संजय राऊत-कार्यकारी संपादक
औरंगजेब चार सौ सालों से कब्र में आराम कर रहा है। उस कब्र पर महाराष्ट्र में दंगे भड़काए गए। नागपुर का चुनाव उस दंगे के लिए किया गया। क्या मुख्यमंत्री फडणवीस को मुश्किल में डालने के लिए नागपुर को चुना गया? नवहिंदुत्ववादियों की राजनीति को भाजपा के अपवित्र लोग खाद डालने का काम कर रहे हैं। महाराष्ट्र के लिए यह खतरा है!
चार सौ साल पहले कब्र में चले गए आलमगीर औरंगजेब को लेकर महाराष्ट्र में दंगे भड़क उठे। खास बात यह है कि दंगों का केंद्र नागपुर है। राज्य के राजनेता ही दंगे करवाते हैं, यह सच है, लेकिन उन राजनेताओं को अपने निर्वाचन क्षेत्र व आसपास में दंगे नहीं चाहिए होते। इसलिए नागपुर के दंगों में मुख्यमंत्री फडणवीस की भूमिका है, यह मानने के लिए मैं तैयार नहीं हूं। मुख्यमंत्री फडणवीस के विधानसभा क्षेत्र में यह सब घटित हुआ। इसलिए फडणवीस को बदनाम करने, मुसीबत में डालने के लिए क्या नागपुर को युद्ध का मैदान बनाया गया? यह सवाल है। नागपुर के दंगों से गृह मंत्रालय की नींव कमजोर पिलर पर खड़ी है यह दिखाई दिया। बीड, परभणी से नागपुर तक इसका असर रोज देखने को मिल रहा है। गुजरात के दाहोद में ३ नवंबर, १६१८ को औरंगजेब का जन्म हुआ। वह दिल्ली गया व दिल्ली से महाराष्ट्र पर कब्जा करने निकला और महाराष्ट्र में ही कब्र में दफन हो गया। औरंगजेब की कई बेगम थीं, लेकिन हीराबाई से उसे प्रेम था। वह गुजरात की ही थी। अब दिल्ली में गुजराती राजनेताओं की ही सत्ता है। अब उन्हीं राजनेताओं के समर्थकों को महाराष्ट्र में औरंगजेब की कब्र खोदना है। इन्हीं समर्थकों ने गांधी के हत्यारे गोडसे का सम्मान किया, उन्हें हिटलर भी प्रिय है। महाराष्ट्र में इस तरह का जहर पैâलाकर नवहिंदुत्ववादियों को देश में अराजकता फैलाना है।
बाबर खत्म हुआ, अब…
हिंदू-मुस्लिम झगड़े को भड़काने की बाबर की क्षमता अब खत्म हो गई है। पाकिस्तान के कारण भी अब दंगे नहीं भड़कते। इसलिए कब्र से औरंगजेब को बाहर निकालने की योजना है। महाराष्ट्र के एक विधायक अबू आजमी ने कहा, ‘औरंगजेब एक क्रूर शासक नहीं था। उसकी लड़ाई धर्म की नहीं, बल्कि सत्ता की थी। उसने कई हिंदू मंदिर बनवाए।’ आजमी के बयान से हंगामा शुरू हो गया। मुसलमानों को आज भी बाबर, औरंगजेब आदि उनके शासक लगते हैं। वे लोग उनकी जय-जयकार की घोषणा करते हैं। यह आज के नवहिंदुत्ववादियों के रास्ते में आते हैं और हल्ला-गुल्ला करते हैं। इस्लामी दरबारी मोहम्मद साकी मुस्तैद खान ने ‘मासीर-ए-आलमगीरी’ (१७३१) में लिखा है कि औरंगजेब ने फरमान जारी करके काशी विश्वनाथ मंदिर को तोड़कर वहां मस्जिद बनवाई। अन्य धर्मों के लोगों का जबरन धर्मांतरण कराने का आदेश