संजय राऊत-कार्यकारी संपादक
महाराष्ट्र में विधानसभा चुनावों के लिए महज ३५ दिन बचे हैं। २३ नवंबर को नतीजे घोषित होंगे और २६ तारीख तक सरकार बनानी होगी। गठबंधन की राजनीति में सरकार बनाने के लिए सिर्फ ४८ घंटे मिलेंगे और उसमें समय लगा तो अमित शाह महाराष्ट्र में पुन: राष्ट्रपति शासन लगा देंगे। इस साजिश को नाकाम करना होगा!
महाराष्ट्र ही नहीं, बल्कि देश की राजनीति को पूरी तरह नया मोड़ देनेवाले महाराष्ट्र विधानसभा चुनाव की आखिरकार घोषणा हो गई है। मंगलवार दोपहर ३.३० बजे चुनाव आयोग ने प्रेस काॅन्फ्रेंस कर तारीखों का एलान कर दिया। २० नवंबर को मतदान होगा। २३ नवंबर को मतगणना होगी। मतगणना का काम २४ तारीख तक चलेगा। महाराष्ट्र की मौजूदा विधानसभा का कार्यकाल २६ नवंबर तक है। यानी नई सरकार बनाने के लिए २४ से २६ अर्थात ४८ घंटों का समय मिलेगा। यह पर्याप्त नहीं है। ४८ घंटे के अंदर सरकार का गठन कर शपथ ग्रहण कराना होगा। इस दौरान दोनों गठबंधनों को अपने-अपने विधायकों को एकत्रित करके बहुमत दिखाना होगा। विधायकों के साथ बैठक कर नेता नियुक्ति की प्रक्रिया पूरी करनी होगी। ये सब अगर नतीजे आने के ४८ घंटे के भीतर नहीं हुआ तो विधानसभा का कार्यकाल समाप्त हो जाएगा और नई विधानसभा अस्तित्व में नहीं आई इसलिए राज्यपाल राज्य में राष्ट्रपति शासन लगाने की सिफारिश करेंगे। उसी योजना के तहत भाजपा महाराष्ट्र में जल्दबाजी में चुनाव करवाकर अपना एजेंडा पूरा कर रही है। अमित शाह और महाराष्ट्र के भाजपा नेताओं को यकीन है कि वे महाराष्ट्र हार जाएंगे। ऐसे में महाविकास आघाड़ी जीत गई, तब भी उन्हें सरकार बनाने के लिए पर्याप्त समय न मिल पाए। उसके बाद छह महीने के लिए राष्ट्रपति शासन लगाकर राज करेंगे, कुल मिलाकर यही चाल दिखाई देती है।
केवल ३५ दिन
चुनाव के लिए सिर्फ ३५ दिन की ही मोहलत मिली है और चुनाव आयोग ने ये सब जानबूझकर किया है। महाराष्ट्र में एक पूरी तरह से अवैध सरकार चुनाव आयोग, सुप्रीम कोर्ट और देश के प्रधानमंत्री सहित गृहमंत्री की मिलीभगत से चलाई गई। इसमें मुख्य किरदार निभानेवाले देश के मुख्य न्यायाधीश १० नवंबर को रिटायर हो जाएंगे। अपने कार्यकाल में उन्होंने शिवसेना या राष्ट्रवादी कांग्रेस किसकी है, इसका पैâसला तक नहीं किया। विधायकों की अयोग्यता पर उन्होंने पैâसला नहीं दिया और चुनावों की घोषणा हो गई तब भी तारीखों का खेल जारी ही रखा। यह सीधे-सीधे कानून और संविधान की नीलामी है। मोदी-शाह के आगे झुकनेवाले और दबाव में काम करनेवाले देश के न्यायाधीश के रूप में अपनी शान दिखाते हैं, इसका दुख है। विधान परिषद में राज्यपाल सी. पी. राधाकृष्णन द्वारा मंजूर सात मनोनीत सदस्यों को जल्दबाजी में १५ अक्टूबर को शपथ दिलाई गई। यह एक और गैरकानूनी काम विधान भवन में हुआ। ढाई साल पहले ठाकरे मंत्रिमंडल द्वारा अनुमोदित एक सूची राजभवन में पड़ी हुई है। इस पर निर्णय लें, ऐसी एक याचिका पर न्यायालय में सुनवाई शुरू है; लेकिन १५ तारीख को चुनाव की घोषणा होने से चार घंटे पहले सात सदस्यों की राज्य सरकार ने सिफारिश की, उन नामों को राज्यपाल ने तुरंत मंजूरी दे दी और आनन-फानन में उन सात लोगों को विधान भवन में शपथ दिलाई गई। देश के संविधान को राजभवन के पीछे समुद्र में सब ने मिलकर डुबो दिया। यह एक राष्ट्रीय पाप है। लोकतंत्र का इतना बड़ा अपमान देश ने खुली आंखों से देखा। इन सात सदस्यों में से एक इद्रिस नायकवडी का प्रताप ये है कि उन्होंने सांगली महानगरपालिका में ‘वंदे मातरम’ का विरोध किया था। ‘वंदे मातरम’ न हो इसके लिए उन्होंने सदन में हंगामा कर दिया और आज वही मोदी-शाह, फडणवीस एवं एकनाथ शिंदे की कृपा से राज्यपाल नियुक्त विधायक बन गए। क्या भाजपा और शिंदे में हिंदुत्व, देशभक्ति आदि विषयों पर बात करने की नैतिकता बची है?
