संजय राऊत-कार्यकारी संपादक
तिरुपति मंदिर के प्रसाद के लड्डू को भी अब ‘भ्रष्ट’ करने की कोशिश की गई है। यह हिंदुत्व और आस्था का विकृत स्वरूप है। लड्डू में पशुओं की चर्बीयुक्त घी का उपयोग किया जाता है, ऐसा आरोप चंद्राबाबू नायडू लगाएं और इस पर हिंदुत्व की राजनीति शुरू हो जाए, यह निश्चित रूप से कोई संयोग नहीं है। कुछ लोग धर्म और अंधविश्वास का गांजायुक्त चिलम पीकर देश को बर्बाद कर रहे हैं।
मोदी युग में विकास, आधुनिकता और विज्ञान की अपेक्षा अंधविश्वास और धर्मांधता को प्राथमिकता मिल रही है। धर्म अफीम की गोली है तो अंधविश्वास गांजे से भरी हुई चिलम है। चुनाव जीतने के लिए इन दोनों का उपयोग भाजपा करती है। लेकिन चंद्रबाबू नायडू जैसे लोग भी भाजपा का साथ पाकर चिलम फूंकने लग गए हैं। आंध्र के मुख्यमंत्री चंद्रबाबू नायडू ने आरोप लगाया है कि तिरुपति में मिलनेवाले लड्डू के प्रसाद में जानवरों की चर्बी मिलाई जाती थी। भाजपा के आई. टी. सेल ने इस घटना के पीछे हिंदुत्वविरोधी ताकतों का हाथ होने की अफवाह पैâलाकर माहौल खराब करने की कोशिश शुरू कर दी है। किसी मंदिर के प्रसाद को लेकर भी धार्मिक तनाव हो सकता है और ऐसा भारत में ही हो सकता है। इसका श्रेय मोदी युग को दिया जाना चाहिए। तिरुपति मंदिर के प्रसाद को लेकर राजनीति शुरू हो गई और भाजपा प्रायोजित ‘ढोंगीबाबा’ महामंडलेश्वर ने इसमें हिस्सा लिया। किसी भी मुद्दे का राजनीतिकरण करना और अंतत: उसमें धर्म का तड़का लगाना, यह तिरुपति मंदिर में लड्डू के प्रसाद को लेकर भी हुआ। चंद्राबाबू नायडू ने पूर्व मुख्यमंत्री जगन रेड्डी को बदनाम करने और मुश्किल में डालने के लिए ये आरोप लगाए। मोदी की संगत का असर चंद्राबाबू पर भी पड़ा, ऐसा ही कहना होगा।
कैसे बनता है लड्डू?
आंध्र प्रदेश में तिरुमाला पर्वत पर स्थित भगवान तिरुपति के मंदिर में हर साल लाखों श्रद्धालु आते हैं। यहां प्रसाद के रूप में एक बड़े आकार का ‘जंबो’ लड्डू मिलता है। भक्त उस लड्डू को बड़े चाव से खाते हैं। यह लड्डू आकार में बड़ा और दिखने में आकर्षक होने के साथ-साथ पौष्टिक और स्वादिष्ट होता है। इसी लड्डू को बनाने की प्रक्रिया में जगन के समय उसमें जानवरों की चर्बी वाला घी भी मिलाए जाने का धमाका चंद्राबाबू ने किया है। घी में जानवरों की चर्बी मिलाने का आरोप धक्कादायक है। अब यह आरोप लगाने से पहले चंद्राबाबू नायडू को लड्डू बनाते समय ‘शुद्धता और पवित्रता’ बनाए रखने की प्रक्रिया को समझना चाहिए। तिरुपति मंदिर के प्रसाद का लड्डू १७५ ग्राम का होता है। मंदिर में लड्डू बनाने की विशेष व्यवस्था है और वहां ६०० कर्मचारी काम करते हैं। यहां हर दिन साढ़े तीन लाख लड्डू बनाए जाते हैं। लड्डुओं के लिए आवश्यक शुद्ध घी छह महीने का खरीदा जाता है। लड्डू बनाने के लिए हर साल करीब ५ लाख किलो घी की जरूरत होती है। घी और लड्डू में प्रयुक्त सामग्री का परीक्षण करनेवाली ‘लैब’ मंदिर में ही है। इसके अलावा हैदराबाद स्थित नेशनल डेयरी इंस्टीट्यूट के अंतरराष्ट्रीय स्तर के लैब में भी लड्डुओं का परीक्षण किया जाता है। तमाम कठोर परीक्षणों में खरा उतरने के बाद तिरुपति मंदिर के प्रसाद का लड्डू भक्तों के हाथ में आता है। उस लड्डू पर संदेह करनेवाले और राजनीति करनेवाले भगवान के दुश्मन हैं। लेकिन लड्डुओं में जानवरों की चर्बीयुक्त घी का प्रयोग किया जाता है, ऐसा बतानेवाली रिपोर्ट किसने दी? तो गुजरात की एक प्रयोगशाला ने दी और उस पर चंद्राबाबू नायडू ने आस्था का तमाशा बना डाला।
