हमारे शरीर में स्थूल शरीर के साथ-साथ एक आध्यात्मिक शरीर भी बना हुआ है। आध्यात्मिक शरीर के मुख्य अंग है आत्मा, कुंडलिनी शक्ति, मन, ध्वनि चक्र, ऊर्जा चक्र, नाड़ियां, रुद्र वायुएं इत्यादि। आत्मा का निवास हमारे हृदय की गहराइयों में होता है तो मन मस्तिक में स्थित है। कुंडलिनी शक्ति मूलाधार चक्र में विराजमान रहती है। मानव शरीर में ७२,००० नाड़ियां ५६ ध्वनि चक्रों से जुड़ी हुई स्थापित हैं। मानव शरीर में ऊर्जा का प्रवाह नाड़ियों द्वारा ही संपन्न होता है। मानव शरीर में ७ ऊर्जा चक्र होते हैं। जिनमें मूलाधार चक्र, स्वाधिष्ठान चक्र, मणिपुर चक्र, अनाहत चक्र, विशुद्धिचक्र, आज्ञा चक्र और सहंस्रधारा चक्र। एक ध्वनि चक्र से १,२०० से १,३०० नाड़ियां जुड़ी हुई हैं, जो आगे चलकर शरीर के भिन्न-भिन्न अंगों में पैâली हुई है। मानव शरीर में ध्वनि की तरंग ध्वनि चक्र से उत्पन्न होती है और कंठ तक पहुंचती है। कंठ में इस तरंग का केवल विस्तार होता है तत्पश्चात उसे तरंग को व्याकरण मुख देता है और एक अक्षर की ध्वनि बाहर निकलती है। संस्कृत भाषा ही एकमात्र भाषा है जो पूर्ण रूप से बोली जाती है, इसकी वजह से चक्र पूरे घूमते हैं। संस्कृत भाषा को छोड़कर किसी भी भाषा से हमारे चक्र पूर्ण रूप से नहीं घूम पाते। ४० साल की उम्र के पश्चात मानव शरीर की नाड़ियां सिकुड़ने लगती है और इसकी वजह से शरीर के भीतरी अंगों में ऊर्जा का प्रवाह प्रभावित होता है और शरीर रोग को धारण कर लेता है। वैदिक संस्कृत में ५६ ध्वनियां है तो संस्कृत में ४२ और हिंदी में ३३ वहीं अंग्रेजी में केवल २७ अक्षर ही हैं। मानव शरीर का रोगी होना कलयुग में स्वाभाविक है, क्योंकि वह अपनी ७२,००० नाड़ियों में पूर्ण रूप से ऊर्जा का प्रवाह कर पाने में असमर्थ है। शरीर में ऊर्जा का प्रवाह आकाश तत्व से बनी नाड़ियों द्वारा ही संपन्न होता है। अत: मानव को अपनी ऊर्जा संचार प्रणाली को उत्तम बनाना होगा। प्रत्यक्ष समय काल में तो पृथ्वी के सभी शरीरों की ऊर्जा संचार प्रणाली क्षतिग्रस्त है, क्योंकि मानव वैदिक रुद्र मंत्रों के अध्ययन से कोसों दूर है। आज के मानव के रोगी होने की एक परम वजह यह भी है कि वेद मंत्रों का उच्चारण ऊंचे स्वर में ही संपन्न होता है, ऐसा करने से शरीर की नाड़ियां मोटी भी होती हैं और गहराइयों तक भी खुल जाती हैं, जिससे ऊर्जा संचार प्रणाली अच्छी होती है। वैदिक मंत्रों के पठन-पाठन से मानव सुखी भी रह पाता है और निरोगी जीवन भी व्यतीत कर पाता है।
पं. राजकुमार शर्मा (शांडिल्य)
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