संजय राऊत – कार्यकारी संपादक
धारावी पुनर्वसन के नाम पर मुंबई की नीलामी शुरू हो गई है। धारावी पुनर्वसन के नाम पर महाराष्ट्र सरकार उद्योगपति अडानी को मौके के २० भूखंड दे रही है। ये मुंबई की लूट है। धारावी की युद्धभूमि पर मुंबई के अस्तित्व की लड़ाई शुरू है। मुंबई दहेज में दोगे, पर किसको? कीमत क्या है? एक बार पता तो चलने दो।
लोकसभा चुनाव के नतीजों ने दिल्ली को महाराष्ट्र का पानी पिला दिया। २०२४ के विधानसभा चुनाव में क्या होगा, ये सवाल इससे सुलझ गया है। दिल्ली पर दस साल से मोदी-शाह का शासन है। ऐसे में उन्होंने अपने व्यापारिक स्वभाव के अनुसार महाराष्ट्र में दलालों और लाचारों की फौज खड़ी कर दी है। मुंबई को हड़पना जारी ही है। मुंबई की मौजूदा स्थिति को देखकर पोर्तुगीजकालीन मुंबई की याद आती है। पुर्तगालियों ने अपने सौ वर्षों के शासन में मुंबई के गौरव को पूरी तरह से नष्ट कर दिया। १६६५ में, जब हम्प्रâी कुक ने पुर्तगालियों से मुंबई द्वीप को अपने कब्जे में ले लिया, तब मुंबई शिलाहारों की गौरवशाली राजधानी नहीं रही। वह यादवों का स्वर्ग नहीं रहा। यह एक बेसहारा द्वीप था, जिसे कट्टरपंथियों ने विध्वंस कर दिया था, पुर्तगालियों ने तबाह कर दिया था। महालक्ष्मी के चले जाने के बाद, यह जैसे ‘अवदसेची मिरास’ की भूमि बन गई थी। आगे चलकर उस मुंबई को गौरवशाली बनाने का काम अंग्रेजों ने किया और बाद में मराठी लोगों के पसीने से मुंबई को गौरव प्राप्त हुआ। वो मुंबई क्या पुर्तगाली युग में वापस चली जाएगी और अपना गौरव खो देगी?
शिंदे को चिंता नहीं
शिवसेना से अलग हुए एकनाथ शिंदे जैसे लोगों को अब मुंबई और महाराष्ट्र के स्वाभिमान से कोई लेना-देना नहीं है। मुख्यमंत्री शिंदे कहते हैं, ‘‘चुनाव आते ही शिवसेना को याद आता है कि मुंबई को महाराष्ट्र से काट दिया जाएगा और वे ऐसा हल्ला मचाते हैं।” उनका इस तरह की बातें करना ये केवल पक्षांतर न होकर एक तरह से धर्मांतरण भी है। महाराष्ट्र के निर्माण के बाद से ही मुंबई पर तलवार लटकती रही है और शिंदे-फडणवीस काल में यह तलवार और भी धारदार होकर नीचे आ गई है। मुंबई को हड़पने में आसानी हो, इसलिए मुख्यमंत्री पद पर शिंदे को मौजूदा दिल्लीश्वरों ने नियुक्त किया। शिंदे और उनके लोगों को केवल पैसे से मतलब है और यह पैसा उन्हें गुजरात के उद्योगपतियों से मिलता है। मंत्रालय के एक वरिष्ठ अधिकारी से दिल्ली में मुलाकात हुई। ‘‘मुख्यमंत्री शिंदे एमएमआरडीए के माध्यम से बड़ी परियोजनाओं की घोषणा करते हैं और उन कार्यों के आदेश और टेंडर निकलने से पहले ही गुजरात के ठेकेदारों से सीधे ४० प्रतिशत लेते हैं। कई हजार करोड़ का यह कारोबार शुरू है।’’ पालघर, रायगढ़, अलीबाग जैसे क्षेत्रों को एमएमआरडीए के अधीन लाना विकास नहीं, बल्कि मुंबई सहित आधे महाराष्ट्र को परप्रांतीय अमीरों को बेचने की चाल है। मुंबई का अस्तित्व ही खतरे में आ सकता है। इसमें अब धारावी का मुद्दा गरमाने लगा है।
धारावी किसकी?
