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रोखठोक : भैंसे का सींग और मोदी का गंगास्नान! … बहका हुआ भारत देश

संजय राऊत-कार्यकारी संपादक

प्रधानमंत्री मोदी ने गंगास्नान का मुहूर्त निकाला भी तो दिल्ली विधानसभा चुनाव के दिन। चुनाव कोई भी हो, मोदी माथे पर भस्म लगाए कभी केदारनाथ गुफा में, कन्याकुमारी, पशुपतिनाथ और गंगा में भी खड़े रहते हैं। राजनीति में धर्म को लाने का यह अतिरेक है। महाराष्ट्र के लिए बलि चढ़े भैंसे की सींग और प्रधानमंत्री का राजनीतिक गंगास्नान देश को कहां ले जाएगा?

संसद का सत्र शुरू रहने और दिल्ली में विधानसभा चुनाव के दिन हमारे प्रिय प्रधानमंत्री श्री. नरेंद्र मोदी प्रयागतीर्थ कुंभ मेले में गंगास्नान के लिए गए। प्रधानमंत्री ने गंगा में डुबकी लगाई और हाथ में रुद्राक्ष की माला लेकर जप करते नजर आए। अपने प्रधानमंत्री के इस धर्मरूप को देखने के लिए गंगा तट पर भारी भीड़ जमा हो गई। प्रधानमंत्री ने विधानसभा चुनाव के मतदान का मुहूर्त साध लिया। प्रधानमंत्री दूसरे दिन भी गंगास्नान के लिए जा सकते थे, लेकिन उन्होंने मतदान का दिन चुना। दिल्ली के मतदाता शाम को मतदान खत्म होने तक उनका गंगास्नान देखें, तदनुसार मतदान करें, यही श्री. मोदी का इरादा था, जो सफल हुआ। इससे पहले हर चुनाव के मतदान में मोदी इसी तरह पेश आए। कभी कन्याकुमारी, कभी पशुपतिनाथ तो कभी केदारनाथ की गुफाओं में मोदी गए और धर्म के आधार पर मतदाताओं को प्रभावित करते रहे। राजनीति में नहीं, बल्कि मतदान प्रक्रिया में धर्म को घुसाकर यंत्रणा को हाईजैक करने की यह कोशिश सफल होती है तो चुनाव आयोग के धृतराष्ट्र की भूमिका में समाने के कारण। एक श्रद्धालु नागरिक के रूप में मोदी को कुंभ में जाकर धार्मिक स्नान करने का पूरा अधिकार है, लेकिन मोदी पूरा लाव-लश्कर लिए देश के प्रधानमंत्री के रूप में वहां गए। मतदाताओं को प्रभावित करने का यह भ्रष्ट तरीका है। अगर चुनाव आयोग जाग रहा होता तो उसने मोदी का ये डुबकी ड्रामा उसी दिन न्यूज चैनलों पर दिखाने पर रोक लगा दिया होता; लेकिन संवैधानिक संस्थाओं से ऐसे निष्पक्ष व्यवहार की उम्मीद करना अब मूर्खता है।
गांधी का धर्म
भारत आज भी गांधीजी के देश के रूप में ही जाना जाता है। गांधी कट्टर हिंदू ही थे। गांधी जी ने अपना हिंदुत्व नहीं छुपाया, लेकिन गांधी जी दृढ़ता से कहते हैं, ‘अगर मैं सत्ताधारी बन गया तो धर्म और राज्यसत्ता अलग-अलग रहेंगे। मैं अपने धर्म पर कायम रहूंगा। मैं इसके लिए अपनी जान भी दे दूंगा, लेकिन यह मेरा निजी मामला है। आपके और मेरे धर्म की चिंता करना राज्यसंस्था का काम नहीं है, बल्कि यह अपना-अपना व्यक्तिगत मसला है। अगर आप मुझसे पूछेंगे कि आपका धर्म क्या है तो मैं कहूंगा, मेरे जीवन को देखो। मैं रहता कैसे हूं, बोलता, खाता कैसे हूं, सामान्यतया क्या मानता हूं, ये आप बारीकी से गौर करें। इन सभी