श्रीकिशोर शाही
फिलहाल हिंदुस्थान का अपने किसी पड़ोसी से कोई युद्ध नहीं चल रहा है, मगर एफ-३५ और एसयू-५७ जैसे फिफ्थ जनरेशन के फाइटर देसी मीडिया की सुर्खियों में गुलाटियां लगा रहे हैं। असल में मामला ही कुछ ऐसा है। दुनिया के बड़े देशों के पास फिफ्थ जनरेशन के प्लेन आ चुके हैं। पड़ोसी चीन ने भी अपना बना लिया है। हमारा हाल ऐसा है कि देसी हवाई कंपनी ‘हाल’ (एच.ए.एल) ४० साल में ४० तेजस तक नहीं बना सकी है। बंगलुरु एयर शो के दौरान हमारे वायुसेना चीफ की नाराजगी को हल्के में नहीं लिया जाना चाहिए।सवाल आरोप-प्रत्यारोप का नहीं है। पिछले एक दशक से तो मोदी सरकार ने ही रक्षा की कमान संभाल रखी है। फिर ‘हाल’ का ‘ओवरहाल’ क्यों नहीं हुआ? क्या देश की इस प्रतिष्ठित संस्था में कोई गड़बड़ी चल रही है? होना तो यह चाहिए था कि हम अभी तक अपना फिफ्थ जनरेशन प्लेन बना लेते। ऐसे में हमें रूस और अमेरिका के सामने हाथ तो नहीं पैâलाना पड़ता। जरा सोचिए, हमारे वैज्ञानिकों ने दूसरे देशों के मुकाबले कई सैटेलाइट और रॉकेट काफी कम कीमत में बना लिए, पर नहीं बना पा रहे तो फाइटर। कोरोना काल में वैज्ञानिकों ने वैक्सीन बनाकर दूसरे देशों को भी दिया। हमने सेमी स्पीड ट्रेन वंदे भारत बना ली। पर न जाने इस फाइटर प्लेन को बनाने में क्या समस्या है?
जानकार बताते हैं कि रक्षा सौदों में करोड़ों रुपए के वारे-न्यारे हो जाते हैं। रूस और अमेरिका की नजरें भारत के लाखों करोड़ों रुपयों के मुद्रा भंडार पर लगी हुई हैं। हाल ही में जब मोदी जी अमेरिका गए तो अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप मारे उत्साह के बता गए कि वे एफ-३५ भारत को देने को तैयार हैं। एफ-३५ तो जब आएगा, तब आएगा, पर पीएम के आने के बाद अप्रवासियों की दो खेप अमृतसर एयरपोर्ट पर उतर चुकी हैं। सुना है कि तेजस के इंजिन के लिए अमेरिका से समझौता हुआ था। पर अमेरिका ने तो उस इंजिन के खेप भेजे नहीं। फाइटर प्लेन को मेंटेनेंस के लिए काफी कल-पुर्जों की जरूरत पड़ती रहती है। कल को यदि एफ-३५ आ ही गया और एन वक्त पर अमेरिका ने इंजिन या अन्य पुर्जे देने से मना कर दिया तो फिर लाखों करोड़ खर्च कर खरीदे गए जेन फिफ्थ फाइटर का क्या हम झाल बजाएंगे? यह लाख टके की बात है।