फिरोज खान / मुंबई
इन दिनों मुंबई के नामचीन खबरी बेकार हो गए हैं। पुलिस ने उनका खर्चा-पानी भी बंद कर दिया है। अब आलम यह है कि मुखबिर अब पूरी तरह मोहताज हो गए हैं। ८० और ९० के दशक में यही खबरी किसी सेठ से कम नहीं हुआ करते थे। हाथों में कई मोबाइल, गले में सोने की चेन और गाड़ियां इनकी शान व शौकत थी। आज बेबसी की जिंदगी बसर कर रहे हैं। इसकी सबसे बड़ी वजह है नई तकनीक। बड़े से बड़े केस को सुलझाने के लिए पुलिस अफसर मुखबिरों की जगह अब मोबाइल फोन ट्रैकिंग, सीसीटीवी वैâमरे, ग्लोबल पोजीशन सिस्टम (जीपीएस) और काल रिकॉर्डिंग का सहारा लेने लगे हैं।
क्राइम ब्रांच के एक अधिकारी ने बताया कि खबरियों को पालना और उनका खर्चा उठाना अब मुश्किल हो गया है, क्योंकि पुलिस की ऊपरी कमाई (हफ्ते का कलेक्शन) पहले जैसा नहीं रहा। उन्होंने बताया कि पहले मटका, बीयर बार, शराब के अड्डे आदि जगहों से अच्छा कलेक्शन आता था। कोई भी पुलिस वाला अपनी जेब से खबरियों का खर्चा नहीं चला पाएगा। एक अन्य पुलिस अफसर ने बताया कि समयानुसार चीजें बदलती हैं। पहले पुलिस विभाग जीरो नंबरियों पर निर्भर था, लेकिन अब पहले जैसी उनकी जरूरत नहीं रही, तो क्यों उन पर खर्चा किया जाए? इस बारे में मुखबिरों का कहना है कि राकेश मारिया, डी. शिवानंदन और विजय सालसकर के जमाने में दवा, घर का खर्च और बच्चों के स्कूल की फीस के नाम पर बराबर पैसे मिलते थे। डोंगरी के एक खबरी ने बताया कि बड़ी खबर देने पर अलग से उन्हें अच्छी खासी रकम मिलती थी।
इनाम में मोटरसाइकिल
इतना ही नहीं, पुलिस अफसर खुश होकर मोटरसाइकिल तक इनाम में देते थे। नागपाड़ा के एक मुखबिर ने बताया कि राकेश मारिया और विजय सालसकर के जमाने में उन्हें चार-चार हॉटलाइन मोबाइल दिए जाते थे। इस पर पुलिस अफसर २४ घंटे उपलब्ध रहते थे। खबरी ने यह भी बताया कि अंडरवर्ल्ड के शूटरों की गिरफ्तारी से लेकर एनकाउंटर तक की इनफार्मेशन वे ही पुलिस को देते थे। उम्रदराज हो चुके इस खबरी का कहना है अब वह मुफलिसी की जिंदगी बसर करने के लिए मजबूर है।
६०० खबरियों का बॉस
आईपीएस अफसरों के एक अन्य खबरी का कहना है कि मुखबिरों ने अपनी जान जोखिम में डालकर पुलिस के लिए काम किया है। खबरियों में इरफान चिंदी का बड़ा नाम था। उसके हाथ के नीचे तकरीबन ६०० खबरी काम करते थे। चिंदी के पास मुंबई के अपराध जगत की हर खबर होती थी, लेकिन २००९ में नागपाडा इलाके में उसकी हत्या कर दी गई। इसी तरह २०२४ में वर्ली के एक स्पा में पुलिस खबरी सिद्धप्पा वाघमारे का कत्ल कर दिया गया।