मुख्यपृष्ठनए समाचाररोखठोक : भारतीयों को ही चाहिए जीने का अधिकार!

रोखठोक : भारतीयों को ही चाहिए जीने का अधिकार!

संजय राऊत -कार्यकारी संपादक

विदेशी नागरिकों का धार्मिक उत्पीड़न होता होगा इसलिए उनके लिए भारत का दरवाजा खोलनेवाला ‘सीएए’ कानून अब पारित हो गया है। लेकिन भारत के नागरिकों को अपने अधिकारों के लिए हर दिन लड़ना पड़ता है। वंचितों, दलितों को आज भी जातिगत भेदभाव का सामना करना पड़ता है। सार्वजनिक जलस्रोत उनके लिए बंद हैं। सवर्ण उन्हें चप्पल भी पहनने नहीं देते। क्या ये समानता का राज है? कानून का राज तो कतई नहीं!

मुझे एक घटना याद है। मोदी ने कुछ दलितों की पूजा की, उनके पैर धोने की वह घटना काफी चर्चा में रही। मोदी द्वारा दलितों के पैर धोने से क्या देश में जातिवाद रुक गया? छुआछूत मिटाने के ऐसे ढोंग चलते रहते हैं। राहुल गांधी भारत जोड़ो यात्रा के मौके पर बुंदेलखंड गए थे, जहां उनसे कई दलितों ने मुलाकात की। उन्होंने राहुल से कहा, ‘देश स्वतंत्र हो गया, लेकिन उस स्वतंत्रता की किरण हम तक नहीं पहुंची, यही हमारी वेदना है। गांव में ब्राह्मण, ठाकुर, अहिर जाति के लोग हमें पांव में चप्पल तक पहनने नहीं देते। दलितों का चप्पल पहनना सवर्णों का अपमान है, ऐसा इन लोगों को लगता है। हम वैâसे जीएं?’ आज भी देश के कई हिस्सों में दलित, वंचित आदि समाज की यही दशा है। लेकिन इन सबके नेता अपनी-अपनी स्वार्थी राजनीति में लगे हुए हैं। विवाह समारोह में घो़ड़ी पर सवार होने के कारण दलित वर के साथ गाली-गलौज और मारपीट की घटना मोदी-शाह के गुजरात में घटती है। गुजरात में ऐसी घटना बारंबार होती है और गुजरात को देश का आदर्श राज्य बनाने का प्रयास मोदी कर रहे हैं। दलित युवक के नुकीली, मरोड़दार मूंछें रखने के कारण उसके साथ मारपीट की घटना भी गुजरात में ही घटी, उसी गुजरात के लोग देश के शासक हैं।
सर्वाधिक उत्पीड़न भारत में
मोदी सरकार नागरिकता संशोधन कानून लेकर आई है। राज्य के संविधान में वादा किया गया था कि जो लोग बांग्लादेश, अफगानिस्तान और पाकिस्तान में धार्मिक उत्पीड़न के कारण भारत में आएंगे, उन्हें भारत की नागरिकता दी जाएगी। लेकिन यह पूरा नहीं हो सका। मोदी सरकार ने इस पर कानून बनाकर हिंदू, बौद्ध, सिख और जैनों को भारतीय नागरिकता देने का पैâसला किया है, यह एक राजनीतिक जुमला है। विदेशों में जितना भारतीय मूल के लोगों का उत्पीड़न होता है, उससे ज्यादा उत्पीड़न भारत में होता है। मोदी काल में यह उत्पीड़न कुछ ज्यादा ही हो रहा है।
भारत में सर्वाधिक नागरिकों का उत्पीड़न जारी है और उनका उत्पीड़न रोकने के लिए मोदी सरकार के पास कोई भी उपाययोजना नहीं है।
परदेस से आनेवाले हिंदुओं की चिंता मोदी सरकार को होती है, लेकिन कश्मीर घाटी के हजारों ‘पंडित’ आज भी जम्मू में छावनियों में निर्वासितों का जीवन जी रहे हैं। उनका धार्मिक उत्पीड़न अपने ही देश में शुरू है। उन सभी भारतीयों की नागरिकता अबाधित होने के बावजूद उन्हें अपनी ही भूमि पर सम्मान से जीने का अधिकार मोदी नहीं दे पाए।
बीते सालभर में मणिपुर में जाति और वर्ग कलह में सैकड़ों भारतीय नागरिक मारे गए, उनकी हत्याएं हुर्इं। वे अपने ही देश में जी नहीं पा रहे हैं। परदेसी नागरिकों को भारत में आश्रय देने का कानून बनानेवाले भारत में ऐसे अन्यायग्रस्तों की ओर मानवता की दृष्टि से भी देखने को तैयार नहीं।
लगभग २० करोड़ मुसलमान देश के नागरिक हैं। उनके विरोध में निरंतर धर्मांध भूमिका अपनाकर चेतावनी दी जाती है। खाने-पीने की आदतों को लेकर मुसलमानों को ‘टार्गेट’ किया जाना और उनकी ‘मॉब लिंचिंग’ करना, ये किस कानून में है?
महात्मा गांधी युगपुरुष हैं। उनकी प्रतिमा पर खुले तौर पर गोलियां बरसाने का काम मोदी काल में शुरू हुआ, जिस पर मोदी एक शब्द भी बोलने को तैयार नहीं हैं। राजघाट स्थित गांधी समाधि पर जाकर पुष्पचक्र अर्पित करना और फिर उन्हीं के लोगों द्वारा रोज गांधी पर गोलियां बरसाना। इससे ‘सीएए’ कानून एक राजनीतिक ढोंग लगता है।
