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आरटीई के फंड को लेकर स्कूल परेशान! …खर्च ३०,००० और फंड केवल १७,६७० रुपए

सामना संवाददाता / मुंबई
महाराष्ट्र सरकार ने शिक्षा का अधिकार (आरटीई) अधिनियम के तहत २०२४-२५ शैक्षणिक वर्ष के लिए प्रति छात्र १७,६७० रुपए की प्रतिपूर्ति तय की है। लेकिन निजी स्कूलों का कहना है कि यह राशि बिल्कुल नाकाफी है और इसे ३०,००० रुपए प्रति छात्र किया जाना चाहिए।
निजी स्कूल संचालकों का कहना है कि बढ़ती मुद्रास्फीति, शिक्षकों के वेतन और प्रशासनिक खर्चों को देखते हुए १७,६७० रुपए से स्कूल चलाना असंभव है। उनका कहना है कि वास्तविक खर्च ३०,००० रुपए से अधिक आता है, लेकिन सरकार उतनी राशि देने को तैयार नहीं है।
सरकारी वादे, हकीकत कुछ और
आरटीई अधिनियम के तहत निजी स्कूलों को २५ फीसदी सीटें आर्थिक रूप से कमजोर वर्ग (ईडब्लूएस) के बच्चों के लिए आरक्षित करनी होती हैं। लेकिन सरकार केवल १७,६७० रुपए ही देती है, जबकि स्कूलों का कहना है कि यह राशि उनकी जरूरत से बहुत कम है। स्कूलों को फीस के लिए सरकार पर निर्भर रहना पड़ता है, लेकिन जब समय पर पैसा नहीं मिलता, तो बच्चों की पढ़ाई प्रभावित होती है।
महाराष्ट्र सरकार ने २०२४-२५ में आरटीई प्रतिपूर्ति के लिए १७३ करोड़ रुपए आवंटित किए थे, लेकिन अब तक केवल ११४ करोड़ रुपए ही जारी किए गए हैं। स्कूलों का आरोप है कि सरकार फंड को अन्य योजनाओं में खर्च कर रही है, जिससे उनकी परेशानी बढ़ रही है।

सरकार को कब आएगी समझ?
स्कूल संचालकों का कहना है कि जब वे कोई गलती करते हैं, तो सरकार तुरंत कार्रवाई करती है, लेकिन जब सरकार अपनी जिम्मेदारी नहीं निभाती, तब कोई जवाबदेही नहीं होती है। पहले सरकार ने प्रति छात्र २१,७५० रुपए की प्रतिपूर्ति तय की थी, जिसे अब घटाकर १७,६७० रुपए कर दिया गया है। क्या सरकार की नजरों में शिक्षा सिर्फ एक औपचारिकता भर रह गई है?

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