मुख्यपृष्ठनए समाचाररोखठोक : हमारी न्याय व्यवस्था की दुर्गति ... अदृश्य शक्ति कौन है?

रोखठोक : हमारी न्याय व्यवस्था की दुर्गति … अदृश्य शक्ति कौन है?

संजय राऊत – कार्यकारी संपादक

भारतीय न्याय व्यवस्था की धज्जियां उड़ गई हैं। पिछले दस साल का समय न्याय व्यवस्था के लिए बहुत बुरा रहा। २१ पूर्व जजों ने चीफ जस्टिस चंद्रचूड़ को पत्र लिखकर चिंता जताई है कि कोई अदृश्य ताकत न्याय व्यवस्था को कमजोर कर रही है। यह चिंता वास्तविक है, लेकिन उपाय क्या है? ये अदृश्य हाथ उजागर हो गए हैं। हमें इसके खिलाफ लड़ना होगा।

भारतीय न्याय व्यवस्था को कमजोर करने की कोशिश की जा रही है। २१ पूर्व जजों ने चीफ जस्टिस धनंजय चंद्रचूड़ को पत्र लिखकर कहा है कि यह चाल सफल नहीं होनी चाहिए। लोकसभा चुनाव के महासंग्राम के बीच न्यायाधीशों ने अपनी न्याय व्यवस्था पर चिंता व्यक्त की है। पिछले दस वर्षों में यानी मोदी युग में तानाशाही प्रवृत्तियां बढ़ गई हैं और २०२४ का लोकसभा चुनाव देश में लोकतंत्र की पुनर्स्थापना करने के लिए हो रहा है। मोदी काल में देश की सभी संवैधानिक संस्थाएं टूट गर्इं, इसमें अदालतें भी हैं। पिछले दस वर्षों में देश की सर्वोच्च न्याय व्यवस्था पर ‘गुजरात’ लॉबी का प्रभाव और कब्जा हो गया है। चुनाव आयोग, मीडिया, संसद, प्रशासन देश के ये चारों स्तंभ केंद्र सरकार के आतंक में हैं, ये स्पष्ट नजर आने के बावजूद हम वैâसे कह सकते हैं कि देश में लोकतंत्र बचा है? २१ जजों द्वारा मुख्य न्यायाधीश को लिखा गया पत्र उस लिहाज से अहम हो जाता है। २१ जजों का कहना है, ‘न्यायपालिका को कमजोर करने की कुछ समूहों द्वारा जानबूझकर कोशिश की जा रही है। कुछ तत्व संकीर्ण राजनीतिक हितों और व्यक्तिगत लाभ से प्रेरित हैं और न्यायपालिका में जनता के विश्वास को कम करने की कोशिश कर रहे हैं। कोर्ट के अधिकार क्षेत्र पर दबाव बनाने की कोशिश की जा रही है। यह न केवल न्यायपालिका की पवित्रता का अपमान करता है, बल्कि न्यायाधीशों द्वारा कानून के संरक्षक के रूप में शपथ ली गई निष्पक्षता के सिद्धांतों का भी उल्लंघन करता है। इस वजह से हमें चिंता होती है।’ २१ पूर्व जजों ने एक बात पर सहमति जताई कि न्यायपालिका एक खास समूह के दबाव में है। उन्हें यह कहने में झिझक क्यों हुई कि यह किसका दबाव है? मुख्य न्यायाधीश चंद्रचूड़ चुनावी बॉन्ड घोटाले में व्याप्त भ्रष्टाचार को सामने लाए और चुनावी बॉन्ड को ही रद्द कर दिया। ये मोदी सरकार को तमाचा है। सरकार में बड़े-बड़े काम देने के बदले में भाजपा ने उद्योगपतियों और ठेकेदारों से दस हजार करोड़ रुपए की धनराशि एकत्र की। यह लूट है। जब चंद्रचूड़ ने मामले पर निष्पक्ष फैसला सुनाया तो मोदी तमतमा गए और कहा, ‘अदालतें विकास में बाधा डाल रही हैं!’ यह दबाव ही तो है।

संघ की रचना
भारतीय न्यायपालिका में ‘संघ’ मंडलों ने अपने लोगों की कानूनी तरीकों से घुसपैठ करा दी है। सरकारी वकील, निचली अदालतों में नियुक्तियां इसी सोच के साथ की जा रही हैं। हाई कोर्ट तक यह रायता फैला दिया गया है। इसलिए भले ही राजनीतिक प्रतिद्वंद्वी निर्दोष हों, यह ऊपरी आदेश द्वारा तय होता है कि उसे ‘न्याय’ मिलना चाहिए या नहीं। भ्रष्ट चुनावी बॉन्ड के मामले में एटॉर्नी जनरल का सरकार की ओर से सुप्रीम कोर्ट में पेश होना अनैतिक है। एक निर्भीक न्यायपालिका किसी भी लोकतंत्र की आत्मा होती है। अनैतिकता ने हमारी सर्वोच्च न्यायपालिका को भी अपने आगोश में ले लिया है। न्यायाधीश किसी भी समाज का एक महत्वपूर्ण आधार होते हैं। इनके बिना समाज का बुनियादी संतुलन कायम नहीं रह सकता। सुप्रीम कोर्ट में ऐसी महिला जज हैं, जो मोदी के मुख्यमंत्रित्व काल में गुजरात सरकार की लॉ सेक्रेटरी थीं। राजनीतिक विरोधियों के सारे मामले उनके सामने लाए जाते हैं और मनचाहा पैâसला लेकर सरकार विरोधियों को प्रताड़ित करती है। यही खतरा है। सरकार की ओर से खुले तौर पर कहा गया कि हमें प्रतिबद्ध जज चाहिए। सत्तारूढ़ दल की विचारधारा के प्रति प्रतिबद्धता न्यायाधीशों की नियुक्तियों और पदोन्नति के लिए एकमात्र मानदंड बन गई है। यदि सरकार ईमानदार के बजाय बेईमान न्यायाधीशों की तलाश और नियुक्ति कर रही है तो राष्ट्र का यह स्तंभ नष्ट हो गया है, ऐसा ही कहना होगा।

