मुख्यपृष्ठस्तंभसटायर : स्मार्ट सिटी के वासी

सटायर : स्मार्ट सिटी के वासी

-डाॅ. रवीन्द्र कुमार

बचपन में सुनने में अच्छा लगता था कि फलां बच्चा बहुत स्मार्ट है। स्मार्ट एक ऐसा शब्द था, जो ईर्ष्या की हद तक पाॅजिटिविटी लिए रहता था। काश, हम भी स्मार्ट होते। स्मार्ट लगना हम मिडल क्लास लोगों का एक ‘माई एम्बीशन इन लाइफ’ टाइप सपना होता है। इसमें माता-पिता का बहुत हाथ होता था। वे चाहते थे कि बच्चा पढ़ाई करें और बस पढ़ाई करें। इसके लिए जरूरी है कि वह फिल्में न देखें, वह ज्यादा दोस्त-यारों की सोहबत में न रहे। ज्यादा खेलकूद भी वर्जित था और हां, बाल बड़े कदापि न रखें। अब इतनी सब बन्दिशों के चलते कोई कोई विरला ही स्मार्ट निकल पाता था या अपनी स्मार्टनेस कायम रख पाता था।
बस सरकार ने और उत्पादकों ने ये बात पकड़ ली। अब फ्रिज स्मार्ट होने लग पड़े हैं। दरवाजे पर ही तफसील लिखी आ जाती है। टी.वी. स्मार्ट हुआ तो पता ये चला कि केवल हम ही टी.वी. नहीं देख रहे टी.वी. भी हमें दिन-रात देख रहा होता है और हमारी हर हरकत पर नजर रखता है। गीजर स्मार्ट हो गए हैं, पानी गरम होने के बाद अपने आप ऑफ हो जाता है। ए.सी. स्मार्ट हो गए हैं एक तापमान के बाद खुदबखुद बंद हो जाता है और तापमान फिर बढ़ते ही पुनः चालू हो जाता है।
बड़ा सवाल ये है कि क्या हम उस अनुपात में स्मार्ट हुए हैं ? आप कहते नहीं थकते फलां मशीन वर्ड क्लास है पर क्या हम, उन चीजों को बापरने वाले, वर्ड क्लास हुए हैं या हम अब भी वहीं फंसे हुए हैं। मुझे तो लगता है कि ये महज फट्टेबाजी है कि ये मशीन, ये अस्पताल, ये होटल वर्ड क्लास है। इसका मतलब क्या होता है ? यही न कि ये वैसा है जैसा वर्ड में होता है। बोले तो इंटेरनेशनल टाइप, लेकिन हम तो वहीं के वहीं शुद्ध भारतीय हैं। उसी तरह जब आप कहते हो कि मेरा शहर स्मार्ट हो गया तो मैं समझता हूं कि हवा साफ हो गई होनी है, पानी शुद्ध होगा, जहां मर्जी नल से मुंह लगाओ और पियो। टैक्सी वाला, ऑटो वाला आपको ‘चीट’ नहीं करेगा। न लंबे रास्ते से से ले जाएगा न ऊल-जलूल किराया वसूल करेगा। गली हो या सड़क सब ‘सेफ’ होगी। रात-बिरात आप बेधड़क चल फिर सकते हैं। आप बैंक जाएं और आपका काम फौरन हो जाए। आप सरकारी दफ्तर में जाएं, आपको सिंगल विंडो के माफिक पूरी तसल्ली से पूरा काम कर दिया जाए। ये नहीं कि कल आना, परसों आना। सबको पेंशन समय पर मिले। मिलावट का कोई नाम न हो। दूध शुद्ध हो। घी और मिठाई बिना मिलावट हो। अगर ये नहीं है तो बताओ फिर स्मार्ट है क्या ?
बाज़ार में खीरा जाने कैसा हाइब्रीड आया है। न कोई खुशबू, न कोई स्वाद। सब्जियां सब इंजेक्शन से चल रही हैं। अस्पताल वाले आपका इंतजार कर रहे हैं, कब आप आयें और वो आपका नाम और बीमारी बाद में पूछें, पहले आपको वेंटीलेटर पर रख छोड़ें। आप ड्राइविंग लाइसेंस बनवाने जाएं और बाबू कहे सर ! आपने क्यूं तकलीफ की मुझे फोन कर दिया होता, हम ड्राइविंग लाइसेंस हो पी.यू. सी. हो, घर पर ही पहुंचा देते बस एक मामूली सा सुविधा शुल्क आपसे लेते।
आप चचा गालिब की तरह से सोचें:
मैंने चाहा था कि अंदोह-ए-वफ़ा से छूटूं
वो सितमगर मिरे मरने पे भी राज़ी न हुआ
तो हुजूर रुकिए ! इतना आसान नहीं। इसमें भी दुनिया भर के रगड़े हैं। आपको डैथ सर्टिफिकेट चाहिए कि नहीं ? तो लाइए सुविधा शुल्क।
स्मार्ट सिटी में आपका स्वागत है। आपको छोड़ कर यहां सब स्मार्ट हैं क्या नेता क्या अभिनेता, क्या चोर क्या व्यापारी। क्या वाशिंग मशीन क्या वोटिंग मशीन।
( लेखक के आगामी व्यंग्य संग्रह ‘स्मार्ट सिटी के वासी’ से)

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