संजय राऊत-कार्यकारी संपादक
लोकतंत्र और स्वतंत्रता को कमजोर करने वाले वर्ष के रूप में २०२४ को दर्ज किया जाएगा। चुनाव आयोग, सुप्रीम कोर्ट को नियंत्रित कर चुनाव जीतने वालों का शासन अधर्म है। इस अधर्म का राज २०२५ में समाप्त हो जाएगा। लोकतांत्रिक तरीकों से अधर्म की पराजय होना मुश्किल है, लेकिन मोदी-शाह की कुंडली का राजयोग अस्त होता दिख रहा है। इस कारण २०२५ में सत्य की जीत का सवेरा होगा।
वर्ष २०२४ लंबे समय तक लोकतंत्र और स्वतंत्रता को कमजोर करनेवाले वर्ष के रूप में याद रहेगा। महाराष्ट्र में देवेंद्र फडणवीस और दिल्ली में मोदी-शाह की जोड़ी फिर से सत्ता में आई, लेकिन इससे झूठ को प्रतिष्ठा मिली। भारतीय संविधान का ‘सत्यमेव जयते’ नारा पूरी तरह से खत्म हो गया है। सुप्रीम कोर्ट, चुनाव आयोग, राज्यपाल, लोकपाल जैसी संवैधानिक संस्थाओं की रीढ़ निकाल ली गई और बिना रीढ़ की इन संस्थाओं को सत्ताधारियों के आश्रितों की तरह गुजारा करते हुए २०२४ ने देख लिया। क्या ढलते साल की यह उथल-पुथल चढ़ते साल में खत्म हो जाएगी? यह सवाल आज हर किसी के मन में है। मोदी और शाह मतदाता सूचियों, ‘ईवीएम’ में छेड़छाड़ करके २०२४ में सत्ता में वापस आ गए, लेकिन उन्हें पूर्ण बहुमत नहीं मिला। मोदी-शाह का शासन दोबारा चुनकर नहीं आएगा और देश का अंधकार युग खत्म हो रहा है, ऐसे संकेत जब मिलने लगे तब नीतीश कुमार और चंद्रबाबू नायडू का सहारा लेकर मोदी सत्ता में आ गए। मोदी की सत्ता में वापसी असत्य की जीत थी। बहुमत खोने के बावजूद वे कुर्सी पर बैठे रहे, लेकिन बहुमत की रस्सी जल जाने के बावजूद उसका बल बरकरार रहा। हर मामले में उनकी मनमानी जारी है। उनका यह बर्ताव देश और एकता के लिए हानिकारक है, ऐसा उन्हें महसूस भी नहीं हुआ। यह किसका दुर्भाग्य है?
प्रगति में गिरावट
मोदी राज में देश की प्रगति तो गिरी ही है, लेकिन नैतिकता का पतन सबसे ज्यादा हुआ। भारत की आर्थिक स्थिति साफ तौर पर खराब हो चुकी है। मोदी ने भारत को ५ ट्रिलियन की दुनिया की तीसरी सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था बनाने की बात कही थी, लेकिन विश्व बैंक ने मोदी को झूठा साबित कर दिया। भारत एक बीमार, पंगु अर्थव्यवस्था बन गया है और घोटाले और फरेब बढ़ गए हैं। यह विश्व बैंक का विचार है। डॉलर के मुकाबले रुपया गिरकर ८६ पर आ गया। संसद परिसर में भाजपा के दो सांसद राहुल गांधी का धक्का लगने से गिर पड़े तो मोदी-शाह-भाजपा ने खूब शोर-शराबा किया, लेकिन भारत का रुपया गिरकर जमींदोज हो गया, उसे किसने धक्का दिया? उस गिरे हुए रुपए का सबसे बड़ा अवमूल्यन वर्ष २०२४ में हुआ और रुपए को मजबूत करने के लिए बड़बोली वित्तमंत्री निर्मला सीतारमण ने पॉपकॉर्न, छोले, कुरमुरे, पुरानी कारों की खरीद-बिक्री पर ‘जीएसटी’ कर लगा दिया। यह कर औरंगजेब द्वारा लगाए गए ‘जजिया’ कर से भी भयानक है। विश्व बैंक ने एक नई जानकारी का खुलासा किया है कि भारत आज १९९० की अपेक्षा ज्यादा गरीब हो गया है। एक गरीब देश की प्रति व्यक्ति आय ५७६ रुपए होनी चाहिए। भारत में प्रति व्यक्ति आय केवल १८१ रुपए या उससे कम है। २०२४ में लहसुन ४०० रुपए प्रति किलो हो गया और बेरोजगारी व महंगाई कितनी बढ़ गई, इस पर कोई चर्चा करने को तैयार नहीं है। मोदी ने अंधभक्तों को नशे की दवा देनेवाली टोलियां जगह-जगह बनाई हैं। उन अंधभक्तों ने मोदी को अपने कंधों पर ले लिया, लेकिन भारत देश उनके पैरों तले कुचला जा रहा है, यह साफ नजर आता है।
घमासान संग्राम