धारावी अब मुंबई के लिए संघर्ष का मुद्दा बन गया है। अगर धारावी मराठी लोगों के हाथ में रही तभी हम मुंबई में स्वतंत्र रूप से रह पाएंगे। धारावी अब से मुंबई की युद्धभूमि बननेवाली है। क्योंकि धारावी पुनर्वास परियोजना की सारी मलाई भाजपा, शिंदे और गुजरात के प्रिय उद्योगपति खाने जा रहे हैं। धारावी को राज्य के गृहनिर्माण विभाग द्वारा विकसित किया जा सकता था। महाराष्ट्र के विकासकों को एकत्र करके ‘क्लस्टर’ तरीके से धारावी का पुनर्निर्माण किया होता, तो महाराष्ट्र की संपत्ति महाराष्ट्र में ही रहती और धारावी के आठ लाख लोगों को ५०० फुट का आवास मिला होता, लेकिन धारावी पुनर्वास के नाम पर मुंबई को एक-दो उद्योगपतियों की झोली में डालने की योजना खतरनाक है। धारावी पुनर्वसन का काम कोई धर्मादाय नहीं है। बिल्डरों का वो धंधा ही है। धारावी पुनर्वसन के ‘मेहनताने’ के रूप में अडानी को सरकार ने मुंबई में इफरात टीडीआर दिया। इस टीडीआर से उन्हें बदहजमी ही होगी।
असल में धारावीकरों को ५०० वर्ग फुट का घर मिलना ही चाहिए। धारावी नोटिफाइड विभाग का विकास करके धारावीकरों को घर और विकासक अडानी को भरपूर लाभ पहले ही हो रहा है। फिर भी मोदी-शाह के मित्र अडानी ने बदहजमी की चिंता किए बगैर मुंबई के कम से कम २० बड़े प्लॉट को निगलने की जो कोशिश शुरू की है, वो समझ से परे है। धारावी पुनर्वास के नाम पर अडानी को मुंबई में १,३०० एकड़ मौके की जमीन ‘बिदागी’ के तौर पर मिलेगी। धारावी के लिए जो निविदा निकाली गई, उस मूल निविदा में इन १,३०० एकड़ भूखंडों का उल्लेख ही नहीं है। तो यह भूखंड का श्रीखंड आया कहां से? धारावीकरों का पुनर्वसन वे जहां हैं, वहीं किया जाना चाहिए। मूल भूखंड पर ही वो होना चाहिए। धारावी की जगह ५९० एकड़ की है। उस पर एफएसआई, इसके अलावा १,३०० एकड़ की दक्षिणा। इस बिदागी की पान-सुपारी के रूप में अडानी को कुर्ला स्थित मदर डेयरी की २१ एकड़ जमीन, मुलुंड जकात नाका के लिए आरक्षित भूखंड भी मिला है। वडाला-मुलुंड के सॉल्टपेन की जमीन भी इस पान-सुपारी में शामिल है। धारावी पुनर्वास के बदले में महाराष्ट्र सरकार अडानी और उनके बिल्डरों की टीम को कौन से भूखंड देने जा रही है, इस पर मुंबईकरों को एक बार नजर डालनी चाहिए। इसकी सूची निम्नलिखित है
इनमें से कम से कम १५ भूखंडों का धारावी से संबंध नहीं है। मुंबई के भूखंड ही नहीं, बल्कि पूरी मुंबई ही अडानी और उनके लोगों को किस तरह दहेज में दी जा रही है, अब यह स्पष्ट हो गया है। धारावी तो बस निमित्त है। पूरी मुंबई महाराष्ट्र के हाथ से जा रही है।
टॉवर्स की मस्ती
