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मोदी के नाम पर अब तक आरएसएस की मुहर नहीं… गडकरी, शिवराज और राजनाथ को समर्थन!

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और उनकी कोर टीम ने २०१४ से ही लगातार आरएसएस को दरकिनार किया है। २०२४ के चुनाव प्रचार में तो पार्टी अध्यक्ष जेपी नड्डा ने यहां तक कह दिया था कि अब भाजपा को आरएसएस की जरूरत नहीं है।’

सामना संवाददाता / नागपुर

४ जून को लोकसभा चुनाव के नतीजे आते ही प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने आनन-फानन में समर्थन जुटाने और जल्द से जल्द प्रधानमंत्री पद की शपथ लेने की जल्दबाजी मचा रखी है। एनडीए के घटक दलों की बैठक व भाजपा संसदीय बोर्ड की बैठक से पहले ही मोदी ने जेडीयू और टीडीपी से समर्थन पत्र पर हस्ताक्षर करा लिए हैं, ताकि उनके प्रधानमंत्री बनने की राह में कोई अड़चन न आ जाए। परंतु आरएसएस को विश्वास में न लेने व उसे लगातार इग्नोर करने के चलते आरएसएस ने अब तक मोदी के नाम पर मुहर नहीं लगाई है। यह दावा नागपुर के विश्वसनीय सूत्रों का है।
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और उनकी कोर टीम ने २०१४ से ही लगातार आरएसएस को दरकिनार किया है। २०२४ के चुनाव प्रचार में तो पार्टी अध्यक्ष जेपी नड्डा ने यहां तक कह दिया था कि अब भाजपा को आरएसएस की जरूरत नहीं है। हालांकि, अपनी राजनैतिक जमीन सरकते देख प्रधानमंत्री मोदी अपने १० वर्षों के कार्यकाल में पहली बार नागपुर स्थित आरएसएस के मुख्यालय पहुंचे थे और वहां रात में रुककर उन्होंने आरएसएस के साथ डैमेज कंट्रोल करने की कोशिश भी की थी। हालांकि, हालिया चुनावी नतीजों को देखकर उनके राजनैतिक डैमेज का कितना कंट्रोल हुआ, यह साफ-साफ समझा जा सकता है। आरएसएस के साथ मोदी के रिश्तों में आई खटास अब नतीजों के बाद भी स्पष्ट तौर पर देखी जा सकती है। इसीलिए मोदी चाहते हैं कि आरएसएस के हरकत में आने से पहले ही वे प्रधानमंत्री पद की शपथ ले लें, परंतु सूत्र बताते हैं कि आरएसएस के खेमे में कुछ और ही खिचड़ी पक रही है। सूत्रों की मानें तो आरएसएस की पहली पसंद नागपुर के सांसद व पूर्व भाजपा अध्यक्ष नितिन गडकरी हैं। सूत्रों के अनुसार आरएसएस का वैâडर मानता है कि गठबंधन सरकार चलाने के लिए गडकरी ही सबसे उपयुक्त चेहरा हैं, क्योंकि उनका सभी पार्टियों से अच्छा सामंजस्य है। गडकरी के बाद आरएसएस की निगाह में मध्य प्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान को एनडीए सरकार में प्रधानमंत्री पद का उपयुक्त उम्मीदवार माना जा रहा है।
आडवाणी की भी पसंद रहे हैं शिवराज!

नई सरकार में प्रधानमंत्री पद के लिए शिवराज सिंह चौहान का नाम भी चल रहा है। इसके पीछे तर्क दिया जा रहा है कि यह शिवराज का ही करिश्मा था कि मोदी विरोधी लहर होने के बावजूद वे मध्य प्रदेश में २९ में से सभी २९ सीटें जीत पाए। जिस दौर में गुजरात तक में भाजपा का जनादेश सरक गया, वहां यूपी से सटे एमपी में सभी २९ सीटें जीतना शिवराज का ही करिश्मा कहा जा सकता है। २०१४ के लोकसभा चुनाव से पहले वयोवृद्ध पार्टी नेता लालकृष्ण आडवाणी ने भी शिवराज सिंह चौहान का ही नाम आगे बढ़ाया था। उनका तर्क था कि गुजरात तो फिर भी विकासशील राज्य है, इसलिए वहां के सीएम को चुनावी चेहरा बनाने से बेहतर मध्य प्रदेश जैसे बीमारू राज्य को विकास की राह पर ले आनेवाले शिवराज सिंह को चुनावों में पार्टी को अपना चेहरा बनाना चाहिए। हालांकि, यह बात उन्होंने संकेतों में कही थी। परंतु यह सच भी है कि अनुभव और लोकप्रियता के मामले में भी वे मोदी से किसी प्रकार कम नहीं हैं। न उस दौर में थे, न ही आज के दौर में हैं। आज २०२४ के नतीजों में भी शिवराज ने अपना वजन साबित कर दिया है। उनके नेतृत्व में लड़े गए मध्य प्रदेश विधानसभा के २०२३ के चुनावों में भी अच्छा-खासा बहुमत मिलने के बावजूद साजिशन उन्हें कुर्सी से हटाकर लोकसभा चुनाव लड़ने को मजबूर किया गया। यहां भी उनके समर्थकों ने उन्हें भारी-भरकम अंतर से जिताकर यह साफ संदेश दे दिया कि यह जनादेश उनके पीएम बनने के लिए दिया गया है। आरएसएस खेमे में भी इसी पर मंथन जारी है, वहीं आरएसएस की तीसरी पसंद के रूप में रक्षामंत्री राजनाथ सिंह का नाम आगे आ रहा है। राजनाथ सिंह ने २०१४ में खुद अध्यक्ष रहते हुए मोदी का नाम आगे बढ़ाया था, परंतु बाद के समय में मोदी से उन्हें कई बार अपमानित महसूस होना पड़ा। लिहाजा, अब राजनाथ सिंह की भी बॉडी लैंग्वेज बदल गई है। उनकी बदली हुई बॉडी लैंग्वेज के पीछे आरएसएस का समर्थन भी एक बड़ा कारण माना जा रहा है।

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