संजय राऊत-कार्यकारी संपादक
ब्रिटिशकाल में भारत में कई ‘हिल स्टेशन’ स्थापित किए गए। शिमला इन सबसे अलग है। शिमला अंग्रेजों की ग्रीष्मकालीन राजधानी थी, लेकिन भारत की आजादी की लड़ाई की कई घटनाएं शिमला में हुईं। आज हम शिमला को मौज-मस्ती करने और अत्यंत ठंडी हवाओं के स्थल के रूप में जानते हैं। यहां बर्फ गिरती है। पर्यटक उस बर्फ में आनंद लेने आते हैं। शिमला का इतिहास भी जानना चाहिए।
पुराना साल खत्म हो गया। भारतीयों को भी नए अंग्रेजी वर्ष का उत्साहपूर्वक स्वागत करने की आदत पड़ गई और नव हिंदुत्ववादी भी भारतीयों की इस आदत को छुड़ा नहीं पाए। अंग्रेजों ने भारत पर शासन किया। उन्होंने अपने जीवन स्तर के अनुरूप अनेक शहर बनाने तथा उनमें अंग्रेजी जीवन जीने का प्रयास किया, इसमें शिमला और शिलांग शामिल हैं। उन्होंने अपने हिसाब से शिमला का निर्माण किया। शिमला में इस समय अच्छी बर्फबारी होती है। इसलिए यहां देशभर से बड़ी संख्या में पर्यटक आते हैं। शिमला का ब्रिटिशकालीन अनुशासन और शांति इससे भंग होती है। ब्रिटिश गए तो वे सभ्यता और अनुशासन अपने साथ ले गए। शिमला अपवाद नहीं होना चाहिए। नए साल पर मैं शिमला की पहाड़ी क्षेत्र में रहा। हिमालय की गोद में बसा ये पहाड़, देवदार पेड़ों के जंगल, घुमावदार सड़कों और स्वच्छ हवा का स्थान है। जब पहाड़ों पर बर्फ गिरती है तो वे सफेद मोतियों के पहाड़ जैसे दिखते हैं। प्रात:काल जब श्वेत किरणें इस पर पड़ती हैं तो भारत का प्राकृतिक वैभव चमक उठता है। यह तस्वीर इंग्लैंड के किसी कस्बे की लग रही है। यह भूमि भारत की है। इसे अंग्रेजों ने अपनी सुविधा के लिए तराशा था। अंग्रेजों ने शिमला शहर को अपने इंग्लैंड की तरह बसाया था। अंग्रेजों ने उत्तर के इस पहाड़ी भाग में शिमला में अपने देश की एक तस्वीर देखी। उन्हें यह जगह इतनी पसंद आई कि उन्होंने शिमला को बिल्कुल इंग्लैंड जैसा रूप देने की कोशिश की। ब्रिटिश शासन के दौरान उस समय के बड़े शासक वर्ष का अधिकांश समय शिमला में बिताते थे। उन्हें शिमला में इंग्लैंड की तरह हवा, घटा और बर्फ की फुहार मिली और अंग्रेज वहां रम गए।
ब्रिटिशों की पहली पसंद
अब शिमला में आबादी बढ़ गई है। बाहरी आक्रमण पुन: बढ़ गया। निजी मालिकों ने ब्रिटिशकाल के कई स्थलों पर भव्य होटल बनाए। इनमें ‘वाइल्ड फ्लावर्स हॉल’ करीब ४५ एकड़ का है और यहां ब्रिटिश साम्राज्य के निशान मौजूद हैं। यह स्थान जंगल और पहाड़ियों से घिरा हुआ है। ऐसे कई स्थानों को संरक्षित करके पर्यटकों को वहां आकर्षित किया जा रहा है। १८६४ में भारत की ब्रिटिश सरकार ने शिमला को ‘ग्रीष्मकालीन राजधानी’ के रूप में घोषित किया। ब्रिटिश भारतीय सेना के ‘कमांडर-इन-चीफ’ का मुख्यालय यहीं बनाया गया था। ऐसे में कोलकाता, दिल्ली, मुंबई की तुलना में शिमला