भीतर से तुम बाहर आओ।
अपनी सारी कथा सुनाओ।।
भूतकाल से हाथ मिलाकर।
वर्तमान की राह बनाओ ।।
धीरे-धीरे करो कल्पना।
जिज्ञासा का साथ निभाओ ।।
खुद से पूछो कहां जा रहे।
मन में कुछ उत्साह जगाओ।।
दिशा और गति दोनों देखो।
निरसता को दूर भगाओ।।
स्वाभिमान की सेवा करके।
खुद विवेक का मान बढ़ाओ।।
संयमपूर्वक आंख खोलकर।
आगे को तुम बढ़ते जाओ।।
भौतिक युग का दर्द समझकर।
जितना चाहे पुण्य कमाओ।।
सेवा करने लायक बनाकर।
अपना मानव धर्म निभाओ।।
बच्चों जैसे निश्छल मन से।
देखो समझो अर्थ लगाओ।।
सद्विचार में सुखी रहो तुम।
और प्रेम का गाना गाओ।।
आए जब हालात भयानक।
पूरा धीरज पास बुलाओ।।
भीतर से तुम बाहर आओ।
अपनी सारी कथा सुनाओ।।
-अन्वेषी