दुख है
जी हां
दुख है।
क्योंकि
आप सोए हैं
भटके हैं
बद मिजाज हैं
न सुनते हैं
न समझते हैं।
बस मनमानी करते हैं
उदासीन रहते हैं
न जागते हैं
न जगाते हैं।
जहां जाना है
वहां नहीं जाते
बेमतलब गाते हैं
अनाप सनाप बतियाते हैं
तर्कहीन।
उधर दुश्मन
मैदान मारता है
चारा डालता है
और आप
चुगने लगते हो
हबर हबर
अधीर होकर।
न सोचते हो
न समझते हो
न बोलते हो
न तर्क करते हो
आंख पर काली पट्टी बांध लेते हो
दुख होता है
हमें
बहुत दुख होत है
दर्द भी।
मगर हम क्या करें
हम आपसे लाचार हैं।
सहते बताए हुए अत्याचार हैं।
फिर भी
आपको जगाने के लिए
तैयार हैं।
क्योंकि हम
समझदार हैं
इस देश के
पहरेदार हैं।।
-अन्वेषी