अंग्रेजों की पसंदीदा जगह बन गई। इस शहर का मूल नाम शिमला नहीं था। काली बाड़ी मंदिर आज के माल रोड क्षेत्र में स्थित है। इस देवी को श्यामला देवी भी कहा जाता है। यह शहर तब श्यामला के नाम से जाना जाता था। अंग्रेज ‘श्यामला’ का उच्चारण नहीं कर पाते थे। उन्होंने श्यामला का शिमला कर दिया। शिमला को न केवल अंग्रेजों ने बनाया, बल्कि सजाया और संवारा भी। अंग्रेजों के समय में भी यहां श्यामला देवी के मंदिर में उत्सव मनाए जाते थे और अंग्रेज अधिकारी उसमें भाग लेते थे। दिवाली, नवरात्रि और दुर्गा पूजा जैसे धार्मिक त्योहार होते और हजारों लोग इसके लिए पहाड़ी पर इकट्ठा होते थे। हिंदू संस्कृति पहाड़ पर बरकरार रही। अंग्रेजों के प्रभाव के बावजूद, वहां कोई ईसाई मिशनरी नहीं थी और धर्मांतरण जैसे काम नहीं हुए। इसलिए श्यामला और शिमला दोनों का महत्व बना रहा। शिमला में आज भी एक शानदार बिशप हाउस है। यह पुरानी इमारत देखने लायक है।
केनेडी का शिमला
हर शहर के निर्माण के पीछे एक व्यक्ति होता है। शिमला के निर्माण में चार्ल्स प्रैट केनेडी का योगदान बहुत बड़ा है। अंग्रेजों ने पहाड़ी राज्यों के विकास के लिए वहां की संस्थाओं, राजाओं आदि से समन्वय बनाए रखने के लिए केनेडी को राजनयिक अधिकारी के रूप में नियुक्त किया। केनेडी शिमला की पहाड़ियों में कभी घोड़े पर तो कभी पैदल घूमते थे। उन्हें इन पहाड़ों से प्यार हो गया। १८८२ में उन्होंने यहां अपने लिए एक घर बनवाया। लोग इसे केनेडी हाउस के नाम से जानने लगे। १८३० में शिमला को शहर बनाने की ‘कवायद’ शुरू हुई। १८३२ में ब्रिटिश सरकार के तत्कालीन गवर्नर जनरल लॉर्ड पीटर ऑरोनसन ने महाराजा रणजीत सिंह से शिमला में जमीन का सौदा किया। शहर वैâसा हो, इसका प्लान तैयार किया गया। वह राजाओं-रजवाड़ों का युग था। यहां की अधिकांश जमीन पटियाला राजघराना और स्थानीय क्योंथल संस्था की थी। इसलिए भूमि अधिग्रहण में समय लगा। जैसे ही आवश्यक मात्रा में भूमि का अधिग्रहण हो गया, अंग्रेजों ने १८६४ में शिमला को बतौर ग्रीष्मकालीन राजधानी घोषित कर दिया। हिमालय की चोटी पर एक शहर बन गया। यह आज भी लाखों लोगों को आकर्षित करता है। भारत सरकार १०० स्मार्ट सिटी बनाने वाली थी। उनमें से एक भी स्मार्ट शहर नहीं बन पाया। स्मार्ट सिटी की राजनीति करने वालों को १८वीं शताब्दी में शिमला की ऊंची चोटी पर निर्मित ‘स्मार्ट सिटी’ कैसे बनाई गई, यह देखना चाहिए।
उत्सवी शहर
