सामना संवाददाता / मुंबई
राज्य में सरकार की लीज पर दी गई जमीनों के संशोधित किराए की वसूली को लेकर मुंबई हाईकोर्ट ने शुक्रवार शिंदे सरकार को झटका दिया है। कोर्ट ने साफ शब्दों में कहा कि संशोधित किराया बढ़ाया जाना उचित हो सकता है लेकिन जबरन वसूली गलत है। हाईकोर्ट की पीठ ने कहा कि सरकार द्वारा हर पांच साल में लीज का किराया संशोधित या पुनर्निर्धारित करना उचित नहीं है भले ही याचिकाकर्ताओं के पट्टे ३० साल की अवधि के लिए नवीनीकृत किए गए हों। कोर्ट में राज्य सरकार के लीज पर दी गई जमीनों के लिए सरकार ने संशोधित दर लागू किया है। जिसके तहत अधिक किराया वसूलने के खिलाफ याचिका दायर की गई थी, इसे लेकर वकील रफीक दादा ने कोर्ट में दलील दी। हालांकि, कोर्ट ने नए रेडी रेकनर दर को लेकर संशोधित दर लागू करने के मामले में राज्य सरकार को राहत दी। लेकिन साथ ही लीज किराया बढ़ाने के लिए २०१२ और २०१८ के सरकारी जीआर में अपनाई गई नई पद्धति ‘उचित’ थी। साथ ही अदालत ने यह भी कहा है कि संशोधित दरों की जबरन वसूली नहीं की जा सकती है। हाईकोर्ट ने इस संबंध में विवादित जीआर को लेकर कहा कि लीज डीड राज्य को लीज की अवधि के दौरान बीच-बीच में लीज किराए में एकतरफा बदलाव करने का अधिकार नहीं देता है। कोर्ट ने सरकार के उस तर्क को भी खारिज कर दिया कि पांच साल का नवीनीकरण आवश्यक है। मुंबई में संपत्ति की कीमतों में भविष्य में गिरावट आएगी।