सुरेश मिश्र
प्रियतम परदेस में हैं। गांव में चारों तरफ होली की हुड़दंग है। बेचारी नायिका विरह वेदना से व्यथित है। उधर इसी का फायदा देवर उठा रहा है। वह बहाने ले लेकर अपनी भाभी से छेड़खानी कर रहा है। सखी ने जब उदासी का कारण पूछा तो वह सिसक-सिसक कर रोने लगी। उसने बताया-
लागल बा जबसे फगुनवां सखी,
मोरा देवरा करेला बकलोली।
छुपि-छुपि दबे पांव घरवा में आवइ,
देखइ अकेली त, अंखिया दबावइ,
बोलइ कबीरा क बोली सखी,
मोरा देवरा करेला बकलोली।
मुठिया में हरदम लिहे बा गुललवा,
मौका मिलत ही छुवइ मोरा गलवा,
फागुन मा हम काउ बोली सखी,
मोरा देवरा करेला बकलोली।
डर लागे हम कइसे जाई सेंवरिया,
बंदूक जइसन तनी बा पिचकरिया,
हमरी भिगो देला चोली सखी,
मोरा देवरा करेला बकलोली।
सासू से बोली त हंसिके उड़ावइं,
अपने देवरवन क किस्सा सुनावइं,
जेठरू से कइसे मुंह खोली सखी,
मोरा देवरा करेला बकलोली।
जबसे लगल बाटइ फागुन महिनवां,
बुढ़ऊ भी बउरान हौं सगरे दिनवां,
ससुरू क रजिया का खोली सखी,
मोरा देवरा करेला बकलोली।
सइयां क बाटइ न कौनउ खबरिया,
मरि-मरि जियत बाटइ ओनकर गुजरिया,
कइसे कटे सगरी होली सखी,
मोरा देवरा करेला बकलोली।
केतना सहइब्या हमइ अस कलेश हो,
अब तउ घरे आवा सजना सुरेश हो,
नाहीं उठे हमरी डोली सखी,
मोरा देवरा करेला बकलोली।