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मूर्तिकारों को चाहिए पीओपी का विकल्प … …वर्ना गणेशोत्सव और नवरात्रोत्सव हो जाएगा फीका!

सरकार से व्यावहारिक निर्णय लेने की लगी गुहार
सामना संवाददाता / मुंबई
मुंबई मनपा ने श्री गणेश और मां दुर्गा की मूर्तियों के निर्माण में पीओपी के उपयोग पर पूरी तरह से प्रतिबंध लगा दिया है। यह पैâसला मुंबई हाई कोर्ट और केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड (सीपीसीबी) के आदेशों के आधार पर लिया गया है लेकिन मूर्तिकारों को कोई व्यावहारिक विकल्प नहीं दिया गया, जिससे उनकी आजीविका पर संकट मंडरा रहा है।
मूर्तिकारों का कहना है कि मिट्टी से केवल छोटी मूर्तियां ही बनाई जा सकती हैं, जबकि बड़ी गणपति प्रतिमाएं मुंबई की पहचान का हिस्सा हैं। प्रशासन ने प्रत्येक कारखाने को सिर्फ १०० किलोग्राम शाडू मिट्टी देने की घोषणा की है, जो बेहद कम है। मनपा ने कारखानों में नोटिस लगाने का आदेश दिया है कि वहां केवल पर्यावरण अनुकूल मूर्तियां ही बनाई जा रही हैं। लेकिन जब कोई व्यावहारिक विकल्प नहीं है, तो मूर्तिकार इसका पालन कैसे करेंगे?
पर्यावरण के नाम पर रोजगार में अड़ंगा
मुंबई में हर साल नदी-नालों में टनों सीवेज और औद्योगिक कचरा बहाया जाता है, लेकिन मनपा इस पर सख्त कार्रवाई नहीं करती है। अगर पर्यावरण सुधारना ही मकसद है, तो औद्योगिक कचरे और सीवेज पर सख्ती क्यों नहीं की जाती है?
मनपा के फैसले पर उठे सवाल
अगर पीओपी पर प्रतिबंध है, तो सरकार मूर्तिकारों को व्यावहारिक विकल्प कब देगी? केवल १०० किलोग्राम मिट्टी से हजारों मूर्तियां वैâसे बनेंगी? जल प्रदूषण का बड़ा कारण औद्योगिक कचरा और सीवेज है, लेकिन उस पर कोई रोक क्यों नहीं?
सरकार को जल्द निकालना होगा समाधान
मनपा के इस पैâसले से मुंबई के हजारों मूर्तिकारों का भविष्य अंधकार में है। सरकार को चाहिए कि परंपरा और पर्यावरण के बीच संतुलन बनाए और मूर्तिकारों के लिए भी व्यावहारिक समाधान निकाले।

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