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रोखठोक : न्याय व्यवस्था की ‘सुलभ’ धज्जियां … श्रीराम का नाम बदनाम क्यों करते हो?

संजय राऊत -कार्यकारी संपादक

झारखंड के मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन को जमीन के एक मामले में ‘ईडी’ ने गिरफ्तार कर लिया है, लेकिन देश के सबसे भ्रष्ट मुख्यमंत्री हिमंत बिस्वा सरमा को भाजपा का संरक्षण है। महाराष्ट्र में तो अजीत पवार को ‘क्लीन चिट’ मिल गई। तो क्या ७० हजार करोड़ के सिंचाई घोटाले पर मोदी ने झूठ बोला था? कानून व न्याय व्यवस्था का सुलभ शौचालय बन गया है!

नानी पालखीवाला ने अपनी एक पुस्तक में देशवासियों को संबोधित करते हुए कहा है-
‘‘जिन्होंने अपने लिए संविधान तो बना लिया, लेकिन उसे बनाए रखने की शक्ति हासिल नहीं की,
जिन्हें तेजस्वी विरासत तो मिली, लेकिन उसे सुरक्षित रखने की बुद्धि नहीं मिली।
जो अपनी क्षमता का आकलन न होने के कारण चुपचाप सब कुछ सहे जा रहे हैं।’’
आज देश वास्तव में उसी दौर से गुजर रहा है, जिसका वर्णन नानी पालखीवाला ने पहले ही कर रखा है। गणतंत्र दिवस २६ जनवरी को मनाया गया। उस गणतांत्रिक हिंदुस्थान के लिए हमारे पूर्वजों द्वारा किए गए बलिदान को हम भूल गए हैं। न्याय व्यवस्था का राजनीतिकरण और निजीकरण बेहद खतरनाक स्तर पर पहुंच गया है। जिनसे संविधान, न्याय व्यवस्था के संबंध में निष्पक्ष व्यवहार की अपेक्षा की जाती है, वे सभी संस्थाएं भ्रष्ट हो गई हैं और उन संस्थाओं के सूत्र चोरों के हाथों में दे दिए गए हैं। महाराष्ट्र विधानमंडल में सत्ताधारी दल का एक विधायक सार्वजनिक सभा में एक समुदाय को खत्म करने की, उन पर हमला करने की चेतावनी देता है और उससे भी आगे जाकर वो कहता है, ‘जी भर के दंगे करो। मैं आपके साथ खड़ा रहूंगा, मेरा कौन क्या बिगाड़ लेगा? गृहमंत्री पद पर बैठा व्यक्ति मेरा ‘बॉस’ है। वह मेरे साथ खड़ा है।’ संविधान, कानून, न्याय व्यवस्था को ध्वस्त करने वाले ये बयान हैं और गृहमंत्री आंखें मूंदकर हाथ मलते हुए बैठे हैं। यह गणतंत्र का अपमान है।’
संविधान बचेगा क्या?
देश पुन: भाजपा के हाथ में गया तो मौजूदा ‘संविधान’ पाशविक बहुमत के बल पर नष्ट कर दिया जाएगा, यह तय है। देश में नए संविधान के साथ नया गणतंत्र दिवस मनाने की तैयारियां अभी से शुरू हो गई हैं। उच्च न्यायालय में पिछले दस वर्षों में हुई न्यायाधीशों की नियुक्तियों का अध्ययन करें तो चिंता हो जाए, ऐसी स्थिति है। संघ परिवार से संबंधित वकीलों को ही खास तौर पर नियुक्त किया गया है, यह स्पष्ट दिखाई देता है। ऐसे में न्याय का तराजू एकतरफा झुक गया तो आश्चर्य वैâसा? न्याय, संविधान का विध्वंस हो रहा है और न्याय व्यवस्था इस संबंध में कड़ा रुख नहीं अपना रही है, हाल के ऐसे कुछ मामलों पर गौर करें –
महाराष्ट्र में विधानसभा अध्यक्ष राहुल नार्वेकर ने संविधान और कानून को पैरों तले रौंद डाला। उन्होंने संविधान की १०वीं अनुसूची के प्रावधानों की अनदेखी कर शिवसेना से अलग हुए ४० विधायकों को पूरी तरह से कानूनी मान्यता दे दी। एक तरह से राजनीति में खोकेबाजी और थोक में दल-बदल को प्रतिष्ठा दे दी। विधायक दल में विभाजन का आधार लेकर शिवसेना पक्ष ‘ठाकरे’ का नहीं, बल्कि किसी एकनाथ शिंदे का है, ऐसा पैâसला सुनाकर पीठासीन अधिकारी कितना अन्यायी और अत्याचारी बर्ताव कर सकता है, ये दिखा दिया। इस मामले में सुप्रीम कोर्ट के आदेशों और निर्देशों का पालन नहीं किया और यह जघन्य संवैधानिक अपराध करने के लिए लोकसभा अध्यक्ष ओम बिरला ने नार्वेकर को पुरस्कृत किया। दल-बदल प्रतिबंध के संबंध में मौजूद संविधान की १०वीं अनुसूची की अध्ययन समिति का अध्यक्ष पद राहुल नार्वेकर को सौंपा गया है। जिन्होंने ‘फूट’ का समर्थन किया, उन्हीं को यह पद देना मतलब न्याय व्यवस्था की सीधे धज्जियां उड़ाने जैसा ही है।
