संजय राऊत-कार्यकारी संपादक
भारत में चुनाव के खत्म होते-होते इंग्लैंड में चुनाव की घोषणा कर दी गई। इंग्लैंड में चुनाव का पूरा कार्यक्रम महज २५ दिनों में खत्म हो जाएगा। प्रधानमंत्री सुनक के सामने बेरोजगारी और इंग्लैंड में बढ़ते अपराध की चुनौती है। सत्ताधारी और विपक्ष सिर्फ राष्ट्रीय मुद्दों पर बात करते हैं। प्रचार-प्रसार का स्तर भारत जैसा नहीं गिरा है। सुनक ने इंग्लैंड में ‘अग्निवीर’ योजना की घोषणा की, जिस पर यहां भी तूफान उठा। फिर भी उनका संविधान इंग्लैंड में मजबूती से खड़ा है!
भारत में लोकसभा चुनाव खत्म हो चुके हैं और ४ जून को नतीजे आएंगे। स्कॉटलैंड में उतरते ही इंग्लैंड के प्रधानमंत्री ऋषि सुनक ने अपने देश में आम चुनाव की घोषणा कर दी और एलान किया कि चुनाव प्रचार स्कॉटलैंड से शुरू होगा। अंग्रेजों ने भारत छो़ड़ते समय हमें लोकतंत्र, व्यक्तिगत स्वतंत्रता जैसी कुछ महान चीजें सौंपी। इंग्लैंड ने साम्राज्यवाद के पंख पैâलाए, परंतु लोकतंत्र की नींव को ढहने नहीं दिया। आज तस्वीर यह है कि महज सत्तर साल में भारत ने लोकतंत्र का साफ तौर पर कचरा कर दिया है। यह पिछले दस सालों में सबसे ज्यादा हुआ है, लेकिन इंग्लैंड में लोकतंत्र की मशाल जलती दिख रही है। भारतीय मूल के ऋषि सुनक लोकतांत्रिक मार्ग से संसद में चुने गए और इंग्लैंड के संकट काल में वे उस महान देश के प्रधानमंत्री बने। जिस देश पर हमने शासन किया, वहां का कोई व्यक्ति हमारा प्रधानमंत्री बने ये हमें मंजूर नहीं, ऐसा गला फाड़कर बोलनेवाला नकली राष्ट्रवाद वहां सुनक का विरोध करने के लिए खड़ा नहीं हुआ। सादिक खान वर्तमान में लंदन के मेयर हैं। सादिक खान यदि लंदन जैसे शहर के मेयर बन गए तो लंदन के मुसलमान वहां रहनेवाले अन्य धर्मीय लोगों के गले का ‘सोना’ लूट लेंगे, ऐसा प्रचार कभी प्रधानमंत्री सुनक ने किया हो, यह नजर नहीं आता। प्रधानमंत्री सुनक ने बेहद शांत तरीके से चुनाव की घोषणा की। सुनक ने जाहिर किया कि उन्होंने ‘राजा’ से संसद को बर्खास्त कर चुनाव कराने की अनुमति मांगी है। सब कुछ सुविधानुसार हुआ। सुनक और उनकी पार्टी को प्रचार करने में आसानी हो इसके लिए चुनाव आयोग पर दबाव डालकर सात चरणों में चुनाव की तारीखों की घोषणा नहीं की गई, यह महत्वपूर्ण है। चुनाव एक ही दिन ४ जुलाई को होंगे। संसद का आखिरी दिन २४ मई होगा। ३० मई को संसद के औपचारिक रूप से खत्म होने के आगामी २५ ‘वर्विंâग डेज'(Working days) के बाद चुनाव होंगे। ब्रिटिश संसद के Fixed term parliament Act २०११ के अनुसार यह प्रक्रिया आसानी से संपन्न हुई।
भारत में पिछले दस साल में ऐसा नहीं हुआ। संसद भवन बदला गया। माथे पर भस्म-चंदन लगाए मोदी नामक एक व्यक्ति हाथ में ‘सेंगॉल’ लिए घूमता रहा, जिसका लोकतंत्र, संसद की गरिमा से कोई लेना-देना नहीं था। भारतीयों को आजादी दी गई तो वे बेचकर खाएंगे, चर्चिल के इस बोल को पिछले दस वर्षों में सही साबित करने का काम मोदी और उनके लोगों ने किया है।
सुनक जीतेंगे?
