मुख्यपृष्ठनए समाचाररोखठोक : मराठी का अपमान, औरंगजेब का गौरव ...असली गुनहगार कौन?

रोखठोक : मराठी का अपमान, औरंगजेब का गौरव …असली गुनहगार कौन?

संजय राऊत-कार्यकारी संपादक

राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के नेता भैयाजी जोशी ने मुंबई आकर जोर से कहा, `मुंबई की भाषा मराठी नहीं है।’ इस पर राज्य सरकार गोल-मोल जवाब देकर चुप्पी साध गई। मराठी का अपमान करने वाले और औरंगजेब का महिमामंडन करने वाले अपने ही घर के हैं। अबू आजमी पर कार्रवाई हुई, लेकिन भाजपा परिवार के इन गुनहगारों को कौन बचा रहा है?

मराठी भाषा और मराठी लोगों के असली दुश्मन उनके अपने घरों में ही हैं और यह दिन-ब-दिन दिखाई पड़ रहा है। पिछले ४०-४५ वर्षों के राजनीतिक, सामाजिक और पत्रकारिता जीवन में मेरे जैसे कई लोगों ने कई लड़ाइयां लड़ी हैं। उसमें मराठी भाषा की लड़ाई कभी खत्म नहीं होगी। क्योंकि मराठी को चोट पहुंचाने वाले घर में ही हैं। दुनिया के इतिहास में ऐसी कोई लड़ाई नहीं हुई होगी, एक ऐसी लड़ाई में जिसमें सेना को पीछे हटने के लिए मजबूर होना पड़ा है, दुश्मन के हमले के कारण नहीं, बल्कि उन लोगों की दुराग्रह के कारण जिनके लिए हम लड़ते हैं। भारतीय जनता पार्टी और खासकर राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के प्रमुख नेता भैयाजी जोशी ने महाराष्ट्र की राजधानी मुंबई आकर धक्कादायक बयान दिया है। उन्होंने कहा, `मुंबई की भाषा मराठी नहीं है। मुंबई आने वाले हर व्यक्ति को मराठी आना जरूरी नहीं है।’ इतना ही नहीं श्री जोशी ने घोषणा की, `मुंबई में घाटकोपर जैसे इलाके की भाषा गुजराती ही है।’ मुंबई में दिए गए इस बयान ने महाराष्ट्र का दिल दुखाया है। केंद्र सरकार ने मराठी को अभिजात भाषा का दर्जा दिया। छत्रपति शिवाजी और छत्रपति संभाजी राजा की है यह मराठी भाषा। इसी भाषा से महाराष्ट्र का निर्माण हुआ। उस महाराष्ट्र के लिए शहादत देने वाले १०६ शहीदों की भाषा मराठी, लेकिन भैयाजी जोशी जैसे वरिष्ठ नेता `मराठी क्यों?’ ये सवाल मुंबई में आकर पूछते हैं और महाराष्ट्र ठंडा रहता है। सरकार दल के लोग जोशी के बयान का समर्थन करते हैं। मुंबई में कई लोग मराठी के लिए लड़ रहे हैं। यदि कोई आम अमराठी दुकानदार मराठी भाषा का अपमान करता है, तो ये मराठीवादी उस दुकानदार को थप्पड़ रसीद करते हैं और उसके बारे में शोर मचाकर प्रसिद्धि प्राप्त करते हैं, लेकिन जब भैयाजी जैसे संघ के वरिष्ठ नेता मराठी के बारे में गंभीर बयान देते हैं, तो ये सभी दल और कार्यकर्ता चुप्पी ओढ़ लेते हैं।