केंद्रशासित चंडीगढ़ के महापौर पद के चुनाव में भाजपा की तरफ से जो हुआ, वह बेशर्मी की पराकाष्ठा है। महापौर पद के चुनाव में भाजपा के पास बहुमत नहीं था। उनके पास १४ वोट थे। आप और कांग्रेस के मिलाकर २० का स्पष्ट बहुमत था। दोनों के संयुक्त उम्मीदवार थे, लेकिन मतदान के बाद पीठासीन अधिकारी ने आप के आठ वोट को खारिज कर भाजपा के महापौर को विजयी बना दिया और खुद के हाथ से काट-पीट करके ‘अवैध’ ठहराए गए मतपत्रों को लेकर पीठासीन अधिकारी भाग गए। लोकतंत्र और न्याय की सरेआम हत्या कर दी गई। देश का सुप्रीम कोर्ट और चुनाव आयोग इस पर क्या करेगा?
इलेक्ट्रॉनिक वोटिंग मशीन ही भाजपा की जीत का जरिया है, ये अब साफ हो गया है। लोकसभा चुनाव जैसे-जैसे करीब आ रहा है, वैसे-वैसे जगह-जगह बड़े पैमाने पर ‘ईवीएम’ की खेप मिल रही हैं और जिनके पास ‘ईवीएम’ मिल रही हैं, वे सभी लोग भाजपा से संबंधित हैं। उससे भी ऊपर की कड़ी यानी जिस भारत इलेक्ट्रॉनिक्स लिमिटेड कंपनी में ईवीएम और उसका गुप्त कोड तैयार किए जाता है, उस कंपनी के संचालक के तौर पर सरकार ने भाजपा के पदाधिकारियों को ही नियुक्त किया है। उन संचालकों में एक गुजरात स्थित राजकोट के श्री मनसुखभाई हैं। यानी अब मतदान के लिए बूथ पर आकर बटन दबाने की भी जरूरत नहीं। कंपनी से ही मशीन में कमलाबाई घुसाकर बूथ तक पहुंचा दी जाएगी। ये तस्वीर गंभीर है।
 सुप्रीम कोर्ट ही आशा की एकमात्र किरण है, लेकिन वह किरण भी अब धूमिल होती जा रही है। सरकारी पक्ष का कई मामलों में दबाव है, ये अब लोग खुलकर बोलने लगे हैं। तारीखों का खेल वहां भी जारी है।
 केंद्रीय जांच एजेंसियों का दुरुपयोग भाजपा विरोधी नेताओं के खिलाफ ही जारी है। सभी भ्रष्टाचारियों को भाजपा में शामिल करके अभय दिया जाता है और उन पर दर्ज आपराधिक फाइलें अदालत के गोदाम में भेज दी जाती हैं। विरोधियों पर झूठे आरोप मढ़कर उन्हें जमानत भी नहीं लेने दी जाती। झारखंड के मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन को गिरफ्तार कर लिया गया और असम के भ्रष्ट मुख्यमंत्री हिमंत बिस्वा सरमा भाजपा के झुंड में शामिल होते ही पवित्र हो गए। देश की यह तस्वीर खतरनाक है। न्याय प्रणाली में ‘मेरिट’ खत्म हो गई है और सत्र न्यायालय वित्तीय स्वरूप के अपराधों में मेरिट पर जमानत न देकर वित्तीय लेन-देन की अपेक्षा करता है और तब तक जमानत लंबित रखता है। यह भ्रष्टाचार भाजपा काल में बढ़ा है। क्योंकि सरकारी अभियोजकों और न्याय व्यवस्था में नियुक्तियों में उनका हस्तक्षेप है। देश इतनी चिंताजनक स्थिति में पहुंच गया है और क्या केवल राम नाम से ही ये काले बादल छट जाएंगे? क्या जनता को इस चिंताजनक स्थिति का अंदाजा है?
राम का सुशासन
प्रभु श्रीराम का सुशासन यही देश के संविधान निर्माताओं के लिए प्रेरणा था, ऐसा हमारे प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने उनके ‘मन की बात’ में कहा, लेकिन श्रीराम ही आज के शासकों के प्रेरणास्रोत होते तो भारतीय संविधान का इतना अवमूल्यन ‘मोदी युग’ में नहीं होता। प्रधानमंत्री मोदी ने यह भी कहा कि ‘सुलभ न्याय सबका अधिकार’ है, लेकिन न्याय प्रणाली एक सुलभ शौचालय बन गई है और डिब्बे में एक सिक्का डाले बिना प्रवेश नहीं मिलता और न्याय भी नहीं मिलता। संवैधानिक संस्थाओं को नष्ट करके न्याय व्यवस्था का निजीकरण करना ये श्रीराम की प्रेरणा कभी नहीं थी।
आज हिंदुस्थानी न्याय व्यवस्था उद्ध्वस्त बाबरी जैसी ही हो गई है!

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