चीजों का गुणा-भाग करने के बाद जो मुझमें नजर आएगा, वही मेरा धर्म है। गांधी ने देशभर में राम के कई मंदिर बनवाए। बिर्ला की मदद से बनवाए। मोदी और उनके लोगों ने एक राम मंदिर पर २५ वर्ष राजनीति की। २०१९ के लोकसभा चुनाव में अयोध्या के श्रीराम ने बहुमत नहीं दिलाया तब राम को छोड़कर ‘जय जगन्नाथ’ का नारा लगाया। क्योंकि ओडिशा में भाजपा को सफलता मिली। पिछले दस वर्षों में राजनीति में धर्म और फिर धर्म में राजनीतिक स्वार्थ ये सब बढ़ गया है। धर्म एक अफीम की गोली है। वह अफीम भाजपा ने घर-घर पहुंचाई। लोगों को धर्म की लत लगा दी है। पर्यटन उद्योग के एक प्रमुख व्यक्ति से मुलाकात हुई, ‘देश में पर्यटन उद्योग दम तोड़ रहा है।
पर्यटक भारत नहीं आते। वे श्रीलंका, मलेशिया, थाईलैंड, मॉरीशस जा रहे हैं।’ ऐसा उन्होंने बताया। ऐसा क्यों हो रहा है? इस पर उन्होंने कहा, ‘भारत अब धर्मातीत राज्य नहीं रह गया। भारत में अब पर्यटक नहीं आते बल्कि pilgrimage यानी तीर्थयात्री आते हैं। वे धर्मशालाओं, छोटे लॉजों में ठहरते हैं। ये ज्यादा खर्च नहीं करते और ये लोग मुख्य रूप से तीर्थ स्थलों, धार्मिक स्थलों पर जाते हैं। इससे पर्यटन स्थलों का महत्व कम हो गया है। सरकार पर्यटन स्थलों से ज्यादा तीर्थ स्थलों पर खर्च कर रही है। योजना यह है कि लोग हर समय बैठकर जप-तप करते रहें। दूसरा यह है कि पर्यटकों के साथ अपने यहां अच्छा व्यवहार नहीं होता। महिला पर्यटकों के साथ बलात्कार और छेड़छाड़ की घटनाएं बढ़ गई हैं।’ धर्मकांड की अति होने के कारण भारत अपना उद्योग, व्यापार, प्रतिष्ठा, संस्कृति खो रहा है। चुनाव अब धर्म पर ही लड़े जाते हैं। इसलिए सत्ता का अधिष्ठान भी धर्म बन गया है। दिल्ली विधानसभा चुनाव में भाजपा कार्यालयों को एक रात में ‘जय श्रीराम’ के नारों से रंग दिया गया और पूरी दिल्ली में ऐसे झंडे लगाए गए। यह चुनाव जीतने का एक नया तरीका है।
नेहरू का यज्ञ
नरेंद्र मोदी खुद को हिंदुओं का धर्माचार्य मानते हैं और उनको लगता ​​है कि वो हैं इसलिए हिंदू सांस ले रहे हैं। पंडित नेहरू से लेकर आगे के सभी प्रधानमंत्री धर्म के हत्यारे थे, ऐसा कुप्रचार जारी है लेकिन यह सच नहीं है। मोदी गंगास्नान के बाद कुंभ मेले में आए। इस समय हिंदुओं के अखाड़ों का महत्व है। अखाड़ों को एकजुट कर एक अखाड़ा परिषद स्थापित करने की पहल तब पंडित नेहरू ने की थी, ये सच आज के नव-हिंदुत्ववादी कभी नहीं बताएंगे। वर्ष १९६२ में भारत और चीन के बीच युद्ध छिड़ गया। चीन युद्ध जीतने की ओर बढ़ रहा था। भारत कमजोर पड़ गया। पंडित नेहरू हताश हो गए। उन्होंने मंत्रिमंडल के अपने करीबी सहयोगियों से पूछा, ‘अब क्या? धर्म ही मदद कर पाएगा। कोई मुझे एक महात्मा बताएं जो इस युद्ध को रोक सके या कोई ऐसा समाधान बताए, जिससे भारत की गरिमा बनी रहे।’ मंत्रिमंडल में कुछ धार्मिक लोग थे। उन्होंने कहा, ‘एक स्वामीजी हैं। अगर वे चाहें तो युद्ध रोक सकते हैं। उनके पास ऐसी दिव्य शक्ति है।’ नेहरू ने पूछा, वह महात्मा कौन हैं? तो जवाब आया राष्ट्रीय स्वामी दजिया, जो दक्षिण काशी मंदिर पीठ के अनुयायी हैं। कालीमाता के एक समर्पित भक्त हैं। जवाहरलाल नेहरू ने हरिद्वार के जिला मजिस्ट्रेट को एक तार भेजा। डी. एम. ने स्वामीजी और पंडितजी से बात कराई। दोनों के बीच बातचीत हुई। स्वामी जी ने कहा, मैं भारत की सुरक्षा के लिए यज्ञ करूंगा, लेकिन मेरी एक शर्त है। आपको इस यज्ञ का यजमान बनना पड़ेगा। पंडितजी ने कहा, स्वामीजी, मुझे खुशी तो अवश्य होगी, लेकिन मुझे शांति वार्ता के लिए विदेश जाना होगा। मैं अपनी बेटी इंदिरा को भेजता हूं। वह यजमान बनेंगी। मैं पूर्णाहुति के दिन यज्ञ स्थल पर पहुंच जाऊंंगा। तयनुसार पूर्णाहुति के दिन पंडितजी आ गए। यज्ञ की पूर्णाहुति हो गई। तब चीन ने युद्ध रोक दिया और सीजफायर की घोषणा कर दी। चीन युद्ध जीत रहा था। हालांकि, चीन ने युद्ध रोक दिया। नहीं तो भारत को बहुत नुकसान होता। कैलाशानंद गिरि निरंजन अखाड़े के प्रमुख हैं। उन्होंने यह प्रसंग बताया और ये सच है। राजनीति में धर्म एक आधार है, सर्वस्व नहीं। मोदी ने धर्म और राजनीति का ऐसा मिश्रण कर दिया कि देश का सुसंस्कृत चेहरा ही बदल गया।
सब अंधविश्वास है। अब हर चुनाव में धर्म को लाया जाता है। आस्था की जगह अंधविश्वास फैलाकर लोगों को गुमराह किया जा रहा है। हम भूल गए हैं कि सच्चा धर्म मानवता में है। भगवान न तीर्थ में है, न मूर्ति में है। वह आपके समक्ष दरिद्र नारायण के रूप में प्रत्यक्ष ख़ड़ा है उसी की प्रेमपूर्वक सेवा करो, ऐसा कहनेवाले एक संत ने गाडगे बाबा के रूप में यहां जन्म लिया, जिन्होंने अंधश्रद्धा पर प्रहार किया। वहीं महाराष्ट्र सरकार अंधविश्वास के मायाजाल में फंस गई। मुख्यमंत्री फडणवीस ‘वर्षा’ बंगले में जाने को तैयार नहीं; क्योंकि अफवाह है कि पिछले किराएदार ने बंगले में काला जादू किया है। इससे पहले के शासनप्रमुख सत्ता बनाए रखने के लिए भैंसे की बलि चढ़ाने असम के कामाख्या मंदिर जाते थे और उसी बलि च़ढ़ाए गए भैंसे की सींगों को उन्होंने मुख्यमंत्री के शासकीय आवास में गाड़ दी हैं। क्यों, क्योंकि नए मुख्यमंत्री वहां टिक नहीं पाएं। प्रगतिशील महाराष्ट्र में यह सब हो, यह दुर्भाग्यपूर्ण है और यह उससे भी अधिक दुर्भाग्यपूर्ण है कि मुख्यमंत्री इस पर विश्वास करें और ‘वर्षा’ जाने से बचें। अंधविश्वास निर्मूलन कानून ऐसे समय में क्या कर रहा है? भूत नहीं है और उस गड़े हुए सींग से कौआ भी नहीं मरता, यह अंधविश्वास निर्मूलनवालों को दृढ़तापूर्वक कहना चाहिए। युद्ध और संघर्ष का बिगुल बजाने वाला महाराष्ट्र मृत भैंसे की सींगों के मायाजाल में फंस गया है। जिस देश का प्रधानमंत्री ही अंधविश्वास का वाहक बन गया, उस देश में और क्या होगा!

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