संजय राऊत
`उत्तर प्रदेश में कांवड़ यात्रा श्रावण में निकलती है। ये श्रावण अलग ही है। यात्रा के मार्ग पर स्थित सभी दुकानदार अपने मालिकों और नौकरों का नाम बाहर लिखें, यह आदेश जारी हुआ। यह हिंदू और मुसलमानों के बीच नए विभाजन की नीति है। यह लोकसभा की हार के बाद भ्रमित भाजपा की विकृति है। तो फिर समोसे, जलेबी, चूड़ियों का क्या किया जाए, क्या इसका जवाब मिलेगा?’
लोकसभा चुनाव के बाद शुरू हुई भाजपा की अंदरूनी गुटीय लड़ाई अभी भी थमी नहीं है। हम ही कैसे हिंदुत्व के प्रहरी हैं, इसकी लड़ाई आपस में चल रही है। उत्तर प्रदेश में मुख्यमंत्री योगी और अमित शाह के गुट के बीच जंग शुरू हो गई है। भाजपा का हिंदुत्व यानी हिंदू-मुसलमानों के बीच दंगे कराने तक ही सीमित है। इस जातीय संघर्ष के हिंदुत्व को उत्तर प्रदेश समेत कई राज्यों ने बाहर कर दिया है। महाराष्ट्र और उत्तर प्रदेश में हुई दारुण पराजय से भाजपा आहत हो गई है। इसलिए उन्होंने हिंदुत्व के नए प्रयोग शुरू कर दिए हैं। कांवड़ यात्रा के मौके पर उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री ने नया आदेश जारी किया है। इसके मुताबिक, यात्रा के मार्ग पर पड़ने वाले ढाबों, होटलों, चाय की दुकानों, फल-फूलों की दुकानों के मालिकों को स्वयं अपने और काम करने वाले नौकरों के नाम बाहर प्रदर्शित करने होंगे, ताकि यात्रियों की पवित्रता बनी रहे। कांवड़ यात्री किस टपरी पर फलाहार करेंगे, वो हिंदू हैं या मुसलमान, यह तय करके किया जाएगा। यह देश को विभाजन की ओर ले जाने वाला पैâसला है। शिवसेनाप्रमुख बालासाहेब ठाकरे के शब्दों में कहें तो, ‘यह चोटी-जनेऊ का, घंटा बजाने वाला हिंदुत्व है।’ लोकसभा चुनाव में हार के बाद भाजपा इतने निचले स्तर पर गिर गई है।
इसका क्या किया जाए?
हिंदुओं को हिंदू दुकानों में जाना चाहिए और मुसलमानों को मुसलमानों की दुकानों में खान-पान करना चाहिए, यह विचार किसी सड़े हुए दिमाग से ही आ सकता है। यह धार्मिक विभाजन की शुरुआत है। प्रधानमंत्री मोदी ने एक बार कहा था, ‘मैंने अपना बचपन एक मुस्लिम परिवार में बिताया। मैं उनके बीच ही बढ़ा और बड़ा हुआ। मेरे पड़ोस में मुस्लिम परिवार रहते थे। ‘ईद’ के दौरान, हम घर पर खाना नहीं बनाते थे। क्योंकि पड़ोसी मुस्लिम परिवार से हमारे यहां भोजन आता था।’ उसी मोदी के दौर में दुकानों और होटलों पर जाति-धर्म के हिसाब से नाम लिखने का आदेश पारित हुआ। कांवड़ यात्रा की सड़कों पर स्थित होटलों के बाहर मुसलमानों का नाम लिखेंगे, लेकिन इस देश के सामाजिक और सांस्कृतिक जीवन में मुसलमानों का जो ‘नाम’ है, उसे कैसे मिटाएंगे? कैसे, ये देखिए।
– उत्तर प्रदेश के फिरोजाबाद में कांच का बड़ा उद्योग है। ९० प्रतिशत कांच की चूड़ियां यहीं बनती हैं। इस फैक्ट्री के कई मालिक और कारीगर मुस्लिम हैं। चूड़ियां हिंदू धर्म में सौभाग्य का प्रतीक हैं। करोड़ों हिंदू माताएं व बहनें गर्व से इन चूड़ियों को अपने हाथों में पहनती हैं। हम कैसे समझ पाएंगे कि ये चूड़ियां हिंदू कारीगर ने बनाई हैं या मुसलमान ने? अब वो चूड़ियां पहननी चाहिए या नहीं?
– लुंगी, गमछा, बनारसी साड़ी, चिकन कुर्ता, तांडा टेरीकॉट के शर्ट, ये लखनऊ से लेकर पूर्वांचल तक बनाए जाते हैं। इन्हें बनाने वाले ९० प्रतिशत ‘बुनकर’ मुसलमान हैं। ऐसे में क्या किया जाए?
– मुंबई के ‘अरब’ सागर का भी अब नाम बदलना होगा।
– भारत में बड़ी मात्रा में गेहूं उगाया और खाया जाता है। ‘नेमप्लेट’ का फरमान गेहूं के लिए मुसीबत बन सकता है। क्योंकि गेहूं भारत की फसल नहीं है। गेहूं की खोज १०,००० साल पहले तुर्की, जॉर्डन और सीरिया के सीमावर्ती क्षेत्र में हुई थी, ये तीनों आज मुस्लिम देश हैं। वहां से गेहूं भारत आया, लेकिन गेहूं का मूल स्थान मुस्लिम देशों में है। इस वजह से क्या गेहूं का बहिष्कार करेंगे भाजपावाले?