दिया। मथुरा के केशवराय मंदिर को नष्ट किया और जोधपुर के कई मंदिरों को तोड़कर उनके अवशेष जामा मस्जिद की सीढ़ियों के नीचे पाट दिए। सिखों के नौवें गुरु तेग बहादुर और अन्य सिख धर्मावलंबियों की हत्या उसने इस्लाम धर्म अस्वीकार करने की वजह से की। छत्रपति संभाजी राजे की हत्या उसने क्रूरता से की। औरंगजेब सत्तापिपासु और धर्मांध था। उसने अपने बाप शाहजहां को कैद किया। तीन भाइयों दारा शिकोह, शाहशुजा और मुराद को भी मार डाला। ऐसा औरंगजेब किसी भी धर्म का हो, वह किसी भी सभ्य समाज के लिए आदर्श नहीं हो सकता। मुगल शासक भारत में तलवार लेकर आए थे, यहां की संपत्ति लूटने के लिए। उसके पीछे धार्मिक प्रेरणा निश्चित रूप से थी। १३९९ में भारत पर हमला करने के लिए तैमूर लंगड़ा घुस आया। उसने हजारों निर्दोषों का कत्ल किया। ‘तुजुक-ए-तैमूरी’ में तैमूर कहता है, ‘हिंदुस्थान में घुसने का मेरा हेतु साफ है। मैं यहां पर्यटन के लिए नहीं आया हूं। काफिरों को मारना, दूसरे काफिरों की दौलत लूटना मेरा उद्देश्य है। क्योंकि यह मुसलमानों के लिए मां के दूध जितना ही प्रिय है।’ ऐसा होते हुए देश के एक प्रसिद्ध बॉलीवुड परिवार ने अपने बेटे का नाम ‘तैमूर’ रखा है और हमारे प्रधानमंत्री उस तैमूर की प्रशंसा करते हैं। यह सब औरंगजेब की कब्र खोदने वाले लोग सहन करते हैं।
काशी के मंदिर
वाराणसी यानी काशी में औरंगजेब ने मंदिर तोड़े। अब ‘अमृत काल’ में वाराणसी में कॉरिडोर बनाने के लिए सैकड़ों मंदिरों और प्राचीन मूर्तियों पर बुलडोजर चलाया गया। उन उध्वस्त की गई मूर्तियों का आगे क्या हुआ? कोई नहीं बता सका। मोदी के कार्यकाल में यह मूर्तिभंजन हुआ। औरंगजेब निश्चित रूप से क्रूर था, लेकिन बाद में आए ब्रिटिश शासक भी क्रूर निकले। उन्होंने आजादी के लिए लड़ने वाले, भारतीय क्रांतिकारियों को क्रूरता से मार डाला। जलियांवाला बाग में निहत्थे लोगों पर गोलीबारी करनेवाला जनरल डायर एक ब्रिटिश शासक था। आज हमारे ब्रिटिशों से उत्तम संबंध हैं। मुगलों के निशान हम मिटा रहे हैं, लेकिन ब्रिटिशों के निशान संजोकर रखे हुए हैं। औरंगजेब ने अपने बाप, भाइयों को जेल में डाल दिया या खत्म किया। आज लालकृष्ण आडवाणी की स्थिति देखकर कई लोग ‘वैâद’ हुए शाहजहां को याद किए बिना नहीं रह पाते हैं।
औरंगाबाद की कथा
मराठा साम्राज्य को जड़ से उखाड़ फेंकने की प्रतिज्ञा करके बड़ी तैयारी के साथ औरंगजेब दक्षिण में आया और औरंगाबाद में डेरा डालकर बैठ गया। औरंगाबाद के प्रति इस बादशाह को कुछ खास आकर्षण रहा होगा। दरअसल, इस गांव का मूल नाम खिर्की था। १६०४ में अबिसीनियन के गुलाम के रूप में आए मालिक अंबर ने इसे बसाया। १६२६ में इस चतुर वजीर की मृत्यु के बाद उसके