जब अंग्रेजों ने शिमला को बसाया, तब उन्होंने लगभग २५ हजार लोगों के लिए पर्याप्त जल भंडार की व्यवस्था उसी पहाड़ी जंगल में की। आज शिमला में जनसंख्या विस्फोट हो गया है। पहाडों पर बने मकानों की शृंखला देखने लायक होती है। गाड़ियां ऊपर नहीं जातीं। सारा लेन-देन पैदल चढ़कर ही करना पड़ता है। पहाड़ी लोग मेहनती होते हैं और उनके चेहरे पर हमेशा खुशी भरी मुस्कान रहती है। शिमला का माल रोड इन दिनों पर्यटकों से गुलजार है। लेकिन वहां कई ब्रिटिशकालीन निशानियां, संरचनाएं हैं। ब्रिटिश राज कैसा था और नगररचना कैसी थी, इसका एहसास माल रोड पर यात्रा करते समय किया जा सकता है। आज तो वहां सिर्फ भीड़भाड़ है। चंडीगढ़ से शिमला आते समय सोलन पड़ता है। देश की कई दवा कंपनियों ने सोलन में अपना बेस स्थापित किया है। सोलन की दूसरी विशेषता यह है कि भारत में लोकप्रिय ‘ओल्ड मॉन्क रम’ का उत्पादन सोलन में होता है। मोहन मैकिन्स कंपनी का मुख्यालय सोलन में है, इसका प्रभाव हिमाचल सरकार पर पड़ता हुआ दिखाई दिया। शिमला के माल रोड पर टहलते समय हिमालय सरकार का फरमान आया कि पर्यटक बिना किसी व्यवधान के नये साल का जश्न मनाएं। ५ जनवरी तक शराब की दुकानें २४ घंटे खुली रहेंगी, अगर कोई पर्यटक शराब पीकर थोड़ा ज्यादा ही टाइट पाया गया तब भी पुलिस उसे गिरफ्तार नहीं करेगी। बल्कि पुलिस उसे बेहद प्यार से उसके होटल तक सुरक्षित पहुंचाएगी। मुख्यमंत्री महोदय ने कहा, ‘मैंने पुलिस को निर्देश दिए हैं। अतिथि देवो भव!’ इसलिए लाखों मेहमानों ने इस दौरान जमकर मौज की और आजादी का आनंद लिया।
गांधी का आवागमन
शिमला का राजनीतिक महत्व भी उतना ही है। १९७१ के भारत-पाक युद्ध के बाद बांग्लादेश का निर्माण हुआ। युद्ध में पाकिस्तान की हार के बाद इंदिरा गांधी और पाकिस्तानी प्रधानमंत्री जुल्फिकार अली भुट्टो ने शिमला में मुलाकात की। ‘शिमला समझौता’ के नाम से यह मुलाकात और समझौता प्रसिद्ध है। चीन युद्ध के बाद मैकमोहन रेखा की योजना भी शिमला में बनाई गई थी। हेनरी मैकमोहन ब्रिटिश भारत के विदेश सचिव थे। मैकमोहन रेखा (अंतर्राष्ट्रीय सीमा) तिब्बत और भारत के बीच की सीमा है। तिब्बत को आगे चीन ने निगल लिया और मैकमोहन रेखा के अस्तित्व से इनकार कर दिया। लेकिन मैकमोहन रेखा के निर्माण में शिमला का योगदान महत्वपूर्ण है। शिमला ने देश में कई घटनाएं देखी हैं। आजादी से पहले महात्मा गांधी, लाला लाजपत राय, सरदार पटेल, मदन मोहन मालवीय शिमला आते थे। शिमला में गांधीजी की कई स्मृतियां आज भी संरक्षित हैं। गांधी जी पहली बार १९२१ में शिमला आए थे। गांधी जी माल रोड गए तब माल रोड पर अंग्रेजों के अलावा किसी को प्रवेश की अनुमति नहीं थी। गांधी जी माल रोड जाने वाले पहले भारतीय थे। उन्होंने बग्गी में बैठकर माल रोड का भ्रमण किया। वह क्षण सभी भारतीयों के लिए रोमांचक था। माल रोड पर जहां गांधी ने सभा की थी, वहां गांधी जी की एक प्रतिमा लगी हुई है। गांधी जी शिमला में लॉर्ड रीडिंग, लॉर्ड विलिंगटन और तत्कालीन वायसराय लॉर्ड लिनलिथगो से चर्चा करने के लिए आए थे। गांधीजी साधु आश्रम की शांति कुटिया में रहते थे। जिस ‘जेल’ के नाम