लिया था, बल्कि इस कब्जा की गई जमीन पर कई तरह की चैरिटी शुरू करने की योजना बनाई थी। इस अपमानजनक संधि का क्या नतीजा हुआ, पूरी दुनिया जानती है? जी हां, एडोल्फ हिटलर इसी अपमानजनक संधि से पैदा हुआ रक्तबीज था। एक सदी बाद जी-७ वैसी ही गलती फिर दोहरा रहा है। बस फर्क इतना है कि पहले जहां जर्मनी था, अब उसकी जगह रूस है। गुजरे १४ जून २०२४ को इटली के पुलिया में आयोजित जी-७ शिखर सम्मेलन के दौरान हुई एक प्रेस कॉन्प्रâेंस में अमेरिका के राष्ट्रपति जो बाइडेन ने कहा कि यक्रेन को ५० बिलियन डॉलर का कर्ज दिया जाएगा और इस कर्ज के सालाना ब्याज का भुगतान, रूस की यूरोपीय संघ के साथ जी-७ देशों ने जो ३२५ अरब डॉलर मूल्य की संपत्ति प्रâीज कर रखी है, उससे मिलने वाले करीब ३ अरब डॉलर सालाना ब्याज से किया जाएगा। यूक्रेन, अमेरिका की इस दादागिरी से गदगद है, लेकिन रूसी राष्ट्रपति पुतिन ने दांत पीसकर पूरे गुस्से से कहा है, इस हरकत का बहुत बुरा अंजाम होगा।
दुनिया को यह अनुमान लगाने की जरूरत नहीं है कि रूसी राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन कितने दुस्साहसी हैं। वह सिर्फ बातों से ही दुनिया को डराने का माद्दा नहीं रखते बल्कि अपने पर आ जाएं तो दुस्साहस की सारी पराकाष्ठाएं लांघ सकते हैं। हमें यह नहीं भूलना चाहिए कि पश्चिमी देशों के करीब डेढ़ दशकों के अप्रत्यक्ष प्रतिबंधों और जब से पुतिन ने क्रीमिया पर कब्जा किया है, तब से लगातार बढ़ता प्रत्यक्ष प्रतिबंध और २०२२ के बाद से तो जितने भी किस्म के पश्चिमी देश प्रतिबंध लगा सकते थे, वे सबके सब रूस पर लगे हुए हैं, लेकिन इसके बाद भी रूस की अर्थव्यवस्था न तो डूबी है और न ही रूस कहीं से कमजोर होता दिखा है। ऐसे में अगर अमेरिका यह सोचता है कि उसकी ३२५ अरब डॉलर की संपत्ति को प्रâीज करके और उससे मिलने वाले ब्याज से व्लादोमीर जेलेंस्की में आत्मघात का जोश भरकर वे रूस को कमजोर कर लेंगे, पुतिन को झुकने के लिए मजबूर कर देंगे, तो यह अमेरिका की दिखाई गई अतिशय चालाकी की नासमझी है।
इससे रूस को कोई खास फर्क पड़ने वाला नहीं है, क्योंकि लगभग दो सालों से उसकी यह संपत्ति एक किस्म से उसके लिए परायी ही है। पिछले दो सालों से प्रâीज रूस अपनी इस संपत्ति का न तो प्रत्यक्ष रूप से और न ही इस संपत्ति की बदौलत अप्रत्यक्ष रूप से कोई सहूलियत हासिल कर पा रहा है। लेकिन अमेरिका के नेतृत्व में जी-७ के उसके पिछलगू देशों द्वारा उठाए गए इस कदम के चलते रूस को कई तरह की मनमानियां करने का मौका मिल जाएगा। दुनिया के सबसे अमीर संगठन द्वारा की गई इस हरकत से रूस उन सभी संकोचों से एक झटके में बाहर निकल जाएगा, जो अभी तक उसे परमाणु हथियारों तक जाने और उनके बाबत सोचने की हिम्मत भी नहीं करने दे रहे थे। रूस जी-७ देशों की इस हरकत के बाद किसी भी हद तक जा सकता है। वह खुल्लम-खुल्ला परमाणु यद्ध की अति पर भी उतारू हो सकता है, क्योंकि पुतिन के अतीत को सब जानते हैं कि वह एक झटके में निर्णय लेने वाले क्रूर खुफिया अधिकारी रहे हैं।
लेकिन अगर ऐसा न भी हो, तो भी पश्चिमी देशों की इस हरकत के बाद रूस और चीन की जो गलबहियां अभी तक एक हिचक के साथ देखने को मिल रही थीं, अब इन गलबहियों के लिए दोनों के बीच की यह झिझक टूट जाएगी। वैसे भी भले ही चीन, पश्चिमी देशों के विरूद्ध सीधे-सीधे युद्ध न लड़ रहा हो, लेकिन कम से कम अमेरिका के साथ तो उसकी भी वैसी ही ठनी है, जैसे रूस और अमेरिका की आपस में ठनी है। कहने का मतलब है कि जी-७ देशों की यह गली-मुहल्ले के दादाओं जैसी हरकत रूस को भले झुका पाए या न झुका पाए, लेकिन इसके चलते हाल के सालों में भूमंडलीकरण को लेकर जो आशंकाएं तैर रही हैं, एक झटके में वो आशंकाएं काफी ठोस और सही मान ली जाएंगी। जिस तरह से अमेरिका की अगुवाई में अमीर देश रूस को घेरकर उसका शिकार करना चाहते हैं, उससे भूमंडलीकरण के भरोसे का बुलबुला फूट जाएगा।
