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रोखठोक : मुंब्रा से दादर-माहिम … फडणवीस की राजनीति पराजित हो रही है!

संजय राऊत -कार्यकारी संपादक

फडणवीस के सुझाव पर श्री. राज ठाकरे शरद पवार और उद्धव ठाकरे पर टिप्पणी कर रहे हैं। महाराष्ट्र के स्वाभिमान पर निशाना साधने का उनका यह प्रयास ठीक नहीं है। फडणवीस ने शिवराय के मंदिर पर ही टिप्पणी करना शुरू कर दिया है। क्या शिवराय का मंदिर मुंब्रा में बनेगा? ऐसा वे पूछते हैं। मुंब्रा से दादर-माहिम हर जगह स्वाभिमान की ही विचारधारा है। फडणवीस, आपकी
जहरीली राजनीति पराजित होगी!

जिस महाराष्ट्र में छत्रपति शिवाजी महाराज ने एक समय मुगल शासन से लड़कर प्रथम हिंदवी स्वराज्य की स्थापना की और दुनिया को मर्‍हाटा स्वाभिमान का परिचय दिया, उसी महाराष्ट्र में शिवराय से ही बैर लेनेवाले और दिल्ली के तलवे चाटनेवाले राजनेता पैदा हुए हैं। ऐसे सभी महाराष्ट्र द्वेषियों के मुखौटे राज्य विधानसभा चुनाव में उतर गए। महाराष्ट्र एक धर्म है और यह चुनाव महाराष्ट्र के स्वाभिमान के लिए धर्मयुद्ध है। इस धर्मयुद्ध में कौन किसका साथ देगा, यह देखना दिलचस्प होगा। नरेंद्र मोदी और अमित शाह महाराष्ट्र के शत्रु हैं। उन्हें महाराष्ट्र में घुसने मत दो, ऐसी गर्जना करनेवाले राज ठाकरे अब मोदी और शाह के खेमे में शामिल हो गए और महाराष्ट्र का अगला मुख्यमंत्री भाजपा का यानी मोदी-शाह चाहेंगे वही होगा, यह स्वीकार कर वे भाजपा की मदद के लिए निकल पड़े हैं। राज ठाकरे ने अपने चिरंजीव अमित ठाकरे को दादर-माहिम विधानसभा से खड़ा किया है और चि. अमित की जीत के लिए उन्हें भाजपा के मदद की जरूरत है। इसके लिए उन्होंने महाराष्ट्र में हर जगह अपने उम्मीदवार उतारे हैं। श्री अमित ठाकरे युवा हैं और उन्हें चुनाव लड़ाने का पूरा अधिकार है। हर कोई चाहता है कि ज्यादा से ज्यादा अच्छे युवा राजनीति में आएं। सवाल यही है कि एक सीट जीतने के लिए ‘मनसे’ ने भाजपा की बाकी सभी जगहों पर मदद हो, ऐसी भूमिका अपनाई है। पहला ये कि भाजपा आज महाराष्ट्र की ‘नंबर वन’ दुश्मन है और दूसरा ये कि देवेंद्र फडणवीस की मदद करना यानी हिंदूहृदयसम्राट बालासाहेब ठाकरे के दुश्मनों की मदद करना है। एकनाथ शिंदे के उम्मीदवार ने यहां राज ठाकरे के खिलाफ खुला रुख अपनाया। श्री. राज ठाकरे ने शिवसेना विभाजन के दौरान एकनाथ शिंदे की गद्दारी का समर्थन किया था। क्योंकि ये सब उद्धव ठाकरे के विरोध में हुआ था। राज ठाकरे को तो मजा आया होगा। इस दौरान मुख्यमंत्री शिंदे और राज ठाकरे के बीच कई मुलाकातें हुर्इं। एक-दूसरे के पास आते-जाते रहे, लेकिन राजनीति में राज्य की अपेक्षा खुद का स्वार्थ अहम होता है। राज ठाकरे को शिंदे की अपेक्षा फडणवीस ज्यादा करीबी लगते हैं। क्योंकि ईडी, सीबीआई जैसी एजेंसियों की कमान दिल्ली में बैठे शाह-मोदी के पास है और शिंदे को राज ठाकरे का वर्चस्व स्वीकार नहीं होगा। शिंदे जनता के नेता नहीं हैं और न ही कभी होंगे। वे पैसों से जुटाई गई भीड़ के अस्थायी नेता हैं और फिलहाल उन्हें फडणवीस-राज ठाकरे के एक साथ आकर अपना कांटा निकालने का डर सता रहा है। इसलिए दादर-माहिम निर्वाचन क्षेत्र में राज ठाकरे के चिरंजीव की हार हो, इसके लिए वे एक बार फिर गुवाहाटी में कामाख्या देवी का दर्शन कर के आ गए होंगे।
महाराष्ट्र का स्वाभिमान निशाने पर
एक दादर-माहिम निर्वाचन क्षेत्र के लिए राज ठाकरे ने पूरे महाराष्ट्र के स्वाभिमान को दांव पर लगा दिया है और शरद पवार से लेकर उद्धव ठाकरे तक सभी की आलोचना कर रहे हैं। श्री. राज ठाकरे आखिर कहना क्या चाहते हैं? इस बारे में हमेशा भ्रम निर्माण होता है। वे अब कह रहे हैं कि शिवसेना और धनुषबाण शिवसेनाप्रमुख बालासाहेब ठाकरे की ही संपत्ति हैं। यह संपत्ति बालासाहेब की है, ये उन्हें दो वर्ष बाद समझ में आया, लेकिन जिन्होंने यह संपत्ति चुराई और एकनाथ शिंदे के हाथों में प्रसाद की तरह रख दिया, उन मोदी-शाह-फडणवीस