सामना संवाददाता / मुंबई
महागठबंधन सरकार में मंत्री पद को लेकर अब भी असमंजस की स्थिति बनी हुई है। भारतीय जनता पार्टी और अजीत पवार गुट के विधायक शिंदे गुट द्वारा अधिक मंत्री पद मांगने पर नाराजगी जाहिर कर रहे हैं। इतना ही नहीं, खबर है कि शिंदे गुट के बीच ही विवाद खड़ा हो गया है। शिंदे गुट समेत बीजेपी विधायक सवाल उठा रहे है कि जिन मंत्रियों पर भ्रष्टाचार और अपने ही विधायकों के काम टालने का आरोप है, उन्हें दोबारा मंत्री पद नहीं देना चाहिए।
चूंकि शिंदे गुट में ५७ विधायक हैं, एकनाथ शिंदे हाई प्रोफाइल पोर्टफोलियो सहित अधिक मंत्री पद पाने के लिए संघर्ष कर रहे हैं। लेकिन चूंकि शिंदे गुट के विधायकों ने कई मंत्रियों की शिकायत की है इसलिए बीजेपी भी उन मंत्रियों की दोबारा नियुक्ति का विरोध कर रही है। इसमें केसरकर सहित अब्दुल सत्तार, संजय राठौड़, तानाजी सावंत, गुलाबराव पाटील और दादा भुसे शामिल हैं। विधायकों का आरोप है कि मंत्री पद पर रहते हुए उन्होंने जानबूझकर उनका काम रोका।
अब्दुल सत्तार पर सार्वजनिक रूप से महिलाओं के बारे में आपत्तिजनक बयान देना, जमीन हड़पने का आरोप है। तानाजी सावंत पर स्वास्थ्य मंत्री पद का दुरुपयोग कर बिना टेंडर के सैकड़ों करोड़ के ठेके एंबुलेंस खरीद के लिए दिए जाने का आरोप है। संजय राठौड़ पर पूजा चव्हाण की प्रताड़ना और आत्महत्या का मामला है, वहीं गुलाबराव पाटील पर भी भ्रष्टाचार के आरोप हैं। दीपक केसरकर पर शिक्षा मंत्री रहते हुए शिंदे गुट और बीजेपी के विधायकों की फाइलें रोकने की शिकायत है। दादा भुसे पर शिंदे गुट के विधायकों का काम रोकने का आरोप है। इसी मुद्दे को लेकर विधायक महेंद्र थोरवे मानसून सत्र के दौरान विधान भवन की लॉबी में भुसे से भिड़ गए थे। भाजपा सूत्रों ने कहा कि भाजपा का अभिजात्य वर्ग भी भ्रष्टाचार और चरित्र पर आरोप वाले लोगों को मंत्रिमंडल में नहीं चाहता है इसलिए विवादित मंत्रियों को दोबारा वैâबिनेट में शामिल किए जाने की संभावना कम है।