छत्रपति का मराठी स्वाभिमान
नेताओं को राजनीति के लिए छत्रपति शिवाजी और छत्रपति संभाजी की जरूरत होती है। उन्हें औरंगजेब की भी जरूरत होती है, लेकिन मराठी पर छत्रपति की भूमिका से वे सहमत नहीं हैं। हिंदवी स्वराज के बाद भाषा का प्रश्न उठा। स्वराज्य की भाषा क्या है? फारसी या मराठी? छत्रपति ने इसके लिए कोई अध्ययन समिति नियुक्त नहीं की। छत्रपति ने कहा, `महाराष्ट्र की भाषा मराठी है।’ ऐसा कहकर छत्रपति ने मराठी को राजभाषा बना दिया। अपने राज्याभिषेक के बाद छत्रपति ने जो पहला काम किया वह तुरंत `मराठी राजभाषा कोष’ बनाना और विदेशी भाषाओं को महाराष्ट्र से बाहर निकालना था। जो लोग इस इतिहास को नहीं जानते उन्हें महाराष्ट्र में कदम नहीं रखना चाहिए। लेकिन जो लोग खुले तौर पर कहते हैं कि मुंबई की भाषा मराठी नहीं है, उन्हें आज सरकार से संरक्षण मिलता है। राज्य सरकार को उन लोगों के खिलाफ भी देशद्रोह का मुकदमा दर्ज करना चाहिए जो कहते हैं कि मराठी मुंबई की भाषा नहीं है, लेकिन महाराष्ट्र में किस जाति और धर्म का इंसान बयान दे रहा है, उस आधार पर कार्रवाई की जाती है। मुंबई आकर जो बयान भैयाजी जोशी ने दिया अगर वैसा बयान लखनऊ से आए समाजवादी पार्टी के नेता या अबू आजमी ने दिया होता तो सदन में देवेंद्र फडणवीस और उनके विधायकों ने हंगामा कर दिया होता और उन सभी के खिलाफ देशद्रोह का मुकदमा दर्ज करा दिया होता, लेकिन भैयाजी जोशी तो भाजपा के नेता हैं। किसी ने उनका विरोध भी नहीं किया और विधानसभा में मुख्यमंत्री फडणवीस ने जो जवाब दिया उससे सभी खुश हो गए। फडणवीस ने कहा, `मुंबई की भाषा मराठी ही है,’ लेकिन वे उस भाषा पर हमला करने वालों को अभय दे रहे हैं।