एक बार जब दुनिया के सबसे ताकतवर देश मिलकर किसी एक देश के विरूद्ध क्रूरतापूर्व गोलबंद होकर उसकी आर्थिक कमर तोड़ने की कोशिश कर सकते हैं, तो भला कौन देश होगा जो भूमंडलीकरण पर भविष्य में आंख मूंदकर भरोसा करेगा? क्या इस घटना के बाद दुनिया के बहुत से देशों के कान नहीं खड़े हो जाएंगे कि अगर पश्चिमी देश उसके विरूद्ध भी किसी बात को लेकर घेराबंदी कर लें तो क्या होगा? दरअसल अमेरिका काफी दिनों से इस फिराक में था कि रूस को कोई ऐसी चोट पहुंचाए, जिससे ख्याल से ही वह बिलबिला जाए। इसके लिए उसने पहले यूरोपीय सेंट्रल बैंक को पटाने की कोशिश की, फिर उस पर दबाव डाला कि वह रूस की संपत्ति जब्त कर ले। लेकिन यूरोप के सेंट्रल बैंक ने ऐसा करने से इंकार कर दिया। इसके बाद बाइडेन ने वही पुराना चक्रव्यूह रच डाला जो दशकों से रचा ज्ाा रहा है। अपने साथ जी-७ के पिछलग्गुओं की बदौलत अमेरिका यूक्रेन का सबसे बड़ा शुभचिंतक बनना चाहता है।
मालूम हो कि अमेरिका ने यूक्रेन को ६१ अरब डॉलर की सहायता दे रखी है। अमेरिका इस बात को भली भांति जानता है कि फिलहाल यूक्रेन के बस में नहीं है कि वह उसकी सहायता राशि का ब्याज भी समय पर लौटा सके। इसीलिए अमेरिका अपनी दी गई सहायता के सुरक्षित वापसी के लिए दूर की कौड़ी बिठाकर जेलेंस्की के लिए ३ अरब डॉलर सालाना की व्यवस्था की है। रूस की जब्त संपत्ति से मिलने वाले ३ अरब डॉलर के ब्याज से वास्तव में अमेरिका यूक्रेन को दिए गए अपने उधार की सुरक्षित वापसी का बंदोबस्त करना चाहता है। भले ही इसके लिए वह कह कुछ रहा हो। अमेरिका कम से कम यूक्रेन का शुभचिंतक तो कतई नहीं है, अगर ऐसा होता तो अब तक रूस, यूक्रेन युद्ध में ५० हजार से ज्यादा यूक्रेनी सैनिक मारे जा चुके हैं। ५८७ बच्चों के साथ १०,५०० आम लोग मारे जा चुके हैं और १ लाख १० हजार से ज्यादा फौजी तथा ४० हजार से ज्यादा आम यूक्रेनी इस युद्ध में बुरी तरह से घायल हो चुके हैं। इनमें बड़ी संख्या में अपाहिज हो गए हैं।
साल २०२२ गुजरने के बाद विश्व बैंक ने तहस-नहस यूक्रेन के पुनर्निर्माण के प्रारंभिक खर्चे का जो अनुमान लगाया था, वह ४०० अरब डॉलर से ज्यादा का था, जबकि कई दुनियावी प्रोफेशनल कंपनियों का उस दौरान आकलन था कि यूक्रेन के पुनर्निर्माण के लिए १ ट्रिलियन डॉलर से भी ज्यादा रकम की जरूरत होगी। तब से अब तक करीब १३ महीने और गुजर चुके हैं। इससे अंदाजा लगाया जा सकता है कि अब तक यूक्रेन और कितना ज्यादा बरबाद हो चुका होगा। लेकिन न तो अमेरिका को और न ही यूरोप के दूसरे देशों को यूक्रेन का यह दर्द दिखता है। इसलिए इस रवैय्ये से कोई और कुछ सीखे न सीखे, हमें तुरंत सबक लेने की जरूरत है। हमें किसी भी खुशफहमी या मुगालते में आकर पश्चिमी गोलबंदी का हिस्सा नहीं बनना। हमारे लिए भले ही अब रूस एकमात्र स्ट्रैटेजिक पार्टनर न रह गया हो, लेकिन चीन के साथ अपने गहरे रिश्ते बनाकर और पाकिस्तान को इस त्रिकोण में शामिल करके रूस हमारे लिए जो जियो-पॉलिटिकल दुस्वारियां खड़ी कर सकता है, हमें हमेशा उस बात को ध्यान में रखना होगा।
भारत की सबसे सुविचारित और सुरक्षित वैश्विक नीति गुटनिरपेक्ष आंदोलन की रही है। भले ही मौजूदा वैश्विक उथल-पुथल में गुटनिरपेक्ष आंदोलन कहीं खो गया हो, लेकिन हमें इस तरह की तीखी घेरेबंदी के बीच अपनी उस मजबूत वैश्विक पोजीशन को फिर से मजबूत करना होगा और जी-७ रूस के बहाने जिस तरह आग से खेलने की तरफ बढ़ रहा है, हमें उससे खुद को बचाना होगा। ये भयानक लपटें हमारे दशकों के संचित कौशल को शून्य कर देंगी।
(लेखक विशिष्ट मीडिया एवं शोध संस्थान, इमेज रिफ्लेक्शन सेंटर में वरिष्ठ संपादक हैं)