बेटे फत्ते खान ने इस गांव का नाम फत्तेनगर कर दिया, लेकिन शाहजहां बादशाह के शासनकाल में ही दख्खन का सूबेदार बनकर आए औरंगजेब ने इसका नाम औरंगाबाद कर दिया। (साल १९९० में हिंदूहृदयसम्राट शिवसेनाप्रमुख बालासाहेब ठाकरे इस शहर में आए। उन्होंने औरंगजेब की कब्र खोदो, यह बात नहीं कही, बल्कि औरंगाबाद का नाम बदलकर छत्रपति संभाजी नगर करके औरंगजेब का अस्तित्व ही यहां से मिटा दिया।) औरंगजेब जब मरा तब सम्राट अशोक को भी जितना बड़ा साम्राज्य नहीं मिला था, उससे विशाल साम्राज्य पर औरंगजेब का कब्जा था। लेकिन यह साम्राज्य मराठों ने खोखला साबित कर दिया। धीरे-धीरे एक के बाद एक ढहता गया। औरंगजेब यहां जीतने के लिए आया और महाराष्ट्र की मिट्टी में ही दफन हो गया। संभाजी नगर से चौदह मील दूर खुलताबाद के शीतल परिसर में औरंगजेब की सादी कब्र उसकी पराजय का इतिहास बयां करती है। उसकी कब्र बिल्कुल सादी हो, ऐसी इच्छा औरंगजेब ने मरने से पहले प्रकट की थी। वेरूल की गुफाओं की चोटियों पर बसा यह रोजा खुलताबाद मतलब कब्रों का गांव। शेख जैनुद्दीन इस्लामी संत ने जहां चिरनिद्रा ली, उसी परिसर में औरंगजेब ने अपनी कब्र पहले से ही तैयार करवा रखी थी। पास में ही उसके बेटे अजमशाह की भी कब्र है, लेकिन औरंगजेब बादशाह की कब्र पर छत तक नहीं है। कब्र की सीढ़ियां, बगल की जाली की दीवारें संगमरमर की हैं, लेकिन यह बाड़ा बाद में बना। ऐसा कहा जाता है कि इतने बड़े मुगल बादशाह की यह सादी कब्र देखकर लॉर्ड कर्जन ने कुछ निर्माण करवाया है।
औरंगजेब को कोई व्यसन नहीं था। किसी को भी गलत बढ़ावा उसने कभी नहीं दिया, ऐसा यदुनाथ सरकार ने कहा है। ‘आलमगीर जिंदा पीर’ ऐसा भी उसे लोग बोलते। स्वयं कोई उद्योग करना चाहिए, इसलिए हाथों से कपड़े की टोपियां बुनता था। अपनी मृत्यु के बाद इन टोपियों से व कुरान की प्रतियां लिखवाकर जो पैसे मिलें, वे फकीरों में बांट दिए जाएं, ऐसा उसने लिखकर रखा था। उसके साथ सवारी में शामिल रहनेवाली उसकी बेगम रबिया उल दौरानी के स्मारक को बनाने के लिए ताजमहल की प्रतिकृति बनाने का उसने प्रयास किया। ‘बीबी का मकबरा’ इस नाम से यह सुंदर इमारत आज छत्रपति संभाजी नगर में कहीं से भी प्रवेश करने पर नजर आती है। दक्षिण का ताजमहल के रूप में यह इमारत प्रसिद्ध है। अब जिन्हें औरंगजेब की कब्र उखाड़ना है, क्या उन्हें इस ताजमहल को भी उखाड़ना है? औरंगजेब के नाम पर महाराष्ट्र में राजनीति हो रही है, यह उचित नहीं है। औरंगजेब की कब्र मराठा शौर्य का विजय स्तंभ है। उस स्तंभ को गिराने की कोशिश करनेवाले इतिहास के शत्रु हैं।
कब्र में पड़ा औरंगजेब महाराष्ट्र के मूर्खों ने जिंदा कर दिया। वह उन्हीं के सिर पर उल्टा पड़ गया।