मुख्यपृष्ठनए समाचाररोखठोक : नमक हरामों की हवेली!

रोखठोक : नमक हरामों की हवेली!

संजय राऊत -कार्यकारी संपादक

कंगना रनौत कहती हैं, मोदी प्रधानमंत्री बनकर आए और तभी से देश में आजादी की सुबह हुई। सरसंघचालक ने शंखनाद किया कि अयोध्या में श्रीराम मंदिर की प्राण प्रतिष्ठा होने के बाद ही असली आजादी मिली। ये सुनने के बाद आजादी की परिभाषा ही बदल देनी चाहिए। असली स्वतंत्रता में हिस्सा न लेनेवालों को ही ऐसे दिव्य विचार सूझ सकते हैं। नई स्वतंत्रता के बाद महाराष्ट्र समेत देश में नमक हरामों की हवेलियां बनीं, उसका क्या?

जब हम देखते हैं कि अपना भारत देश असल में कहां जा रहा है तो देश के भविष्य की चिंता होने लगती है।
कंगना रनौत का मानना ​​है कि नरेंद्र मोदी के प्रधानमंत्री बनने के बाद देश को असली आजादी मिली है। उससे पहले आजादी नहीं थी। भाजपा ने पिछले दस वर्षों में कंगना रनौत की तरह विचार करनेवालों की एक पीढ़ी तैयार की है। भाजपा पूरे समाज और देश को जातीवादी और धर्मांध बनाकर चुनाव जीतते रहना चाहती है। इसमें अब सरसंघचालक मोहन भागवत का बयान भी जुड़ गया है। सरसंघचालक भागवत से तो ऐसी उम्मीद नहीं थी। भागवत ने भी घोषणा की कि, ‘‘जिस दिन अयोध्या में राम मंदिर की प्राण प्रतिष्ठा हुई, उसी दिन से देश को सच्ची आजादी और प्रतिष्ठा मिली।’’ भागवत का बयान धक्कादायक है। यदि ये मान लें कि प्रभु श्रीराम अवतार हैं तो उन्हें वैâद करनेवाला मनुष्य अब तक पैदा नहीं हुआ। अयोध्या में एक जगह पर विवाद हो गया। जिस स्थान पर श्रीराम का जन्म हुआ, उसे सभी ने मिलकर मुक्त कराया। इसे धर्म की स्वतंत्रता कहा जा सकता है, लेकिन देश को आजादी १९४७ में मिली और उस स्वतंत्रता संग्राम में भाजपा, राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ का तिनके जितना भी योगदान नहीं था। इसलिए देश की स्वतंत्रता को कुछ लोग अपनी स्वतंत्रता नहीं मानते होंगे। प्रभु श्रीराम मंदिर की स्थापना निश्चित रूप से देश की प्रतिष्ठा बढ़ाने वाला कार्य है, लेकिन आजादी की व्याख्या यहीं से शुरू हुई, यह कहना स्वतंत्रता संग्राम का अपमान है।
…इस पर भी बात करें
सरसंघचालक का देश की स्थिति पर सीधी टिप्पणी करना जरूरी है। भारत का रुपया डॉलर के मुकाबले ८७ रुपए तक गिर गया है। इससे उद्योग को नुकसान होगा, नौकरियां खत्म होंगी, महंगाई और गरीबी बढ़ेगी। जब देश संकट में था, तब रोम का राजा क्या कर रहा था? रोम जल रहा था और नीरो बांसुरी बजा रहा था। रामराज्य में भी नीरो सूटबूट में घूम रहा है। मौज-मस्ती में मगन है। देश की स्वास्थ्य व्यवस्था चरमराई हुई है। महाराष्ट्र जैसे उन्नत कहे जानेवाले राज्य में आदिवासी बस्तियों में साधारण दवाखाने तक नहीं हैं। बीमार, गर्भवती महिलाओं को कंधे पर या झूले में ले जाना पड़ता है। मृत बच्चों को घर ले जाने के लिए जब एंबुलेंस नहीं मिलती तो माता-पिता को शवों को कंधे पर लेकर मीलों पैदल चलना पड़ता है। यह कोई रामराज्य में आजादी मिलने का लक्षण नहीं है। एक गर्भवती भारतीय महिला की एक अस्पताल से दूसरे अस्पताल ले जाते समय हुई मौत की जिम्मेदारी को स्वीकारते हुए पुर्तगाल के स्वास्थ्य मंत्री मार्टा टेमिडो को इस्तीफा देना पड़ा था। ऐसा दोबारा क्यों हुआ? इसकी जांच करने के लिए वहां की सरकार ने एक समिति नियुक्त की। उसे दूसरे अस्पताल में स्थानांतरित किया जा रहा था क्योंकि सांता मारिया अस्पताल में नवजात शिशु कक्ष में जगह नहीं थी। इसी दौरान उनकी मौत हो गई और सरकार हिल गई। भारत में आए दिन ऐसी मौतें हो रही हैं। बीड में सड़क पर सरपंच देशमुख की हत्या कर दी गई और मुख्यमंत्री फडणवीस इस मुद्दे पर ‘एसआईटी, एसआईटी’ खेलते रहे। क्या रामराज्य में सरपंच संतोष देशमुख को जीने की आजादी नहीं थी?
