मुख्यपृष्ठस्तंभऋतुचक्र : विदेसिया ...जियरा में लागइ चिनगारी रे विदेसिया

ऋतुचक्र : विदेसिया …जियरा में लागइ चिनगारी रे विदेसिया

सुरेश मिश्र

महुआ का मौसम अपने शबाब पर है। सखियां बागों में झउवा भर-भरकर महुआ बिन रही हैं, मगर नायिका के परदेसी प्रियतम घर नहीं लौटे। इसी बीच गांव में आंधी के साथ बेमौसम बूंदा-बांदी होने लगी। विरह वेदना से व्याकुल विरहिन ने प्रियतम को फोन किया-

बदरा से बुनिया गिरइ जो हमरे देहियां पे,
जियरा में लागइ चिनगारी रे विदेसिया।
मघा जइसन बरसेला अंखिया से अंसुवा हो
एक पल जुग जस गुजारी रे विदेसिया।
पतिया लिखी त कपटी कजरा ढरकि जाए,
मतिया बहकि जाए, हियरा दहकि जाए,
असिया न छुटे मोरा, पोर-पोर टुटे मोरा
जाने कवन लगल बा बिमारी रे विदेसिया।
देखलीं सपनवां, सवनवां मा अइले,
पिया मोरे बगिया में झुलवा झुलइले,
अंखिया खुलल तउ सपन सगरा टूटि गइला
अंसुवा से भीगि गइली सारी रे विदेसिया।
राति-राति सिसकी हम, दिनवां म रोई हो,
काटि खाए सेजिया बलम कइसे सोई हो,
खोई-खोई रही रोटी पोइ नाही पावत बानी
सासू अम्मा देइं सउ-सउ गारी रे विदेशिया।
तोहरा खबर नाहीं, कइसे छटपटाई हो,
डागडर बोलाइ गइला, देइ न दवाई हो,
देहिया जरत बाटइ, संसिया चलत बाटइ,
समझ मा न आवइ बिमारी रे विदेसिया।
पियरानी देहिया बा, अंखियां म झाईं हो,
दिल कइ कहानियां हम केकरा बताई हो,
हमरा करेजा फाटइ, पिया निरमोही बाटइ,
जरी जइसे भाड़ में जवारी रे विदेशिया।
देहियां पताइ मोरा, घेरे कमजोरिया,
जाने कहिया छूटि जाई, संसिया क डोरिया
कुछ भी होइ जाई हमके, आगि के लगाई राजा?
सोचि, जिया लगे भारी-भारी रे विदेसिया।

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