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शिव परिवार और प्रथमेश

आदिदेव महादेव के पुत्र प्रथमेश अर्थात गणेशजी का स्थान विशिष्ट है। कोई भी धार्मिक उत्सव, यज्ञ, पूजन इत्यादि सत्कर्म हो या फिर विवाहोत्सव या अन्य मांगलिक कार्य हो, गणेशजी की पूजा के बगैर शुरू नहीं हो सकता। निर्विघ्न कार्य संपन्न हो इसलिए शुभ के रूप में गणेशजी की पूजा सबसे पहले की जाती है। भगवान शिव ने जहां कैलाश पर डेरा जमाया तो उन्होंने कार्तिकेय को दक्षिण भारत की ओर शैव धर्म के प्रचार के लिए भेजा। दूसरी ओर गणेशजी ने पश्चिम भारत (महाराष्ट्र, गुजरात आदि) तो मां पार्वती ने पूर्वी भारत (असम-पश्चिम बंगाल आदि) की ओर शैव धर्म का विस्तार किया। कार्तिकेय ने हिमालय के उस पार भी अपने साम्राज्य का विस्तार किया था। कार्तिकेय का एक नाम स्कंद भी है। उस पार आज के स्कैंडेनेविया, स्कॉटलैंड आदि के क्षेत्र उनका उपनिवेश था। गणेशोत्सव आयोजन के प्रमाण हमें सातवाहन, राष्ट्रकूट तथा चालुक्य वंश के काल में मिलते हैं। ब्रिटिश काल में कोई भी हिंदू सांस्कृतिक कार्यक्रम या उत्सव को साथ मिलकर या एक जगह इकट्ठा होकर नहीं मना सकते थे। पहले लोग घरों में ही गणेशोत्सव मनाते थे और गणेश विसर्जन करने का कोई रिवाज नहीं था। लोकमान्य बाल गंगाधर तिलक ने १८९३ में पुणे में पहली बार सार्वजनिक रूप से गणेशोत्सव मनाया। आगे चलकर उनका यह प्रयास एक आंदोलन बना और स्वतंत्रता आंदोलन में इस गणेशोत्सव ने लोगों को एकजु: करने में अहम भूमिका निभाई। आज गणेशोत्सव एक विराट रूप ले चुका है।
– शीतल अवस्थी

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