मुख्यपृष्ठस्तंभसटायर: फ्रेक्चर कूल्हे में ऑपरेशन दिल का

सटायर: फ्रेक्चर कूल्हे में ऑपरेशन दिल का

 डाॅ. रवींद्र कुमार

नोएडा में एक ऐसा केस सामने आया है, जहां पेशेंट कूल्हे के फ्रेक्चर की शिकायत लेकर आया, मगर डॉक्टर ने अपनी ‘विजडम’ में ऑपरेशन कर दिया दिल का। अब देखा जाए तो सारा मामला दिल का ही तो है। आपने कहावत नहीं सुनी? मन के हारे हार है, मन के जीते जीत। उसी तरह दिल ही तो सब रोगों की जड़ है। दिल में न जाने कैसे-कैसे ख्याल आते हैं। ये दिल ही है, जो उसको ऐसा लगता है कि कूल्हे में फ्रेक्चर हुआ है। दिल ठीक तो कूल्हा-वूल्हा सब ठीक। अतः डॉक्टर ने जिस्म के मदर-बोर्ड यानि दिल का ही ऑपरेशन कर छोड़ा। अब दिल ठीक है आदमी का, तो क्या कूल्हा, क्या घुटना। सब चंगा है।

मैं ये सोच रहा हूं कि डॉक्टर ने दिल के ऑपरेशन में किया क्या होगा? अर्थात उसमें स्टेंट डाला या एक-आध वाल्व ही बदल दिया। वो होता है न एक के साथ एक फ्री। त्योहारों का मौसम चल रहा है, कोई स्कीम निकाली हो। फाइव स्टार होटल हो, मॉल हो, रेस्टोरेंट हो, सभी त्योहारों पर स्कीम लाते हैं तो अस्पताल वाले ही पीछे क्यूं रहते। अब जबकि दिल एकदम ‘गार्डन-फ्रेश’ कर दिया है कि आपको कूल्हे का दर्द अव्वल तो महसूस होगा नहीं और अगर हुआ भी तो आप नि: संकोच आइए हम देखेंगे क्या किया जा सकता है। इसी दिल का ऑपरेशन, आप ऑफ-सीजन में आते तो दस लाख से कम नहीं लगते। आप लक्की हो, जो स्कीम में आ गए। अब अपने इलाके के सभी कूल्हे के, घुटने के, स्किन के, आंख के, डायबिटीज के मरीजों को हमारे यहां भेजें, ताकि वे भी हमारी फेस्टिवल रिबेट का फायदा उठा सकें।

देखिए यह नोएडा है। नोएडा का संधि-विछेद है ‘नो-आइडिया’ होता है। आदमी-आदमी एक से। उसी तरह आदमी का अंग-अंग एक से। क्या कूल्हा, क्या दिल। भेदभाव नहीं करना है। हम डॉ होकर कतई ऐसा भेदभाव नहीं कर सकते। भई! देर-सबेर उसको दिल के ऑपरेशन की भी जरूरत पड़नी ही पड़नी थी। अब आपने दिल का ऑपरेशन पहले ही करा लिया है तो आप एक तरह से तैयार हैं। आपके दिल के आस-पास भी अब कोई मर्ज नहीं आएगा। हम आपके दिल में रहते हैं सनम।

आप ही सोचिए कि आप दो-दो बार अस्पताल में दाखिले से बच गए। आजकल टाइम कितना कीमती है। टाइम है किसके पास? कभी आप बिजी, कभी हम बिजी। अपने-अपने मुकाम पर कभी हम नहीं, कभी तुम नहीं। और फिर देख नहीं रहे मेडिकल खर्चे आसमान छू रहे हैं। अस्पताल में ढ़ूंढे से बेड नहीं मिलते। एडवांस बुकिंग चल रही होती है। अस्पताल वाले ऑपरेशन की तारीख इतने बाद की देते हैं कि तब तक या तो आदमी वैसे ही ठीक हो जाता है, या मर्ज के साथ जीने की आदत डाल लेता है। अस्पतालों से उसका विश्वास उठ जाता है या फिर वो खुद ही दुनियां से उठ जाता है। अब इस कूल्हे के मरीज को कौन समझाए उसको तो शुक्रगुजार होना चाहिए कि सिंगल-विंडो की तरह उसका काम हो गया। बार-बार आने की किल्लत से बच गया। इसी को कहते हैं ‘बाई वन-गैट वन फ्री’ बोले तो ‘काॅम्बो-ऑफर’। बाकी जीना-मरना वैद्यक हाथ नहीं, विधि हाथ है।

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