मुख्यपृष्ठनए समाचाररोखठोक : साला, उखाड़ दिया!

रोखठोक : साला, उखाड़ दिया!

संजय राऊत-कार्यकारी संपादक

मोदी युग में सच बोलने पर तो प्रतिबंध है ही। अब क्या हंसने और बोलने पर भी पाबंदी लगा दी गई है, यह सवाल उठने लगा है। एक व्यंग्यात्मक गीत को लेकर महाराष्ट्र में तोड़-फोड़ हुई। हिंसाचार और कुणाल कामरा की हत्या करने की भाषा बोली जा रही है। महाराष्ट्र या भारत के राजनेता कोई ईशदूत नहीं हैं। पैगंबर का व्यंग्यचित्र बनाने के कारण फ्रांस सहित कई देशों में दंगे हुए। क्या महाराष्ट्र में कोई खुद को ईश्वर का दूत समझता है?

मैं बहुत कुछ सोचता रहता हूं
पर कहता नहीं,
बोलना भी है मना,
सच बोलना तो
दरकिनार!
– दुष्यंत कुमार
भारत में सच बोलने पर तो हाल के दिनों में प्रतिबंध था ही, अब बोलने पर भी पाबंदी लगते हुए दिखाई दे रही है। लोग बात नहीं करते। लोग हंगामा करते हैं या फिर हाथों में लाठियां लिए तोड़-फोड़ करते हैं। यह तस्वीर विचलित करने वाली है।
महाराष्ट्र की राजनीति में हंगामा औरंगजेब से शुरू हुआ और कॉमेडियन कुणाल कामरा तक आकर थम गया। अफ्रीका के कुछ देशों में आज भी वंशयुद्ध और टोलीयुद्ध हुआ करते हैं, इसी तरह होते हुए यह नजर आया।
यह इस बात का उदाहरण है कि हम सब कितने असहिष्णु हो गए हैं।
कुछ साल पहले बराक ओबामा भारत आए थे।
उन्होंने भारत को सहिष्णुता पर ‘लेक्चर’ दिया। उस समय भारत का एक भी प्रतिष्ठित नागरिक ने ख़ड़े होकर ओबामा से नहीं बोला कि ‘‘साहेब, भारत की पहचान दुनिया में सहिष्णु के रूप में ही है। कृपया हमें सहिष्णुता का पाठ न पढ़ाएं।’’
अब लगता है कि ओबामा ने सच ही कहा था। भारत से सहिष्णुता खत्म हो गई है।
औरंगजेब के कब्र की राजनीति खत्म होने के बाद मुंबई में नरेंद्र मोदी के समर्थकों ने रात के अंधेरे में स्टैंडअप कॉमेडियन कुणाल कामरा पर हमला करने की कोशिश की। जब वह नहीं मिला तो उन्होंने उस स्टूडियो पर हमला कर दिया, जहां वह कार्यक्रम करता है और कलाकार के मंच को नष्ट कर दिया। उपमुख्यमंत्री शिंदे पर एक राजनीतिक व्यंग्यात्मक गाना बनाया, जिससे शिंदे के लोग नाराज हो गए। उनकी भावनाएं भड़क उठीं। शिंदे की भाषा में एक्शन का रिएक्शन हुआ। शिंदे का ऐसा बोलना बिल्कुल हास्यास्पद है। शिंदे के लिए जो लोग कामरा के स्टूडियो में चढ़कर गए वे सभी किराए के हैं। कल तक ये लोग असली शिवसेना के लिए लड़ते थे, आज वे शिंदे के लिए ऐसा करते हैं। जब शिंदे सत्ता में नहीं रहेंगे तो कोई दूसरा मालिक ढूंढ लेंगे। इसमें भावना वगैरह कहां है? सारा खेल पैसे और सत्ता का है।
नुकसान किसने किया?
एकनाथ शिंदे का सबसे ज्यादा नुकसान उनके आस-पास रहनेवाले बेदिमाग लोग ही कर रहे हैं। बेदिमाग सेना के वे नेता बन गए हैं। कुणाल कामरा मामले में यह साफ तौर पर नजर आया।
कामरा ने ठाणे के रिक्शावाले की समस्याओं पर केंद्रित एक व्यंग्यगीत बनाया और गाया। जिसमें उसने एक दाढ़ीवाला रिक्शाचालक गद्दारी करके अपने लोगों को लेकर गुवाहाटी जाता है, ऐसा लिखा। गाने के शब्द उनके कलेजे में आर-पार हो गए। असल में वे क्या हैं?
