मोहब्बत की तलाश

कौन समझाए इस दिल को
ले रहा जो मुश्किल को।
कहता हूं ये सुनता नहीं
चुप है ये बोलता नहीं।
ये किसकी तलाश में निकल पड़ा है
अपने सर गम ले खड़ा है।
कौन है भला इस महफिल में
ये तो है नहीं कहीं काबिल में।
मुसाफिर है ये बस मुसाफिर है
न घर है न इसका ठिकाना है,
इसे क्या पता, आज यहां कल वहां जाना है।
-मनोज कुमार
गोण्डा, उत्तर प्रदेश

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