के समर्थन में आज राज ठाकरे खड़े हैं। ये क्या है! वंचितों की राजनीति करनेवाले श्री. प्रकाश आंबेडकर और राज ठाकरे मोदी-शाह की महाराष्ट्र विरोधी राजनीति पर खुलकर बात करने को तैयार नहीं हैं। महाराष्ट्र की सारी संपत्ति गुजरात खींचकर ले जाई जा रही है और कल महाराष्ट्र को बिहार की तरह हमेशा दिल्ली के दरवाजे पर भीख का कटोरा लेकर खड़ा होना पड़ेगा, ऐसी स्थिति मोदी-शाह ने निर्माण कर दी है। जो लोग इस सब से आहत नहीं हैं, उनसे महाराष्ट्र को कोई उम्मीद नहीं है, लेकिन इस हठधर्मिता के कारण अकोला में प्रकाश आंबेडकर के साथ जो हुआ था, उसकी पुनरावृत्ति दादर-माहिम में होगी, यह स्पष्ट है। शिवसेना का जन्म दादर में हुआ था। इसलिए यहां के मतदाता उद्धव ठाकरे के ही साथ खड़े होंगे। दादर, माहिम, परेल अपना स्वाभिमान नहीं छोड़ेंगे।
शिवराय के मंदिर
मालवण में शिवराय की भव्य प्रतिमा भ्रष्टाचार के कारण टूटकर गिर गई। भाजपा के ठेकेदार पैसा खा सकें और उन पैसों से चुनाव लड़ सकें, इसके लिए इन लोगों ने छत्रपति को भी नहीं बख्शा। जैसे ही उद्धव ठाकरे ने घोषणा की कि हर जिले में छत्रपति शिवराय के मंदिर बनाए जाएंगे और लोगों को उससे स्वाभिमान की प्रेरणा मिलेगी, इन सभी भ्रष्ट ठेकेदारों के नेता फडणवीस चि़ढ़ गए और शिवराय का मंदिर बनाने की घोषणा का मजाक उड़ाने लगे। यह संतापजनक है। ‘‘वे छत्रपति शिवाजी महाराज का मंदिर बनाने निकले हैं। पहले मुंब्रा में शिवराय का मंदिर बनाकर दिखाएं,’’ ऐसी व्यंग्यात्मक भाषा बोलनेवाले फडणवीस के पेट का जहर इस तरह बाहर आ रहा है। श्री. फडणवीस को यह स्मरण होना चाहिए कि मुंब्रा पाकिस्तान में नहीं है। ये भारत और महाराष्ट्र में ही है और मुंब्रा के प्रवेश द्वार पर शिवराय की भव्य प्रतिमा है। दूसरा ये कि मुंब्रा भी उसी ठाणे जिले में है, जहां से उनके मुख्यमंत्री शिंदे आते हैं। अर्थात फडणवीस ने ये चुनौती शिंदे को दी है। अगर मुंब्रा में शिवराय का मंदिर बनाने की बात कहेंगे तो कोई भी विरोध नहीं करेगा। मुंबई के सभी मुस्लिम मोहल्लों में लालबाग के राजा सहित कई गणेश मंडलों का स्वागत किया जाता है। ऐसे में धार्मिक दंगे कराने के भाजपा के मंसूबे विफल हो जाते हैं। ‘धर्म मनुष्य की रक्षा के लिए है, उसके विनाश के लिए नहीं,’ इस आशय का जो पत्र उस समय छत्रपति ने औरंगजेब को भेजा था, वो आज भी उपलब्ध है। फडणवीस को ये एक बार समझ लेना चाहिए। शिवराय के प्रशासन और सेना में सभी धर्मों के लोग थे और इसीलिए वे महाराष्ट्र के दुश्मन से लड़ पाए। फडणवीस, राज ठाकरे, प्रकाश आंबेडकर किससे और किसके लिए लड़ रहे हैं? ये एक बार महाराष्ट्र को मालूम होने दें। ये तीनों अंदर से एक हैं और हाथ में हाथ डाले हुए हैं। इस भ्रम से बाहर कैसे निकलें?
योगी के ‘बटेंगे…’
महाराष्ट्र के मेरु पर्वत को भ्रष्टाचार की चींटियों ने खोखला कर दिया है। चुनाव में जब भ्रष्टाचार के इस मुद्दे पर चर्चा हो रही है तो काले धन वाले हर तरफ शोर मचाते फिर रहे हैं। मराठी प्रजा को महाराष्ट्र की अर्थव्यवस्था और प्रतिष्ठा को नष्ट करने के दिल्ली-गुजरात के उद्योग को रोकना चाहिए। राज्य बर्बाद हो रहा है। यह और बर्बाद न हो और जिन्होंने ऐसा किया है उन्हें फिर मौका न मिले, इस जोश के साथ मतदान होना चाहिए। उत्तर के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ मुंबई आते हैं और उनके स्वागत में ‘बटेंगे तो कटेंगे’ के पोस्टर्स और नारे लगाए जाते हैं। यह महाराष्ट्र का अपमान है। महाराष्ट्र मोदी-शाह-फडणवीस को बर्दाश्त नहीं कर सकता।
मराठी लोगों में फूट डालकर वे अलग राज्य बनाना चाहते हैं। राष्ट्र की एकता, कानून के शासन पर विश्वास करने वाले सभी जाति और धर्म के लोग मोदी, शाह, फडणवीस को हराना चाहते हैं। उनकी इच्छा सफल होगी, ऐसा वातावरण आज महाराष्ट्र में है।
मुंब्रा से लेकर दादर-माहिम तक यही वातावरण है। चिंता मत करो!

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