कामरा ने अपने शो में ‘दिल तो पागल है’ का पैरोडी सॉन्ग गाया था।
इसमें शिंदे का नाम कहीं नहीं है।
‘‘ठाणे की रिक्शा, चेहरे पर दाढ़ी, आंखों पर चश्मा हाये।
एक झलक दिखलाए कभी, गुवाहाटी में छिप जाए।
मेरी नजर से तुम देखो, गद्दार नजर वो आए।
मंत्री नहीं है वो, दलबदलू है और कहा क्या जाए।
जिस थाली में खाए उसमें छेद कर जाए।
मंत्रालय से ज्यादा फडणवीस की गोद में मिल जाए।
इस गाने का आशय नया नहीं है। इसे ‘सटायर’ कहा जाता है। पिछले चार वर्षों से गद्दारी और खोके विषय पर महाराष्ट्र में हास्य गीतों और चुटकुलों की बौछार हो रही है। विधानसभा चुनाव में गद्दारी के गीत प्रचार में लाए गए। इससे किसी की भी भावनाएं नहीं भड़कीं, लेकिन कामरा के गाने से भड़क गईं। शिंदे के लोगों ने कामरा के स्टूडियो पर हमला किया और इस तरह रिक्शाचालक की गद्दारी वाला गाना करोड़ों लोगों तक पहुंच गया। जो काम विधानसभा के प्रचार में नहीं हो पाया था, वो काम शिंदे और उनके लोगों ने कर डाला। इसके लिए मूल शिवसेना को शिंदे के भाड़े के लोगों को धन्यवाद देना चाहिए। मूर्ख राजनेता हास्य को नहीं समझते। हास्य जीवन का मनोरंजन है। हास्य और व्यंग्य न होता तो इंसान का जीना कठिन हो जाता। लोगों का खिलखिलाकर हंसना मोदी के अमृतकाल में बंद हो गया है। इसलिए व्यंग्य लेखक और कलाकारों पर हमले हो रहे हैं।
विडंबना का भय
काव्य की उत्पत्ति स्वर्ग में होती है और हास्य की उत्पत्ति पृथ्वी पर होती है। हास्य का अगला चरण व्यंग्य है। उपहास व्यंग्य की आत्मा है इसलिए यह अक्सर चुभता है। समाज में चल रही धोखाधड़ी, फरेब, राजनेताओं का ढोंगीपन, केवल पैसा और सत्ता पाने के लिए रचे गए वफादारों के पाखंड को उजागर करने के लिए व्यंग्य का काफी उपयोग किया जाता है। संयुक्त महाराष्ट्र की लड़ाई में आचार्य अत्रे ने व्यंग्य के हथियार चलाए और महाराष्ट्र के शत्रु परास्त हुए। महाराष्ट्र की जनता को ठगने का उद्योग पिछले तीन साल से चल रहा है। उन धोखेबाजों को ‘झटका’ देने का काम कुणाल कामरा के व्यंग्यगीत ने किया।
शिवसेनाप्रमुख बालासाहेब ठाकरे एक व्यंग्यचित्रकार थे। उनकी कूची जैसे बाघ का पंजा थी। उस पंजे के प्रहार ने कई लोगों को घायल किया। व्यंग्यचित्रकार डेविड लो शिवसेनाप्रमुख के आदर्श थे। बालासाहेब हमेशा कहा करते थे, ‘‘सौ अग्रलेखों की ताकत एक व्यंग्यचित्र में होती है।” द्वितीय विश्वयुद्ध के दौरान डेविड लो के व्यंग्यचित्रों के कारण हिटलर परेशान हो गया था। अंतत: उसने अपने सैनिकों को आदेश दिया, ‘‘व्यंग्यचित्रकार डेविड लो को ‘जिंदा या मुर्दा’, जैसे मिले वैसे मेरे पास ले आओ।’’ हिटलर जैसे डेविड लो से घबराया था, उसी तरह मोदी और उनके समर्थक कुणाल कामरा जैसे व्यंग्य कलाकारों से डरते हुए नजर आ रहे हैं। शिंदे और उनके लोगों ने कामरा को ‘जिंदा या मुर्दा’ पकड़ने की ठानी है और मुख्यमंत्री फडणवीस यह तमाशा सहन कर रहे हैं।
‘भारत जोड़ो’ में कुणाल
