बुलाकी शर्मा राजस्थान
कवि धाकड़ जी म्हारी कुटिया पधारिया जणै बां रो चैरो पळपळाट कर रैयो हो। म्हैं समझग्यो वैâ कविराज री कलम सूं आज नवी कवितावां रो जळम हुयो है।
मनोमन खुद नै मजबूत करियो- जीवड़ा त्यार हुय जा। अबै घंटा-सवा घंटा अरपण करणा है। थनै कवितावां सुणनी है, वाह-वाह करणी है अर सगळ्यां नै काळजयी बतावणी है।
आदर सूं बां नै सोपैâ माथै बिराजमान करिया अर घरधिराणी नै चाय-नास्तो लावण रो वैâयो।
‘ना… ना… फेर कदैई, अबार जल्दी में हूं।’
फेर म्हनैं अेक कार्ड झलांवता बोल्या, ‘अदीतवार नै म्हारै १०१वें कविता संग्रै रै लोकार्पण समारोह में आपनै बीं माथै पत्र वाचन करणो है।’
ओ कांई कोतक है? आज तांई आं रो अेक ई कविता संग्रै आयो कोनी अर लोकार्पण करवाय रैया है १०१वें रो!
सवालू निजरां सूं बां साम्हीं देख्यो जणा बां म्हांसूं अटपटो सवाल करियो, ‘आप कदैई किणी होटल रै कमरै में ठैरिया हो वैâ नीं?’
गीरबै सूं म्हैं वैâयो, ‘अकादमियां रै सेमिनारां में जावतो रैयो हूं। बे सांतरी होटलां में ई ठैराया करै, समझ्या।’
‘किणी होटल रै अेक नंबर कमरै में रुकण रो मोकौ मिल्यो हुवैला आपनै।’
म्हैं हांस्यो, ‘माफ करिया धाकड़ जी। आप बारै कदैई कवि-सम्मेलनां में गया हुवोला तो आयोजकां थांरै ठैरण री व्यवस्था धरम साळावां रै हॉल में करी लागै। सांतरा होटल आपरै रूम रा नंबर अेक सूं नीं अेक सौ अेक सूं स्टार्ट करिया करै।’
‘आयग्या नीं सही लैण माथै।’ बे मुळक्या, ‘होटलां रो पैलै नंबर रो कमरो अेक सौ अेक नंबर हुय सवैâ जणै म्हारो पैलो कविता संग्रै अेक सौ अेक वों कियां कोनी, बतावो?’
फेर बां आपरै झोळै सूं दो लिफाफा निकाळ्या। पैला अेक झलायो, ‘इण में म्हारी काव्य जातरा है। अणछप्या सौ कविता संग्रहां री परिचयात्मक जाणकारी रै साथै लोकार्पित संग्रै री सांतरी समीक्षा है। आपनै इण रो वाचन करणो है।’
फेर दूजो लिफाफो झलायो, ‘इण में आप सारू म्हारी श्रद्धा अर अपणायत है। फकत दो हजार पांच सौ अेक रुपया।’ अबै बे जावण लाग्या जणै म्हैं हौळै-सीक वैâयो, ‘कविता संग्रै रा दरसण हुय जावता तो…।’
बे हांस्या, ‘दरसण समारोह में। टैमसर पधार जाया भलो।’
‘टैम सूं पैला पूग जासूं सा।’
बां रै चैरै री पळपळाट अबै म्हारै चैरै माथै झपझपा रैई है।