मुख्यपृष्ठस्तंभसटायर : नेताओं की विश्वनीयता में आई गिरावट

सटायर : नेताओं की विश्वनीयता में आई गिरावट

 डाॅ. रवीन्द्र कुमार

नेताजी ने फरमाया है कि नेताओं की विश्वनीयता में गिरावट आयी है। अब इसमें दो बातें हैं एक तो ताज्जुब यह है कि ये बात एक नेता ही कह रहा है तो हमें अविश्वास का कोई कारण नहीं है। दूसरे नेता जी को ये बात इतनी देर से क्यूं समझ में आई। हमें तो चुनाव दर चुनाव यह बात पक्की से पक्की होती जाती है कि नेता की बात कुत्ते की लात। वो जो कह रहा है समझो करेगा उसका उल्टा। वो नेता क्यूं बना है? आपके कल्याण के लिए बना है! अगर आप यह सोचते हैं तो आप बहुत बड़े चुगद हैं। नेता नेता बनता है, ताकि वो अपना घर भर सके। नेता नेता बनता है, ताकि वो अपनी पीढ़ियां सुधार सके। नेता-नेता बनता है, ताकि उसकी पैसे और पॉवर की भूख शांत हो सके। भले वो आपको कहानियां सुनाएगा कि वो नेता बना ताकि आपका, समाज का, देश का भला कर सके। सब बकवास है। वो नेता जो सन सेैंतालीस में थे, वो एक-एक कर गुजर गए। अब जो नेता बचे हैं शुकर मनाओ कि वो आपके तन पर कपड़े छोड़ रहा है।
नेता और विश्वनीयता दो परस्पर विरोधाभाषी बातें हैं। अगर नेता है तो उसकी बात का विश्वास क्या? और यदि इंसान विश्वास के लायक है तो वो और कुछ भी हो, नेता नहीं हो सकता। नेता सबसे पहले अपना भला सोचता है, फिर अपने बाल-बच्चों का भला सोचता और करता है। फिर भी फंड्स और अनर्जी बची रहे तो अपने खानदान, भाई-भतीजे की सोचता है। सबके अंत में नंबर आता है, उसकी जाति का उसके धर्म का और अंत में देश का। यूं जब वो बात करेगा तो उल्टा शुरू करेगा, सबसे पहले देश की बात करेगा, समाज कल्याण की बात करेगा आदि-आदि।
ये एक छोटी सी बात नेता जी को इतनी देर लग गई समझने में। वो हमको क्या बुड़बक ही समझे बैठे थे। सच भी है कि वो सोचते होंगे, जब चुनाव दर चुनाव उन्हीं को जिता रहे हैं तो हम वाकई बुड़बक ही होंगे। मगर सरजी! ऐसा नहीं है। हमें चाॅइस क्या है? एक नागनाथ है तो दूसरा सांपनाथ। एक कच्चा खाना चाहता है तो दूसरा भून के। भला आपने शाकाहारी शेर कभी देखा है? नरभक्षी और शाकाहार परस्पर विरोधी टर्म हैं। ये कोई ‘सोया चाॅप’ नहीं है कि आपको ‘चाॅप’ का मजा भी आ जाए और आप शाकाहारी भी बने रहें।
हां, मगर एक बात है ये नेता भी तो हमारे इसी समाज से आते हैं, जो तालाब में है वही तो लोटे में होगा। अब नेता कोई मंगल ग्रह से तो इम्पोर्ट किए नहीं जाएंगे। इन नई नस्ल के नेताओं ने ईमानदारी की परिभाषा ही बदल दी है। पहले वो नेता ईमानदार समझा जाता था, जो रिश्वत (सुविधा शुल्क) नहीं लेता था, अब वह नेता ईमानदार समझा जाता है, जो रिश्वत तो लेता है, मगर काम कर देता है। वादे का पक्का है। भरोसे वाला है। अब तो लोगबाग पैसे से भरा सूटकेस लिए उस आदमी को ढूंढ़ते ही रहते हैं, जो पैसे ले ले, मगर उनका काम कर दे। आज कोई इस बात को लेकर यकीन ही नहीं करता कि बिना पैसे या भ्रष्टाचार के भी कोई काम हो सकता है। हमारी यही उपलब्धि है कि हमने भ्रष्टाचार को सदाचार बना दिया है। ईमानदार आदमी ने अपने आपको शरीफ आदमी बना लिया है। बोले तो ‘गुड मैन’ यानि ‘गुड फॉर नथिंग’। वह किसी काम का नहीं। बात बात में आपको रूल बताता है। नालायक पहला रूल ही नहीं जानता कि ‘रूल्स आर फॉर फूल्स’।
आपने अबसे पहले सभी रंग-ढंग के नेता देखे हैं। अब राजनेता (स्टेट्समैन) नहीं होते, अब तो राजकीय (सरकारी) नेता होते हैं। मुंह से बस यही आह निकलती है कि कहां गए वो लोग?

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