मुंबई के मिलों की अधिकांश जगहों पर ऊंचे टॉवर्स खड़े हो गए हैं। यहां का मराठी माणुस दूर चला गया। इन टॉवर्स में अब मराठी लोगों को प्रवेश नहीं है। क्योंकि वे मांसाहारी हैं। यह महाराष्ट्र के गौरव का अपमान है। शिवाजी महाराज, डॉ. आंबेडकर कभी शाकाहारी नहीं थे और महाराष्ट्र आज भी उन्हीं के विचारों पर चल रहा है। अगर भाजपा के लोढ़ा ने मुंबई के सारे भूखंड हासिल कर लिए और अडानी ने सरकारी कृपा से मुंबई की जमीनें ले ली तो मराठी लोगों के हाथ में क्या बचा? टॉवर्स का मतदाता महाराष्ट्र से प्रेम नहीं करता। वह मुंबई की दौलत से प्यार करता है और चुनावों में मराठी लोगों को हराने के लिए ही टॉवर्स से उतरता है। यह एक समस्या है। आखिरकार, यह मुंबापुरी किसके लिए है, ये सुनिश्चित किए बिना यह समस्या हल नहीं होगी। मुंबई में हाउसिंग बोर्ड कॉलोनी का पुनर्वसन और निर्माण नए सिरे से हो रहा है। यहां भी पुन: टॉवर्स का ही राज। इन टॉवर्स में भी आखिर कौन आएगा? इन सभी इमारतों में कम से कम ६० प्रतिशत जगह मराठी मध्यमवर्गियों को, सरकारी कर्मचारियों को मिले, यह कानूनन सुनिश्चित किया जाना चाहिए। तभी मुंबई से बिल्डरों का शासन और राजनीति के पैसों की अकड़ कम होगी। मुंबई के बीकेसी स्थित अंतरराष्ट्रीय आर्थिक केंद्र का भूखंड मोदी ने सीधे बुलेट ट्रेन को सौंप दिया और मुंबई के अंतरराष्ट्रीय वित्तीय केंद्र को उठाकर गुजरात ले गए। इस केंद्र से मुंबई में आर्थिक कारोबार बढ़ गया होता। आम लोगों को यह समझना चाहिए कि मुंबई में अंतरराष्ट्रीय वित्त केंद्र वास्तव में क्या है। लंदन, न्यूयॉर्क, टोक्यो, सिंगापुर, हांगकांग, बहरीन, बेरूत, ज्यूरिख, बहामास ये आज ऐसे धन केंद्र हैं। पैसों का व्यवहार और विदेशी मुद्रा लेन-देन (यानी अंतरराष्ट्रीय स्तर की धोखाधड़ी) सिर्फ यहीं होता है, ऐसा नहीं है, बल्कि इसके कई फायदे भी हैं। ऐसे अंतरराष्ट्रीय धन केंद्र में सभी के बैंक खातों को गोपनीय रखने का काम होता है। सिंगापुर, हांगकांग, बहरीन, बेरूत, न्यूयॉर्क इन सभी ‘मनी सेंटर्स’ में विदेशी मुद्रा का कोई भी प्रतिबंध नहीं है। इसीलिए ऐसा लगता है कि मुंबई का यह अंतर्राष्ट्रीय धन केंद्र गुजरात के व्यापारियों के लिए गुजरात ले जाया गया है।
अमीरों के महंगे फ्लैट्स
मुंबई को अब अमीरों का शहर बनाया जा रहा है। मुंबई में हर फ्लैट १८० करोड़ में बिक रहा है। ये काला बाजार और काला धन के अड्डे बन गए हैं। गरीब मराठी माणुस फुटपाथ पर चलता है। उसे अमीरों की गाड़ियां उड़ाकर आगे बढ़ जाती हैं। इस लड़ाई में गिरगांव, दादर, परेल, पारले पहले ही ढह चुके हैं। मुलुंड, भायखला, बांद्रा, धारावी में ढहने की प्रक्रिया शुरू हो गई है। मुंबई की सीमा पालघर, अलीबाग से आगे तक बढ़ा दी गई। इसमें बिल्डरों और अमीरों का ही फायदा है। मुंबई में और समुद्र के पार भी कोई मराठी नहीं है, इस तस्वीर से जिसके हृदय में पीड़ा न हो, उसे भला मराठी माणुस वैâसे कहा जाए? धारावी के निमित्त मुंबई की मौके की जमीनें निगलकर डकारनेवालों के साथ आज महाराष्ट्र का शासन खड़ा है। क्योंकि उन्हें लूट का हिस्सा मिल रहा है। यह हिस्सा कितना है? महाराष्ट्र पर वर्तमान में जितना कर्ज है, उतना हिस्सा मुंबई बेचने की दलाली करनेवालों को मिलेगी।
मुंबई गिर रही है!
पुर्तगालियों के समय जो हुआ था, वही अब हो रहा है!