सरकार का नियंत्रण
तिरुपति मंदिर पर पूरी तरह से केंद्र सरकार और राज्य सरकार का नियंत्रण है। २४ सदस्यों का यह न्यासी बोर्ड है। उनमें से कई प्रधानमंत्री कार्यालय से नियुक्त सदस्य हैं। देवेंद्र फडणवीस के ‘खास’ अमोल काले (जिनका हाल ही में निधन हो गया), शिवसेना विधायक मिलिंद नार्वेकर, गुजरात के डॉ. केतन देसाई ऐसे राज्य सरकार के विशेषज्ञ, प्रधानमंत्री के प्रतिनिधि के रूप में मंदिर बोर्ड में हैं। मंदिर की विशेषता और सख्ती ऐसी है कि घी या अन्य पदार्थों का ट्रक शुद्धता के प्रमाणपत्र के बिना मंदिर में प्रवेश नहीं कर सकता और ऐसे ट्रक कई बार लौटा दिए गए हैं। जब इतनी सख्त नीति है तो लड्डू के घी में चर्बी होने का आरोप लगाकर भ्रम पैदा करने का क्या कारण है? कारण यही है कि ‘लड्डू प्रसाद’ के लेन-देन में वर्तमान मुख्यमंत्री चंद्राबाबू नायडू के परिवार के व्यावसायिक हित शामिल दिख रहे हैं। तिरुपति मंदिर करोड़ों रुपए का घी खरीदता है। मुख्यमंत्री चंद्राबाबू नायडू के चिरंजीव नारा लोकेश नायडू ने खुद की हेरिटेज फूड्स नामक कंपनी की स्थापना की। जुलाई में, चिरंजीव नारा ने तिरुपति देवस्थान के पास हेरिटेज फूड्स के माध्यम से अपनी कंपनी का घी खरीदने के लिए अनुरोध पत्र भेजा, जिस पर फैसला नहीं हुआ। टेंडर और शुद्धता की प्रक्रिया पूरी किए बिना घी खरीदा नहीं जा सकता, ऐसा नारा को सूचित किया गया। ठीक उसी जुलाई महीने में चंद्राबाबू के पास गुजरात की ‘लैब’ से घी में जानवरों की चर्बी की मिलावट की रिपोर्ट आती है। इस शुद्ध संयोग को कैसे समझा जाए?
वास्तव में क्या हुआ?
लड्डू-प्रसाद मामले में तिरुपति बालाजी मंदिर की पवित्रता भंग हो गई, ऐसा शंखनाद भाजपा के खेमे में शुरू हो गया। इसके पीछे राजनीतिक कारण भी है। जगन मोहन रेड्डी की पार्टी के चार सांसद चुनकर आ गए हैं। विवश होकर वे मोदी सरकार का समर्थन कर रहे हैं। जगन मोहन के खिलाफ ईडी, सीबीआई की कार्रवाई चल रही है। उसी डर की वजह से जगन मोहन मोदी सरकार के साथ हैं। चंद्राबाबू की पार्टी भी मोदी के साथ होने के कारण राज्य की राजनीति में जगन मोहन की मुश्किलें बढ़ गई हैं। इस समस्या को खत्म करने के लिए जगन मोहन ‘इंडिया’ गठबंधन का हाथ थाम सकते हैं। इससे अल्पमत की मोदी सरकार की ताकत कम हो जाएगी। ऐसे में जगन मोहन को हिंदुत्व और आस्था के नाम पर कलंकित करो, यही उनकी नीति है। राजनीतिक नफा-नुकसान की खींचतान में तिरुपति बालाजी के लड्डू का प्रसाद बदनाम हो गया।
जानवरों की चर्बी की अपेक्षा धर्म और आस्था की राजनीति करने वालों की चर्बी समाज के लिए घातक है!
फिलहाल वही चर्बी बढ़ी हुई नजर आ रही है।