सात फेरे

फेरे बीच खड़ी मैं, मेरे वचन सुनो प्रिये
वस्तु नहीं मैं जीवात्मा हूं, अर्धांगिनी बन रहूं प्रिये।
मेरी भावना का करो सम्मान न होऊं मैं तुमसे पृथक प्रिये।
धुरी हूं मैं जीवन की न कहना कटु वचन प्रिये।
मेरे हृदय को आघात न हो, ऐसा न आए कभी समय प्रिये।
चाहे कितने भी सूल हो राहों में, तुम न छोड़ना मेरा दामन प्रिये।
मान नहीं मेरा अभिमान बन, तुम साथ चलना मेरे प्रिये।
जब हो जीवन की सांध्य बेला, तुम नूर बन बरसना प्रिये।
रिश्तों के इस मेले में, मेरी इच्छाओं का मोल तुम रखना प्रिये।
कौतूहल वश कभी मैं भटक जाऊं, तुम सूरज बन चमकना प्रिये।
मैंने सहर्ष स्वीकार किए तुम्हारे ये वचन
अब मेरी भी तुम सुनना प्रिये।
चाहे कितनी भी कठोर धूप हो
तुम हमसाया बन रहना प्रिये।
यदि मैं हार जाऊं संघर्षों से
तो तुम शक्ति बन जुड़ना प्रिये।
टूट जाऊं तो कभी मैं
तुम हाथ न झटकना मेरा प्रिये।
परिवार में ही नहीं,
मेरे हृदय में भी तुम ही सदा रहना प्रिये।
यदि बीच मझधार में पतवार फंस जाए
तो तुम खेवनहार बनना प्रिये।
भवसागर हम पार करेंगे
सदा हमसफर बन रहना प्रिये।
अग्नि को साक्षी मान,
पूर्ण हुए हमारे सात फेरे।
ब्रहमाण्ड भी सुन रहा था,
हमारे ये वचन प्रिये।
आओ नमन करें,
साक्षी बने इस ब्राह्मण को
खरे उतरें हम दोनों,
अपने वचनों में प्रिये।
ये भीष्म प्रतिज्ञा हमारी
खुशियों का सदा बने आधार प्रिये
सदा बने आधार प्रिये।
-वंदना मौर्या

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