कैसा चुनाव आयुक्त?
देश के चुनाव आयुक्त भारतीय जनता पार्टी के प्रवक्ता की तरह व्यवहार कर रहे हैं। वे ‘ईवीएम’ का समर्थन करते हैं। वे एग्जिट पोल की आलोचना करते हैं, लेकिन हरियाणा विधानसभा चुनाव में सबूतों के साथ उजागर हुए ‘ईवीएम’ घोटालों पर चुप रहते हैं। महाराष्ट्र के लोकसभा चुनाव में जमकर पैसों का इस्तेमाल हुआ। भाजपा के चहेते चुनाव आयोग ने इनमें से किसी भी शिकायत पर संज्ञान नहीं लिया। १५ अक्टूबर को दोपहर २ बजे तक महाराष्ट्र के कम से कम २०० निर्वाचन क्षेत्रों में प्रत्येक को औसतन १५ करोड़ रुपए मिंधे ने बांटे। दोपहर ३.३० बजे चुनाव आयोग ने चुनाव की तारीखों का एलान किया और आचार संहिता लागू कर दी। सरकारी पैसों की बंदरबांट हो गई। अब विपक्ष पर छापा मारने के लिए चुनाव आयोग स्वतंत्र है। लोकतंत्र का यह उपहास दिन-ब-दिन बढ़ता ही जा रहा है। इस उपहास को समाप्त करने और महाराष्ट्र को भयमुक्त और भ्रष्टाचारमुक्त बनाने के लिए यह चुनाव बहुत महत्वपूर्ण है। देश की सभी संवैधानिक संस्थाएं भ्रष्टाचार और भय के बोझ तले दबी हुई हैं। दिल्ली के दो नेताओं की मनमानी बर्दाश्त करने के अलावा लोकतंत्र का कोई अस्तित्व नहीं है। चुनाव की घोषणा होते ही देवेंद्र फडणवीस ने एक प्रेस कॉन्प्रâेंस की और महाविकास आघाड़ी पर भ्रष्टाचार के आरोप लगाए। तब उनकी बगल में अजीत पवार बैठे थे, जिन पर प्रधानमंत्री मोदी ने ७० हजार करोड़ के सिंचाई घोटाले का आरोप लगाया था। उसी प्रेस कॉन्प्रâेंस में शिंदे ने खिचड़ी घोटाला, बॉडी बैग घोटाले पर बात की; लेकिन ईडी, सीबीआई द्वारा भ्रष्टाचार के आरोपी १७ विधायक कार्रवाई के डर से उनके साथ चले गए, यह बताना शिंदे भूल गए। चंद्रबाबू नायडू पर ईडी ने ३७१ करोड़ रुपए के घोटाले का आरोप लगाया था। नायडू ५३ दिनों तक जेल में रहे। ईडी ने नायडू की २४ करोड़ रुपए की संपत्ति जब्त कर ली। अब नायडू के मोदी सरकार का सहारा बनते ही ईडी ने उन्हें सीधे क्लीन चिट दे दी। दाऊद इब्राहिम से डील करने वाले प्रफुल्ल पटेल भी छूट गए! शिंदे भी उसी कतार में थे। शिवसेना छो़ड़ दें अन्यथा जेल जाएं, ऐसा विकल्प अमित शाह ने शिंदे के सामने रखा था। उन शिंदे ने पिछले ढाई साल में दिल्ली में कितने हजार करोड़ के बैग पहुंचाए पहले इसका हिसाब दें और फिर खिचड़ी आदि घोटाले के बारे में बात करें। महाराष्ट्र की राजनीति को इन लोगों ने खिचड़ी बना दिया है। इस दुष्टचक्र को तोड़ना होगा। महाराष्ट्र की भ्रष्ट महायुति एक कलंक है। राज्य की जनता इस कलंक को मिटा देगी!