देश में आज भी महिलाओं पर अत्याचार होते हैं। महिलाओं के अधिकार और नागरिकता खतरे में है, लेकिन नारीशक्ति की झूठी विज्ञापनबाजी में मोदी सरकार मशगूल है।
भारत में जातिगत भेदभाव की घटनाएं बढ़ती जा रही हैं और उससे लोगों का पलायन शुरू है। ये सब कैसे रोकोगे?
मोदी सरकार ने विदेशों में धार्मिक उत्पीड़न का सामना करनेवालों के लिए ‘सीएए’ कानून बनाया। लेकिन अमेरिका में कैलिफोर्निया के विधानमंडल में जातिगत भेदभाव पर प्रतिबंध लानेवाला कानून मंजूर किया गया, ये महत्वपूर्ण है। कैलिफोर्निया के विधानमंडल में एक कानून पारित किया। तदनुसार वहां दक्षिण एशियाई मूल के लोगों को जातिगत भेदभाव से सुरक्षा मिली है। यह कानून सिनेटर आएशा वहाब की पहल पर मंजूर हुआ। उन्होंने कहा, ‘लाखों लोगों के हाथों में जातिगत भेदभाव की अदृश्य बेड़ियां हैं। आज हमने ऐसे ही अदृश्य भेदभावों पर प्रकाश डाला है, जो हजारों सालों से चले आ रहे हैं। आज जहां अमेरिका जैसे देश में जातिगत भेदभाव के खिलाफ कानून बनाए जा रहे हैं, वहीं भारत में सामाजिक न्याय की केवल बातें हो रही हैं।
वोटों की सौदेबाजी
हमारे देश में दलित, वंचितों का वोट सिर्फ सौदेबाजी का विषय बन गया है। जैसे ही दलित, वंचितों के वोट राजनीतिक सौदेबाजी का विषय बन गए, सभी प्रमुख दलों ने उनका फायदा उठाया। लेकिन वंचितों के मुद्दों पर कागजी लड़ाई लड़नेवालों ने वास्तव में क्या किया? महाराष्ट्र सहित देशभर में दलित, वंचितों के नाम पर कई राजनीतिक बरसाती छाते बन गए। चुनाव आने पर ही ये छाते दिखते हैं। मोदी के तानाशाही शासन में वंचित, दलितों का सर्वाधिक शोषण हुआ। फिर भी कुछ नेताओं ने मोदी और उनकी पार्टी को अप्रत्यक्ष लाभ दिलाने का ‘माया’वी काम किया। खुले तौर पर मोदी की तानाशाही के खिलाफ रुख अपनाना लेकिन काम लोकतंत्र के खिलाफ करना, यही एक तरह से ‘एट्रोसिटी’ यानी दलित अत्याचार है। मुझे नेल्सन मंडेला का एक बयान याद आता है। १२ अप्रैल १९९० को भारतीय संसद भवन में डॉ. बाबासाहेब आंबेडकर के तैलचित्र का अनावरण करते हुए मंडेला ने कहा था, ‘हम डॉ. बाबासाहेब आंबेडकर के जीवन और कार्य से प्रेरित हैं। हमारा संघर्ष भी उसी आधार पर शुरू है, जिस आधार पर डॉ. आंबेडकर ने समाज परिवर्तन का प्रयास किया और सफलता हासिल की।
मानवीय अधिकार कहां हैं?
विदेशी नागरिकों के लिए हम कानून बनाते हैं, लेकिन भारत में आज भी नागरिकों को मानवीय अधिकारों के लिए लड़ना पड़ता है। आज भी गांव-गांव में छुआछूत के निशान हैं और मोदी की विचारधारा वाले उत्तर प्रदेश, बिहार जैसे राज्यों में ये निशान अधिक हैं। कांग्रेस शासन में डॉ. आंबेडकर चुनाव हारे, इस पर राजनीति करने की बजाय मोदी के कार्यकाल में डॉ. आंबेडकर द्वारा रचित संविधान और मानवता की रोज हत्या हो रही है, इस पर समाज में चिंगारी उठनी चाहिए। भारत का संविधान जहां बना, जहां स्विधान सभा आयोजित हुई, उस ऐतिहासिक भारतीय संसद को ही मोदी के कार्यकाल में ताला लग गया। आज भी उत्तर में दलितों को पानी से वंचित रहना पड़ता है। सार्वजनिक जल निकायों में उन पर पाबंदी है और मोदी दलितों के पैरों पर गंगा जल डालकर राजनीतिक ढोंग करते हैं। डॉ. बाबासाहेब आंबेडकर ने अंजुलीभर पानी लिया और सभी की उपस्थिति में उसे पीया। वो प्रसंग था महाड़ के चवदार तल का आंदोलन। यह घटना इस देश में ही नहीं, बल्कि विश्व के इतिहास में स्वर्ण अक्षरों में लिखी गई।
फिर भी आज दलितों को चप्पल पहनने से रोका जाता है। दलित दूल्हा घोड़े पर चढ़ नहीं सकता और दलितों के नेता प्रत्यक्ष-अप्रत्यक्ष मोदी के घोड़े का खरहरा कर रहे हैं। देश में आया ‘सीएए’ कानून विदेशियों के लिए है, लेकिन जीने का अधिकार सिर्फ भारतीयों को चाहिए।

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