सुनक रिचमंड (यॉर्क) संसदीय क्षेत्र से चुने जाते हैं। यह सीट १९१० से कंजर्वेटिव पार्टी के पास है और सुनक के इसी निर्वाचन क्षेत्र से फिर से चुने जाने की उम्मीद है। सुनक फिलहाल अपने निर्वाचन क्षेत्र में मतदाताओं से मुलाकात कर रहे हैं। वह निर्वाचन क्षेत्र में पबों, क्लबों में जाते हैं और युवाओं और बुजुर्गों से बातचीत करते हैं। वे उनके साथ चाय पीते हैं, बातें करते हैं। निर्वाचन क्षेत्र के पूर्व सैनिकों के भविष्य के बारे में बात करते हैं। सुनक और उनके विरोधियों का प्रचार गुमराह करने वाला नहीं है। वे केवल राष्ट्रीय मुद्दों पर बात करते हैं। भारत की तरह व्यक्तिगत आरोप लगाकर प्रधानमंत्री पद की प्रतिष्ठा को मलीन करने का काम श्री. सुनक नहीं करते। सुनक का धर्म हिंदू है। उनके देश में वे अल्पसंख्यक हैं। उनके विरोधी कहीं भी उनके अल्पसंख्यक होने का मुद्दा नहीं लाते। भारत में ‘अग्निवीर’ योजना प्रचार में लोकप्रिय हुई। बेरोजगारों को नौकरी का लालच देकर चार साल के अनुबंध के आधार पर सेना में नौकरी दी जाती है। यह अग्निवीर योजना असल में सेना का अपमान और युवाओं से धोखा है, ऐसा प्रचार राहुल गांधी और अन्य मोदी विरोधियों ने किया। आश्चर्य की बात यह है कि सुनक साहब ने अपने प्रचार में इंग्लैंड के युवाओं के लिए एक अलग ही अग्निवीर योजना की घोषणा की। १८ वर्ष से अधिक उम्र के युवाओं को ‘राष्ट्रीय सेवा’ करने के लिए सेना में भर्ती करने की यह योजना उनके ही देश में विवादास्पद होती जा रही है। सुनक प्रचार में कहते हैं कि १८ वर्ष से कम उम्र के युवाओं को सेना में पूर्णकालिक नौकरी मिलेगी अथवा जो अल्पकालिक सेवा करना चाहते हैं, उन्हें वैसे अवसर मिलेंगे। कुल मिलाकर, भारत और ब्रिटेन में बेरोजगारों को रोजगार देने के लिए सेना ही एकमात्र क्षेत्र बचा है। सुनक के विरोधियों ने इंग्लैंड की अग्निवीर योजना का विरोध किया। उनका कहना है कि ये तो सीधे धूल फेंकने जैसा है। १८ साल से ऊपर के युवाओं को सेना में कौन सा काम मिलेगा? सुनक ने कहा, उनके देश को आंतरिक और बाहरी ताकतों से खतरा है। सेना में साइबर सुरक्षा, सिविल सेवा जैसे कई विभागों में नौकरियां सृजित होंगी। युवा ब्रिटिश सेना की वर्दी पहनकर राष्ट्रीय सुरक्षा के लिए काम कर पाएंगे। सुनक ने अग्निवीर योजना की घोषणा करके प्रचार में एक नया मुद्दा पेश किया। ब्रिटेन में बेरोजगारी बढ़ गई है। परिणामस्वरूप अपराध दर में वृद्धि हुई है। सड़कों पर चोरियां होती हैं। हाथ की घड़ी, आभूषण, मोबाइल छीन लिए जाते हैं। ये बेरोजगारी के कारण हैं। यदि सुनक चुनाव हार गए तो बेरोजगारी और अपराध इसका मुख्य कारण होगा।
२५ दिन का प्रचार
भारत में आम चुनाव सात चरणों में हुआ। यह अभियान ५० दिनों से अधिक समय तक चला। इंग्लैंड का अभियान २५ दिन में खत्म हो जाएगा। ये २५ दिन भी बहुत हैं, ऐसा यहां के लोगों का मानना है। इस समय इंग्लैंड में लॉन्ग वीकेंड है। लोग छुट्टियों का लुत्फ उठाने के लिए बाहर जा रहे हैं। रविवार को पूरा लंदन साइकिल चालकों के लिए होता है। हजारों साइकिल चालक लंदन की सड़कों पर आए थे और उनका उत्साह बढ़ाने के लिए सड़क के दोनों तरफ लोग खड़े थे। उनके बीच में कोई भी नेता प्रचार के लिए नहीं घुसा। लोग बिना किसी रोक-टोक के वहां मौजूद थे। फुटबॉल मैच के लिए कई जगहों पर लोग इकट्ठा हुए। होटल, रेस्तरां, पब में लोग बीयर और शराब के गिलास सामने रखकर फुटबॉल मैच देख रहे थे। चुनाव का क्या हाल है, यह कल देखेंगे। आज आनंद उठा लें। चैनलों पर फुटबॉल मैच शुरू रहने के दौरान उसका प्रसारण रोककर प्रधानमंंत्री सुनक बीच में ही परदे पर आए और प्रचार का नारियल फोड़कर चले गए, ऐसा कभी दिखा नहीं। एक ओर जहां नेता सभ्यता का पालन करते हैं, वहीं जनता नेताओं की बेकार हरकतों को बर्दाश्त नहीं करती। भारतीय राजनेता लंदन घूमने तो आते हैं, लेकिन लौटते समय लंदन की राजनीतिक सभ्यता को यहीं छोड़ जाते हैं।