अबू आजमी के खिलाफ कार्रवाई, अन्य आजाद
महाराष्ट्र में मराठी भाषा, इतिहास और स्वाभिमान के मामले में फडणवीस सरकार किस तरह से दोहरी भूमिका निभा रही है यह देखना जरूरी है। समाजवादी पार्टी के विधायक अबू आजमी ने विधानभवन परिसर में औरंगजेब का गुण-बखान किया। इससे शिवराय और संभाजी राजा का अपमान हुआ। सरकार ने अबू आजमी को विधानसभा से निलंबित कर दिया। अब हर कोई उनकी गिरफ्तारी की मांग कर रहा है, लेकिन भाजपा से जुड़े `महान’ लोगों ने इस दौरान दिनदहाड़े शिवराय का अपमान किया। वे सभी लोग आजाद हैं। राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के राहुल सोलापुरकर ने छत्रपति शिवाजी महाराज पर अब तक का सबसे गंदा आरोप लगाया। राहुल सोलापुरकर ने शिवाजी महाराज के भ्रष्टाचारी होने की बात कही। सोलापुरकर ने यह कहकर आगरा से छूट निकलने का इतिहास ही बदल दिया कि `महाराज का औरंगजेब की कैद से `आगरा’ से निकलना बिल्कुल भी बहादुरी नहीं थी। महाराज ने पहरेदारों और औरंगजेब के लोगों को रिश्वत दी और छूट गए।’ इस बाबत सोलापुरकर के खिलाफ क्या कार्रवाई की गई? इसे औरंगजेब का महिमामंडन भी कहा जाना चाहिए, चूंकि यह सरसंघचालक मोहन भागवत की बैठक थी, इसलिए सोलापुरकर औरंगजेब को महान बनाकर निकल गए और क्योंकि `धर्म’ आड़े आया, तो अबू आजमी उसी गुनाह के लिए `फंदे’ पर चढ़ गए! छत्रपति संभाजी राजे की जीवनी पर बनी फिल्म `छावा’ इन दिनों चल रही है। जब संभाजी राजा संगमेश्वर में रह रहे थे, तब औरंगजेब को इसकी `खबर’ मिली और मुगलों ने संभाजी राजा को गिरफ्तार कर लिया और उन्हें यातनाएं देकर मार डाला। इस बलिदान के कारण महाराष्ट्र आज भी बिलख रहा है। संभाजीराजा की `खबर’ आखिर किसने दी? गणोजी शिर्वेâ नामक महाराज के कार्यालय में काम करने वाले ब्राह्मण एक मुंशी ने? डचों के इतिहास में यह दर्ज है कि महाराजा के कार्यालय में कार्यरत मुंशी ने ही संभाजी को पकड़वाया था। जब युवा इतिहासकार इंद्रजीत सावंत ने इस बात की सच्चाई सामने लाने की कोशिश की तो राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ और भाजपा नागपुर का कार्यकर्ता प्रशांत कोरटकर भड़क उठा और उसने इंद्रजीत सावंत को धमकी भरे फोन किए। अपनी धमकी में कोरटकर सावंत से कहता है, `तुम जहां भी हो हम आएंगे और ब्राह्मणों की ताकत दिखाएंगे। तुम कितने भी मराठा इकट्ठा करो। देख लूंगा।’ इसी बातचीत में कोरटकर ने छत्रपति शिवाजी महाराज, संभाजी महाराज के बारे में अभद्र भाषा का इस्तेमाल किया। उसकी अभद्र भाषा के प्रकोप से मांसाहेब जिजाऊ भी नहीं बच पार्इं। हालांकि, यह साबित हो गया कि वह आवाज और शिवराय के खिलाफ अभद्र भाषा कोरटकर की ही थी, बावजूद कोरटकर आजाद है। अगर कोरटकर की जगह कोई `खान’ होता तो इतिहास के नाम पर फडणवीस सरकार ने हल्लाबोल कर दिया होता। फडणवीस ने विधानसभा में कहा, `कोरटकर एक चिल्लर आदमी हैं।’ उस चिल्लर आदमी का फडणवीस से लेकर मोहन भागवत तक सबके साथ संबंध है। ऐसी कई तस्वीरें हैं, जिनसे यह साबित होता है कि भाजपा मंडली में उसका उठना-बैठना है। चूंकि यह चिल्लर भाजपा और संघ परिवार का है तो धमकी देकर शिवराय का अपमान करके कैसे आजाद है? कोरटकर और सोलापुरकर के खिलाफ कार्रवाई न करने का मतलब भाजपा प्रायोजित औरंगजेब का महिमामंडन है।

शिंदे पूरी तरह ठंडा
शिवराय के महाराष्ट्र में उनकी मराठी भाषा का अपमान किया जाता है और औरंगजेब का महिमामंडन किया जाता है। भाषा का अपमान करने वाले और औरंगजेब का महिमामंडन करने वालों के खिलाफ मुख्यमंत्री फडणवीस कार्रवाई नहीं करते। ये तस्वीर अच्छी नहीं है। अजीत पवार से कोई उम्मीद नहीं की जा सकती, लेकिन `हम ही बालासाहेब ठाकरे के विचारों के सच्चे उत्तराधिकारी हैं’ ऐसा कहने वाले एकनाथ शिंदे और उनके लोग भी औरंगजेब का महिमामंडन होते और मराठी पर हमले होते देख नपुंसक की भांति शांत बैठे रहे। अबू आजमी के खिलाफ कार्रवाई करने की बात कहने वाले शिंदे भैयाजी जोशी, राहुल सोलापुरकर और प्रशांत कोरटकर के उसी गुनाह पर चुप हैं।
महाराष्ट्र में ढोंग बढ़ता जा रहा है।
मराठी का अपमान और औरंगजेब का गौरव उसी ढोंग की ही उपज है।

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