– प्रधानमंत्री मोदी और गृहमंत्री अमित शाह को समोसा पसंद है, लेकिन समोसा ‘हिंदू’ खाद्य पदार्थ नहीं है। समोसा एक ईरानी व्यंजन है। १५वीं शताब्दी में समोसा मुगल आक्रमणकारियों के साथ अफगानिस्तान के रास्ते भारत पहुंचा। १६वीं शताब्दी में पुर्तगाली अपने साथ आलू भारत लाए। बाद में उन आलुओं को समोसे में भरा जाने लगा। समोसे गुजरात प्रांत में और उत्तर में ज्यादा खाए जाते हैं। क्या उस समोसे पर भी नेमप्लेट लगानी चाहिए?
– जलेबी का भी बहिष्कार करना होगा। जलेबी का आविष्कार भी ईरान में हुआ था। वह ईरान में ‘जुलूबिया’ के नाम से मशहूर है। पांच सौ साल पहले तुर्की आक्रमणकारी अपने साथ जलेबी भारत लाए थे। जलेबी की खपत भी गुजरात में अधिक है।
– अरब और मुस्लिम देशों से भारत में पेट्रोल, डीजल आता है। तो अब से भाजपा के हिंदुत्ववादियों को घर में चूल्हा जलाने के लिए कोयले और लकड़ी का इस्तेमाल करना होगा।
– वैष्णोदेवी, अमरनाथ, केदारनाथ यात्रा के दौरान हिंदुओं को दर्शन कराने वाले सभी साथी मुसलमान हैं। फूल, प्रसाद, फल के दुकानदार मुसलमान हैं। ये रिश्ता कई वर्षों से टिका है।
– संक्रांति के दौरान ‘पतंग’ बनानेवाले मुसलमान हैं।
– हिंदुओं की शादियों में इस्तेमाल होनेवाली मेहंदी और बनारसी साड़ियां बनाने वाले कारीगर मुसलमान हैं।
विकृत मानसिकता
भाजपा का ‘नेमप्लेट’ छाप हिंदुत्व मतलब भ्रमित विकृत मानसिकता का प्रदर्शन है। लोकसभा चुनाव में भाजपा को मुस्लिम समाज ने वोट नहीं दिया, इसलिए भाजपा के हिंदुत्ववादियों की नाराजगी समझी जा सकती है, लेकिन महाराष्ट्र में कल हुए विधान परिषद चुनाव में एमआईएम, समाजवादी पार्टी के मुस्लिम विधायकों के वोटों को किस हिंदुत्ववादी पार्टी ने अपने तराजू में ‘ठोक’ भाव में तौलकर डाला, यह भी देवेंद्र फडणवीस जैसे नए हिंदूहृदयसम्राटों को स्पष्ट करना चाहिए। श्री. नारायण राणे के विधायक बेटे ने फडणवीस को ‘हिंदूहृदयसम्राट’ कहकर वीर सावरकर से लेकर बालासाहेब ठाकरे तक सभी का अपमान किया। विदर्भ के हिंदुओं ने ही फडणवीस को नकार दिया, ये ध्यान में रखना चाहिए।
न्यायालय का स्थगन
उत्तर प्रदेश, उत्तराखंड के ‘नेमप्लेट’ मामले पर अब सुप्रीम कोर्ट ने रोक लगा दी है, लेकिन इससे भाजपा के विकृत हिंदुत्व के मंसूबे उजागर हो गए हैं। देश में दंगे कराकर आग लगाना और एक बार फिर देश में विभाजन जैसी स्थिति पैदा करना मोदी और उनके परिवार की योजना लगती है। यह सच है कि देश में १८ करोड़ मुसलमान हैं, लेकिन मोदी ने अपना बहुमत गंवाया तो हिंदुओं के ही कारण। कई हिंदू बहुल इलाकों में मोदीकृत ढोंगी हिंदुत्व की हार हुई। पिछले कुछ दिनों में जो लोग राष्ट्रीय सुरक्षा के बारे में ‘रहस्य’ बेचते हुए पकड़े गए, उनका सीधा संबंध भाजपा या संघ से है। दुर्भाग्य से वे हिंदू हैं। देशद्रोहियों का कोई धर्म नहीं होता, ये समझना चाहिए। आजादी की लड़ाई में मुसलमानों ने कुर्बानी दी। आजादी के बाद ब्रिगेडियर उस्मान से लेकर अब्दुल हमीद तक और हर युद्ध में मुस्लिम सैनिकों की शहादत काम आई। उन शहीद मुसलमान जवानों की नेमप्लेट भी जगह-जगह लगाएं। जब कारगिल युद्ध हुआ तब अटल बिहारी वाजपेयी प्रधानमंत्री थे। उस युद्ध में भी पांच सौ से ज्यादा मुस्लिम जवान शहीद हुए। जम्मू-कश्मीर में आतंकवादी अभी भी मुसलमान पुलिस पर गोलीबारी कर रहे हैं। मोदी पाकिस्तान अधिकृत कश्मीर को भारत में लाकर उस पर अखंड हिंदुस्थान की नेमप्लेट लगाने वाले थे, लेकिन चीन लद्दाख में घुस गया और उसके बड़े हिस्से पर चीन की नेमप्लेट लग गई। मोदी के अंधभक्त और अन्य लोग कांवड़ यात्रा के मार्ग पर हिंदू-मुसलमान का ‘नाम’ लगाते घूम रहे हैं। जो लोग देश को प्राचीन युग में ले जाने के लिए सहमत हैं, उन्हें ऐसे हिंदुत्व का घंटा बजाते बैठना चाहिए।