बांग्लादेश की पूर्व प्रधानमंत्री शेख हसीना देश छोड़कर भारत के आश्रय में आ गईं। सीरिया का मोहम्मद असद भाग गया। लोग उसके महल में घुस गए। भ्रष्टाचार से सत्ता नहीं टिकती। उसके साथ धर्म अफीम की गोली का काम करती है। देश में धर्मनिरपेक्ष लोकतंत्र और धार्मिक तानाशाही के बीच घमासान संग्राम जारी है। केवल हिंदू की राजनीति करने से यह देश अंतत: पाकिस्तान या अफगानिस्तान की राह पर चला जाएगा। धार्मिक तानाशाही से एक ही व्यक्ति की झुंडशाही निर्माण होगी और उससे केवल ‘खोमैनी’ ही खड़ा होगा। भारत में आज हिंदू खोमैनी का राज खड़ा हुआ है, वो चुनाव, नागरिक स्वतंत्रता और लोकतंत्र मानने को तैयार नहीं है। महाराष्ट्र में विधानसभा चुनाव भाजपा ने वैâसे जीत लिया? मराठी मतदाता अभी तक इस सदमे से उबर नहीं पाए हैं। गुजराती, मारवाड़ी, जैन और सदाशिव पेठी मतदाताओं ने एकजुट होकर मराठी अस्मिता को हरा दिया। इसलिए २०२४ में महाराष्ट्र के गांव-गांव में जातिवाद के भस्मासुर उठ खड़े हो गए। मराठी माणुस को महाराष्ट्र की राजधानी में ही परप्रांतियोेंं द्वारा लात मारी जा रही है। शाहू, फुले, आंबेडकर के महाराष्ट्र में हर जाति एक-दूसरे के खिलाफ खड़ी हुर्इं और बीड में संतोष देशमुख जैसे सरपंच की हत्या हो गई। भारत के प्रधानमंत्री मोदी को ऐसी घटनाओं से दु:ख नहीं होता। यह राज्य अब ऐसे ही चलेगा और इस सत्ता को लोकतांत्रिक तरीकों से हराया नहीं जा सकेगा, इस निराशा की गर्त में आज भारतीय जनता है। लोगों के मन में यह बात घर कर गई है कि ‘ईवीएम’ सेट हैं और चुनाव आयोग भाजपा की ही एक शाखा है। हमारे दिए हुए वोट वास्तव में कहां गए? यह जानने के अधिकार पर भी मोदी सरकार ने गदा घुमा दिया। यानी सूचना के अधिकार की रीढ़ ही तोड़ दी गई। यह सब वर्ष २०२४ में हुआ और फिर भी भारत में लोकतंत्र है, ऐसा मान लें!
सच्ची जीत का वर्ष!
साल २०२४ में अयोध्या में राम मंदिर का निर्माण हुआ और एक धार्मिक पर्व संपन्न हुआ। बाबरीवाद का मुद्दा इस वजह से हमेशा के लिए समाप्त हो गया। तो फिर राजनीति कैसे करें? ऐसा सवाल भाजपा प्रायोजित बजरंगियों के सामने आया। फिर वे हाथों में कुदाल और फावड़े लेकर मस्जिद के नीचे दबे हुए मंदिरों को खोजने लगे। किसी भी तरह से हिंदू-मुसलमानों के बीच शांति न होने दें और दंगे का वातावरण बना रहे, यह भाजपा और संघ परिवार ने ठान लिया है। महाराष्ट्र विधानसभा से पहले वक्फ बोर्ड का मुद्दा उठाया और महाराष्ट्र के सप्तशृंगी मंदिर से लेकर कई धार्मिक स्थलों पर वक्फ बोर्ड ने दावा कर दिया। ये सब संघ के लोगों ने करवाया और फिर इस मुद्दे पर हिंदुओं को भड़काकर वोट हासिल किया। उत्तर प्रदेश के संभल में दंगे भड़काकर सात लोगों की बलि ले ली और इस खून-खराबे का राजनीतिक लाभ हो रहा है, इस बात से मोदी और उनकी पार्टी खुश है। सुप्रीम कोर्ट द्वारा ‘Worship Act” में ढील देने का खामियाजा देश को भुगतना पड़ रहा है। यह ठीक है कि मुसलमानों को अधिक लाड़-प्यार नहीं करना चाहिए, परंतु धार्मिक राज्य व्यवस्था कायम रखोगे या नहीं? धर्म और राजनीति के बीच फासला रखोगे या नहीं! जो नहीं रखेंगे उन्हें इस देश में इसके बाद सत्ता नहीं मिलेगी। क्योंकि वोटों की लड़ाई में वे टिक नहीं पाएंगे। महाराष्ट्र का चुनाव एक ‘धर्मयुद्ध’ है, ऐसी गर्जना उन्होंने की और इसके लिए ‘बंटेंगे तो कटेंगे’ का नारा उन्होंने चलाया। जब विकास के सारे तीर खत्म हो जाते हैं तब धर्म का तीर निकाला जाता है। यह आखिर कब तक चलेगा? मोदी का राज धर्म का राज नहीं, बल्कि धर्मांधता का और अधर्म का राज है। अधर्म के राज पर जब धर्म का मुखौटा लग जाता है तो यह और भी खतरनाक हो जाता है। लोकतांत्रिक मार्ग का दुरुपयोग कर वे सत्ता हासिल करते हैं और उसे कायम रखने के लिए अधर्म का रास्ता अपनाते हैं। फिर भी अधर्म का अंत होता है। उदय हो रहे वर्ष में यह अधर्म खत्म होगा और लोकतंत्र की नई सुबह होगी।
२०२५ के अंत तक मोदी पद पर नहीं रहेंगे। देश में बड़ा परिवर्तन होगा। मोदी-शाह की कुंडली का राजयोग खत्म हो जाएगा, ऐसी तस्वीर साफ नजर आ रही है।
अंधभक्तों को मेरी यह बात पसंद नहीं आएगी, लेकिन २०२५ सत्य की जीत का वर्ष साबित होगा!