१०वीं अनुसूची का क्या?
न्याय व्यवस्था पर राजनीतिक स्वरूप के मामलों में दबाव है। महाराष्ट्र में पार्टी विभाजन और असंवैधानिक सरकार को मिला असीमित संरक्षण इसका प्रमाण है। संविधान की १०वीं अनुसूची के अनुसार, महाराष्ट्र में पार्टी को तोड़कर बनाई गई सरकार असंवैधानिक है, ऐसा सुप्रीम कोर्ट ने हंटर चलाया। महाराष्ट्र के राज्यपाल, विधानसभा अध्यक्ष ने संविधान और नियमों का पालन नहीं किया, ये जाहिर होने के बावजूद भी महाराष्ट्र में वो असंवैधानिक सरकार सत्ता में है और सुप्रीम कोर्ट इसे बर्दाश्त कर रहा है। महाराष्ट्र में असंवैधानिक सरकार सीधे तौर पर सुप्रीम कोर्ट की अवमानना ​​है। सुप्रीम कोर्ट इस अपमान का घूंट पीकर आगे बढ़ रहा है। मुख्य न्यायाधीश चंद्रचूड़ ने ‘चंडीगढ़’ मेयर मामले में भाजपा की चोरी पकड़ी और भाजपा के अवैध मेयर को बर्खास्त कर दिया, लेकिन महाराष्ट्र की अवैध सरकार के मामले में न्या. चंद्रचूड़ इतनी निर्भीकता से काम नहीं कर सके। ऐसे में उन्होंने ‘तारीख पे तारीख’ के चक्कर में खुद को फंसा लिया। २१ पूर्व न्यायाधीशों को इस तरह के राजनीतिक दबावों को लेकर चिंता हो रही है तो ये उचित ही है।

सिस्टम का दुरुपयोग
सरकार द्वारा केंद्रीय जांच एजेंसियों का खुलेआम दुरुपयोग किया जा रहा है। बदले की भावना से झारखंड के मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन और दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल को गिरफ्तार कर जेल में डाल दिया गया। हमारा सर्वोच्च न्यायालय उन्हें न्याय देने और लोकतंत्र की रक्षा करने में कमजोर पड़ गया। पीएमएलए जैसे राक्षसी कानून को अनैतिक संरक्षण देने का काम न्या. अजय खानविलकर ने किया और न्या. खानविलकर सेवानिवृत्ति के बाद मोदी सरकार की कृपा से बतौर लोकपाल नियुक्त हो गए। मोदी सरकार उसी पीएमएलए कानून का इस्तेमाल विपक्ष और लोकतंत्र की हत्या के लिए कर रही है। विपक्ष को प्रताड़ित करने वाले पैâसले देकर सरकार की ‘गुड बुक्स’ में शामिल होने वाले कई वरिष्ठ न्यायाधीश भाजपा की कृपा से सेवानिवृत्ति के बाद सांसद, राज्यपाल और विदेश में राजदूत बन गए। इन घटनाओं ने न्यायपालिका के प्रति लोगों के विश्वास को तोड़ दिया है। यदि लोकतंत्र संकट में होने पर सुप्रीम न्याय व्यवस्था अपना सार खो दे तो इतिहास में उसके नाम के आगे ‘गद्दार’ लिखा जाएगा। भारत की जनता को ‘ईवीएम’ से होने वाले चुनाव पर भरोसा नहीं है। जनमत है कि लोकतंत्र में ईवीएम ही सबसे बड़ा घोटाला है। लोग इसके लिए सड़कों पर उतरे, लेकिन सुप्रीम कोर्ट इस जनाक्रोश का संज्ञान लेने को तैयार नहीं है। मोदी सरकार को तानाशाही की तटबंदी को मजबूत करने के लिए ईवीएम की जरूरत है। उस तानाशाही की दीवार पर बैठकर लोकतंत्र को सूली पर चढ़ाने के लिए सुप्रीम कोर्ट पहल क्यों करे? एक राजनीतिक गुट के दबाव के कारण ही यह सब चल रहा है। अदालतें भय के साये में हैं। कई जजों पर नजर रखी जाती है और उनके ‘वीक पॉइंट’ ढूंढकर उन्हें असहज कर दिया जाता है। शासकों ने राष्ट्रपति तक का सम्मान नहीं किया। संसद को भी बर्बाद कर दिया। ‘मीडिया’ लगभग सरकारी स्वामित्व का ही हो गया। ऐसे समय में देश को सुप्रीम कोर्ट से उम्मीदें होती हैं, लेकिन वो उम्मीदें विफल हो रही हैं।
लोकसभा के नतीजे मौजूदा सरकार के खिलाफ जाने की अधिक संभावना है। ऐसे कठिन समय में नतीजों के बाद सुप्रीम कोर्ट अपने हाथ की कठपुतली बनकर रहे, इसके लिए विभिन्न प्रकार के प्रपंच करने पड़ रहे हैं।
२१ पूर्व न्यायाधीशों की उंगली क्या इन्हीं प्रपंचों की तरफ है?

 

अन्य समाचार