ऋतुराज बसंत

आया ऋतुराज बसंत
फैला चहुं ओर आंनद
शीत ग्रीष्म ऋतु का संधी काल
सर्द रातों की हुई विदाई
सुहानी मस्त ऋतु आई।
द्रुमों से झरे पीले पात
फूटी कोमल कोंपलें
नन्ही कलियां पड़ी दिखाई
फूली पीली सरसों
अद्भुत छटा खेतों पर छाई
प्रकृति ने ली अंगड़ाई।
तन मन में जगी कोमलता
कानन बागों में तितलियों ने
मोहक छटा दिखाई
मधुकर मधुर मकरंद पान करें
फूलों से प्रीत निभाई।
सोलह श्रृंगार कर मही बनी दुल्हन
गगन ने ओढ़ा नीला चंदोवा
देख देख मन हर्षित होवा।
चहक-चहक खग बना रहे नीड़
शीघ्र चहकेंगे नन्हे पखेरू
मधुर कलरव से होंगी
गुंजित सभी दिशाएं
फागुनी बयार बहने के दिन आए
झूम रहीं नव पुष्पित लताएं
अब पड़ेगें झूले डार-डार
झूलेंगी मिल सखियां चार
ऋतुराज आ के रहना कुछ दिन
जाने का शीघ्र न करना विचार।
-बेला विरदी

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