धर्मशास्त्र क्या कहता है?
देश संविधाननुसार चलेगा या धर्मशास्त्रानुसार? यह नया बखेड़ा अब खड़ा हो गया है। लाओत्से हमेशा कहते थे, ‘‘शास्त्र और पोथी पढ़ने से मनुष्य को कुछ हासिल नहीं होता।’’ इस पर उनके समकालीन उनसे कहते थे, ‘‘आपने तो शास्त्रों का बहुत अध्ययन किया है। इससे आपको क्या मिला?’’ लाओत्से तब कहते थे, ‘‘शास्त्र, ग्रंथ पढ़ने से ही कुछ भी हासिल नहीं होता, यह जो मैंने अध्ययन में पाया, वही अत्यंत मौलिक है।’’ लाओत्से जो कहते थे, वही वीर सावरकर ने बताया, लेकिन ये ‘सावरकर’ भाजपा नहीं मानेगी। भाजपा ने देश में गद्दारी का बीज बोया और आज हम हर जगह गद्दारों की फसल बढ़ते देख रहे हैं। प्रभु श्रीराम ने रावण को हराकर लंका दहन कराई वो विभीषण की मदद से। विभीषण रावण का भाई है। श्रीराम ने उसी को तोड़कर अपनी ओर कर लिया। यहीं ‘राम-रावण’ युद्ध की दिशा घूम गई। रावण का वध होने के बाद श्रीराम ने लंका का राज विभीषण के हवाले कर दिया। विभीषण को लंका का राजा बना दिया। इसलिए नरेंद्र मोदी और अमित शाह को श्रीराम की अपेक्षा विभीषण प्रिय लगता होगा। उनकी सत्ता की मीनार ऐसे कई विभीषणों की कनिष्ठिका पर खड़ी है और सरसंघचालक भागवत श्रीराम की प्राण प्रतिष्ठा के बाद आजादी मिलने की भाषा बोलते हैं। भारत में गद्दारी का एक लंबा इतिहास रहा है। देश के स्वतंत्रता संग्राम के दौरान भी कुछ विभीषण सीधे तौर पर अंग्रेजों के पक्ष में थे और आजादी के बाद वे अपने घरों पर देश का तिरंगा भी फहराने को तैयार नहीं थे। इतिहास के पन्ने छानें तो भारत में तीन प्रमुख राजाओं ने गद्दारी की। इस वजह से हिंदुस्थान गुलामी की बेड़ियों में जकड़ गया। इस मिट्टी में एक से बढ़कर एक महान वीर और स्वाभिमानी राजा पैदा हुए। वे इतिहास में अमर हो गए, लेकिन कुछ राजा अपनी गद्दारी की वजह से प्रख्यात हुए। इन सब में सबसे ऊपर नाम राजा जयचंद का है। यदि जयचंद ने महाराणा पृथ्वीराज चौहान को धोखा न दिया होता तो मोहम्मद गोरी कभी भी भारत पर विजय प्राप्त नहीं कर पाता। उसी मोहम्मद गोरी ने आगे चलकर राजा जयचंद को भी मार डाला। दूसरे स्थान पर राजा मानसिंह का नाम लेना होगा। उसने भी महाराणा प्रताप से बेईमानी की और अकबर की चाकरी स्वीकार की। एक और गद्दार मीर जाफर है। उसी की गद्दारी के कारण भारत में ब्रिटिश शासन का विस्तार हुआ। जाफर की गद्दारी से लोग क्रोधित हो गए और लोगों ने जाफर की हवेली का नाम ‘नमक हराम की हवेली’ रख दिया। जाफर सिराज उद्दौला का सेनापति था, लेकिन नवाब बनने की लालसा में वह अंग्रेजों से मिल गया, यही सच है। विभीषण ने राम का साथ दिया, वो धर्म की लड़ाई थी, लेकिन महाराष्ट्र सहित देश में आज के शासकों ने अनगिनत ‘नमक हरामों की हवेलियां’ बना दी हैं। वही भाजपा का असली राज्य है। अयोध्या में श्रीराम मंदिर की प्राण प्रतिष्ठा के बाद जो आजादी मिली, उस आजादी में इन नमक हरामी हवेलियों का निर्माण हुआ। ऐसे में श्रीराम का ‘सत्य’ पराजित हो गया। कई लोगों को विभीषण ही सही, ऐसा लगने लगा है। भारत की धार्मिक संस्कृति इस तरह बदल रही है। क्या अयोध्या के राम को यह स्वीकार्य है?
श्रीराम, अब आप ही देश को बचाएं!

अन्य समाचार