से भी कैदी कांप जाते थे, ऐसी दो जेल तब भारत में थी। एक है अंडमान-निकोबार और दूसरी है डगशाई जेल, यह जेल शिमला के पास सोलन में स्थित है। इस जेल में आने वाले कैदियों को भयानक यातनाएं दी जाती थीं। लोहे की छड़ों को भट्ठी में गर्म किया जाता था और उस छड़ से कैदियों के हाथों पर उनके नंबर लिखे जाते थे। प्रथम विश्व युद्ध के दौरान आयरिश सैनिकों और आयरिश स्वतंत्रता सेनानियों को ब्रिटिश सेना ने बंदी बनाया था। इनमें से कई सैनिकों को डगशाई जेल में लाकर यातनाएं दी गईं। इस उत्पीड़न के खिलाफ आयरिश सैनिकों ने भूख हड़ताल कर दी। खबर पैâलते ही गांधीजी आयरिश सैनिकों से मिलने डगशाई जेल पहुंचे। वह दो दिन तक उस जेल में रहे। उन्होंने शिमला जाकर ब्रिटिश अधिकारियों से जेल में चल रही यातनाओं की शिकायत की। गांधी की डगशाई जेल की यात्रा से दुनियाभर में आयरिश सैनिकों की यातनाओं की कहानियां फैलीं। गांधी जी का शिमला से जुड़ाव उनकी मृत्यु तक बना रहा। गांधीजी की हत्या दिल्ली में की गई थी, लेकिन उनकी हत्या के मुकदमे के लिए शिमला को चुना गया। मुकदमा शिमला की मिंटो कोर्ट में चला, जिसमें नाथूराम गोडसे को आरोपी बनाकर पेश किया गया। २१ जून १९४९ को इसी मिंटो कोर्ट में गोडसे को मौत की सजा सुनाई गई। बाद में इसी मिंटो कोर्ट में आग लगने से यह इमारत जलकर राख हो गई और गोडसे व गांधी हत्याकांड से जुड़ा इतिहास भी नष्ट हो गया। शिमला की पहाड़ियों में देवदार वृक्षों के जंगल में, कण-कण में भारत का इतिहास भरा पड़ा है। शिमला सिर्फ नए साल का जश्न मनाने के लिए नहीं है। शिमला का इतिहास पहाड़ों की तरह ही ऊंचा है।
शांति!
शिमला में जगह-जगह सैनिक छावनियां हैं। हिमाचल के ७५ गांव चीन की सीमा से लगे हैं। फिर भी अन्य सीमावर्ती राज्यों की तुलना में यहां शांति है। शिमला में नया साल ‘रंगीन’ होता है। यह देवभूमि और स्वतंत्रता संग्राम की कर्मभूमि है। अंग्रेजों की तरह भारत के राष्ट्रपति का ग्रीष्मकालीन निवास शिमला में है। राष्ट्रपति भवन अब पर्यटकों के लिए खोल दिया गया है। यहां की जनता धार्मिक और भोली-भाली है। वह पर्यटकों का स्वागत करती है। शिमला के पहाड़ों पर अब भव्य होटल्स और रिसॉर्ट खड़े हैं। शिमला ने मानो पर्यटकों के स्वागत के लिए अपनी ठंडी बांहें ही फैला दी हैं। जिन्हें घूमने-फिरने का शौक है, उन्हें कम से कम एक बार शिमला जरूर जाना चाहिए। स्विट्जरलैंड को दुनिया का स्वर्ग माना जाता है। कश्मीर को स्वर्ग का दर्जा प्राप्त है ही, लेकिन शिमला को भारत का स्वर्ग कहें, ऐसा ही है। उसे आनंद, उत्साह और प्रकृति का वरदान प्राप्त है। यदि ऐसा नहीं होता तो अंग्रेज यहां अपनी राजधानी नहीं बनाते और यहां रमते भी नहीं। इस स्वर्ग में भारतीय स्वतंत्रता का इतिहास भी देखाई देता है। वह अमर है।