कुणाल कामरा ने राहुल गांधी, मनमोहन सिंह पर भी व्यंग्य किया, लेकिन वही कुणाल राहुल गांधी की ‘भारत जोड़ो’ यात्रा में गांधी के साथ चलते हुए नजर आए। राहुल गांधी ने भी अपने दिल में गुस्सा नहीं रखा। इसे सहिष्णुता कहते हैं। जो लोग इस सहिष्णुता के मारे जाने पर शांत रहते हैं, वे तानाशाही को मजबूत करने में मदद करते हैं। शिंदे के लोगों ने कुणाल कामरा को जान से मारने की धमकी दी और गृहमंत्री फडणवीस कहते हैं, ‘‘कुणाल कामरा को शिंदे से माफी मांगनी चाहिए।’’ तो फिर आपके पास मौजूद गृह विभाग किस काम का है? दंगाइयों को खुली छूट देकर आप कामरा से माफी मांगने को कह रहे हैं। शिंदे और उनके लोगों ने तीन साल में जो स्वार्थपूर्ण राजनीति की है, उससे महाराष्ट्र की बदनामी हुई है। शिंदे और उनके लोगों को ही महाराष्ट्र से माफी मांगनी चाहिए।
‘शिमगा’
‘शिमगा’ महाराष्ट्र में उत्साह के साथ खेला जाने वाला त्योहार है। इसमें अपने विरोधियों के नाम पर गाली-गलौज की बौछार करना, उनमें व्यंग्य ढूंढ़कर कीचड़ उछालना जैसे सनातनी और हिंदुत्ववादी तरीके होते हैं। कुणाल कामरा ने उसी ‘सनातनी’ अंदाज में ‘शिमगा’ किया। क्या इस पर नकली हिंदुत्ववादियों को दंगा करना चाहिए? नागपुर में दंगा हो गया। उस दंगे में हुए नुकसान की भरपाई दंगाइयों से वसूल करेंगे, ऐसी घोषणा मुख्यमंत्री फडणवीस ने की है। अब मुंबई के जिस हैबिटेट स्टूडियो पर दंगाइयों ने हमला किया और उसे नष्ट कर दिया, उसके करीब ४५ लाख के नुकसान की भरपाई उन्हीं दंगाइयों के मुखिया से वसूल की जानी चाहिए। नागपुर के दंगाइयों और कामरा के स्टूडियो को नष्ट करने वाले दंगाइयों में अंतर नहीं किया जा सकता। कानून सबके लिए एक समान होना चाहिए। अगर नागपुर दंगा महाराष्ट्र पर कलंक है तो मुंबई में स्टूडियो तोड़ने के दंगे को भी दाग ही ​​कहा जाना चाहिए, लेकिन श्री फडणवीस एकनाथ शिंदे को बेनकाब करना चाहते हैं। फडणवीस लोगों को दिखाना चाहते हैं कि शिंदे और उनके लोग महाराष्ट्र का माहौल खराब कर रहे हैं इसलिए वे कानून की भाषा नहीं बोल रहे और कामरा को शिंदे से माफी मांगनी चाहिए, ऐसी अलोकतांत्रिक भाषा बोल रहे हैं। ऐसा लगता है जैसे देवेंद्र फडणवीस अभिव्यक्ति की आजादी आदि को मानने को तैयार नहीं हैं। कंगना रनौत इस महिला के बेताल बयानों का समर्थन करते समय उन्हें अभिव्यक्ति की यह आजादी याद आई, लेकिन कुणाल कामरा मामले में वे आजादी नहीं मानते। जब कंगना रनौत ने उस वक्त मुंबई की तुलना पाकिस्तान से की थी तो लोग भड़क गए थे, लेकिन फडणवीस कंगना के समर्थन में उतर आए। यह दोगलापन है। नरेंद्र मोदी की एकाधिकारशाही, एकनाथ शिंदे के भीड़तंत्र और फडणवीस की धोखाधड़ी का ठीकरा कुणाल कामरा के डेढ़ मिनट के व्यंग्यकाव्य ने फोड़ दिया!
भाजपा और उसके गिरोहों का ढोंग युद्ध के मैदान में नहीं टिक पाया। कुणाल कामरा ने इसे डेढ़ मिनट में खत्म कर दिया। कामरा ने दिखा दिया कि भाजपा का भीड़तंत्र खोखली नींव पर खड़ा है। कामरा घुटने टेकने को तैयार नहीं हैं। वह बलिदान करने के लिए भी तैयार है।
ऐसे शख्स का शिंदे-फडणवीस क्या बिगाड़ पाएंगे!
कामरा ने डेढ़ मिनट में तानाशाह की कुर्सी के नीचे विस्फोट कर दिया…उखाड़ दिया!

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