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उल्हासनगर में दिव्यांगों को स्टॉल और जगह न देने पर नाराजगी, सात दिन में नहीं किया गया विचार तो आमरण अनशन की चेतावनी

सामना संवाददाता / उल्हासनगर

उल्हासनगर मनपा प्रशासन की ओर से दिव्यांग लोगों को स्वरोजगार के लिए स्टॉल और जगह नहीं दिए जाने पर अब विरोध बढ़ता जा रहा है। एक ओर जहां महिला बचत गट को स्टॉल और जगह देने की प्रक्रिया जारी है, वहीं दिव्यांगों को निरंतर नकारा जा रहा है। दिव्यांगों का कहना है कि यह सरकार और मनपा के दोहरे मापदंड को दर्शाता है, जिससे उनमें नाराजगी है।

उल्हासनगर की एक दिव्यांग युवती ने मनपा के मालमत्ता विभाग और आयुक्त को पिछले सात वर्षों से पत्र भेजकर स्टॉल और जगह देने का अनुरोध किया है, लेकिन अब तक इस पर कोई सकारात्मक विचार नहीं किया गया। इस स्थिति से नाराज युवती ने चेतावनी दी है कि यदि अगले सात दिनों में इस पर विचार नहीं किया गया, तो वह उल्हासनगर मनपा मुख्यालय के सामने आमरण अनशन पर बैठेंगी।

उल्हासनगर में 44 दिव्यांगों ने स्वरोजगार के लिए जगह और स्टॉल के लिए आवेदन किया था। हालांकि, सहायक आयुक्त अजय साबले ने इन सभी आवेदनों को नकारते हुए कहा कि शहर की संकरी सड़कों की वजह से यातायात में बाधा उत्पन्न होती है, जिससे जगह नहीं दी जा सकती। वहीं, 52 महिला बचत गट ने भी इसी तरह के आवेदन किए थे, जिनमें से 50 गटों को स्टॉल दिए जाने की मंजूरी दी गई है। हर स्टॉल का माप 8×8 फुट है और इसकी लागत लगभग 2 लाख 48 हजार रुपये है।

इसका कुल खर्च 1 करोड़ 24 लाख रुपये बताया जा रहा है, जिसे मनपा, केंद्र और राज्य सरकार से आर्थिक मदद मिलने की उम्मीद है। लेकिन सवाल यह उठ रहा है कि दिव्यांगों को बिना किसी कारण नकारा क्यों किया गया, जबकि महिला गटों को यह सुविधा दी गई है।

दृष्टि दीपक माडविया, जो स्वयं एक दिव्यांग हैं और इस मामले को लेकर लगातार मनपा से पत्राचार कर रही हैं, ने कहा कि उन्होंने 2018 से 2025 तक कई पत्र भेजे हैं, लेकिन कोई जवाब नहीं मिला। उन्होंने आरोप लगाया कि मनपा दिव्यांगों के प्रति भेदभावपूर्ण रवैया अपना रही है।

 

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