इंग्लैंड में डॉ. आंबेडकर
लंदन के किंग हेनरी रोड पर १९२०-२१ के अल्पकाल में डॉ. बाबासाहेब आंबेडकर का आवास था। इस वास्तु को महाराष्ट्र सरकार ने अपने कब्जे में लिया और वहां एक स्मारक बनाया। जब मैंने मंगलवार को स्मारक का दौरा किया तो क्षणभर के लिए रोमांचित हो उठा। यहां भारतीय संविधान के निर्माता और शोषितों के न्याय और अधिकारों के लिए लड़ने वाले डॉ. आंबेडकर रहते थे, यह बतानेवाली नीले रंग की एक पाटी ब्रिटिश सरकार ने घर की दीवार पर लगाई है। यह घर दो मंजिला है। डॉ. बाबासाहेब आंबेडकर की जीवन यात्रा की कुछ तस्वीरें यहां के दालान में लगी हुई हैं। कालाराम मंदिर, महाड के चवदार तालाब का संघर्ष, पंडित नेहरू की मौजूदगी में कानून मंत्री के रूप में शपथ लेते हुए डॉ. आंबेडकर की तस्वीरें वहां लगी हुई हैं। बिड़ला हाउस में शाम की प्रार्थना के दौरान महात्मा गांधी की हत्या हुई तो वहां घटनास्थल पर सबसे पहले पहुंचनेवालों में डॉ. आंबेडकर थे। घटनास्थल के इस दृश्य का एक दुर्लभ चित्र उस हॉल में है। डॉ. आंबेडकर ने भारत को संविधान दिया। भारतीय संविधान में इंग्लैंड की छाप होने की आलोचना उस समय विरोधियों ने की, लेकिन इंग्लैंड में सरकार संविधान के अनुसार ही चल रही है और भारत में डॉ. आंबेडकर द्वारा दिए गए संविधान की आए दिन अवहेलना हो रही है। नरेंद्र मोदी के दोबारा चुनकर आने की संभावना बिल्कुल नहीं है। आ भी गए तो डॉ. आंबेडकर और उनके द्वारा बनाए गए संविधान को ही वे आग लगा देंगे, ऐसा विचार इंग्लैंड में डॉ. आंबेडकर भवन में टहलते हुए मुझे आया। दूसरी मंजिल पर डॉ. आंबेडकर का चश्मा रखा हुआ है, लेकिन आज के शासक दृष्टिहीन हो गए हैं। वहां आंबेडकर का शयनकक्ष है। इस महामानव ने शायद कुछ समय के लिए यहां विश्राम किया होगा और अपने देश में शोषितों के संघर्ष को बढ़ाने के लिए भारत लौट आए होंगे। अथक परिश्रम किया। ‘मूकनायक’ के कुछ अंक दीवार पर लगे हैं, जिसमें उनके एक लेख का शीर्षक है – ‘स्वराज्याची सर सुराज्याला नाही.’ आज के दौर में भी ये बिल्कुल सही बैठती है। ‘अच्छे दिन’ का सपना दिखाकर भारत में स्वराज्य और स्वतंत्रता का गला घोंटने की राजनीति हुई। आंबेडकर ब्रिटिश शासन के बजाय स्वराज चाहते थे। शासन वैâसे करें, इसकी सीख आंबेडकर ने अपने इसी लेख में दी है। वे कहते हैं, ‘शासन करने का मतलब प्रजा को ऐसा-वैसा करने न दें और वैसा करके शांति भंग करने पर दंडित किया जाएगा। ऐसा आदेश देनेवाली ऐसी शासन परंपरा को हाल के दिनों में बर्बर कहना होगा। सुधरे हुए राष्ट्र की शासन प्रणाली का झुकाव जितना सरकार की ओर होता है, उतना ही झुकाव संस्कृति की ओर होता है। प्रजा की उन्नति वैâसे ज्यादा होगी, इसकी योजना बनाना, उसके संसाधनों को सभी के लिए समान रूप से उपलब्ध कराना, प्रगति के लिए अनुकूल परिस्थितियां बनाना, यह शासन करने का दूसरा उद्देश्य सरकार जितना ही जरूरी हो गया है, बल्कि उससे भी अधिक महत्वपूर्ण हो गया है।’
डॉ. आंबेडकर के जीवन में और कार्य में नैतिकता का सर्वोच्च स्थान रहा, यह इंग्लैंड में उनकी वास्तु की दीवार पर अंकित है।
भारत में उसी नैतिकता के नाम पर ठनठन है।