मुख्यपृष्ठस्तंभसियासतनामा : फिर संकट में मणिपुर

सियासतनामा : फिर संकट में मणिपुर

सैयद सलमान मुंबई

हाल ही में मणिपुर के जिरीबाम में तीन शव मिलने के बाद वहां फिर से हिंसा भड़क उठी। ये घटनाएं उस समय हुर्इं, जब राज्य में पहले से ही तनाव और अशांति का माहौल बना हुआ है। स्थानीय लोग गुस्से में आकर घटना के खिलाफ सड़कों पर उतर आए। प्रदर्शनकारियों ने मणिपुर सरकार के दो मंत्रियों और तीन विधायकों के घरों का घेराव कर दिया। दंगों के बाद जिले में अनिश्चितकालीन कर्फ्यू लगा दिया गया है। मणिपुर में चल रहे इस संघर्ष से स्थानीय निवासी बुरी तरह प्रभावित हुए है। मणिपुर पूरे देश के लिए चिंता का विषय बन गया है। इस संघर्ष में कई लोगों की जानें गई हैं और संपत्ति को भी नुकसान पहुंचा है। हालात इस कदर बिगड़ गए हैं कि मणिपुर गृहयुद्ध के मुहाने पर खड़ा है। केंद्र सरकार इस पूरे मुद्दे पर असंवेदनशील बनी हुई है और हिंसा तथा अशांति के इस चक्र को तोड़ने के लिए कोई पहल नहीं कर रही है। यदि जल्दी ही वहां शांति स्थापित नहीं होती है तो मणिपुर का संकट पूरे देश के लिए एक बड़ा खतरा साबित हो सकता है।
महाराष्ट्र सिखाएगा सबक
‘बंटेंगे तो कटेंगे’ वाला नारा भाजपा के गले की हड्डी बन गया है। सहयोगी दल के अजीत पवार और शिंदे इससे पहले ही किनारा कर चुके हैं। अब तो भाजपा भी इस नारे से पल्ला झाड़ती नजर आ रही है। महाराष्ट्र की संस्कृति का हवाला देकर पहले पंकजा मुंडे और फडणवीस, फिर अशोक चव्हाण ही नहीं, बल्कि यूपी के डिप्टी सीएम केशव प्रसाद मौर्य भी इस नारे से खुद को अलग कर चुके हैं। दरअसल, महाराष्ट्र विधानसभा के चुनाव को लेकर भाजपा और सहयोगी दलों का हर पैंतरा नाकामयाब हो रहा है। उस पर इसी विवादित नारे को लेकर अजीत पवार और शिंदे की भूमिका से भाजपा असहज महसूस कर रही है। उसे यह भय सता रहा है कि कहीं इस विवादित नारे का हाल भी ‘४०० पार’ वाले नारे की तरह न हो, इसीलिए इस आक्रामकता को ढंकने के लिए ‘एक हैं तो सेफ हैं’ जैसे नारे इस्तेमाल किए जा रहे हैं, लेकिन महाराष्ट्र की जागरूक जनता महायुति की विभाजनकारी नीति को समझ गई है। बस उसे २० तारीख का इंतजार है जिस दिन वह छत्रपति शिवाजी, फुले, शाहू और आंबेडकर की धरती को बदनाम करनेवालों को सबक सिखा सके।
यूपी में नूराकुश्ती!
एक बात समझ से परे है कि अखिलेश यादव और केशव प्रसाद मौर्य की एक-दूसरे पर की गई टिप्पणियों का क्या अर्थ है। अखिलेश यादव कह रहे हैं कि उपमुख्यमंत्री मौर्य मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ का तख्तापलट चाहते हैं और इसके लिए सुरंग खोदी जा रही है। अखिलेश का इशारा उपमुख्यमंत्री की बैठकें और सभाओं के रद्द होने को लेकर था, जबकि दूसरी तरफ केशव प्रसाद मौर्य अखिलेश यादव पर बौखलाने का आरोप लगाते हुए दावा कर रहे हैं कि समाजवादी पार्टी का सूर्यास्त होनेवाला है और उनकी पार्टी का जहाज डूब रहा है। वह भाजपा में शामिल होने की कोशिश कर रहे हैं। हालांकि, रोचक तथ्य यह भी है कि दोनों योगी आदित्यनाथ के खिलाफ कभी एक से सुर में नहीं बोले, फिर भी दोनों को उनका धुर विरोधी माना जाता है। योगी आदित्यनाथ ने अक्सर केशव प्रसाद मौर्य को राजनीतिक रूप से नुकसान पहुंचाने का काम किया है। हो सकता है अखिलेश और केशव की ये बयानबाजियां नूराकुश्ती हों और दोनों योगी को मिलकर पटखनी देना चाहते हों। सियासत में वैसे भी नामुमकिन कुछ नहीं है।

मटन, शोरबा और हंगामा
यूपी के भदोही सांसद डॉ. विनोद बिंद के रात्रि भोज कार्यक्रम पर लोग खूब मजे ले रहे हैं, जहां जमकर लात-घूंसे चले थे। सांसद महोदय ने न्योता करीब २००-२५० लोगों को ही दिया था, लेकिन इसमें ४० गांवों के १,००० से ज्यादा लोग पहुंच गए। इसके बाद तो जो हालात बिगड़े तो फिर संभाल पाना मुश्किल हो गया। ‘मटन’ कम पड़ने के लिए हुआ झगड़ा सिर फुटव्वल तक पहुंच गया। यूं तो भाजपाई मांसाहार पर ज्ञान देते हैं, लेकिन मटन पार्टी करते रहते हैं। अब इस हंगामे को विपक्ष की चाल बताया जा रहा है। अरे भई, क्या पार्टी विपक्ष ने दी थी? क्या न्योता विपक्ष ने दिया था? क्या मारपीट विपक्ष ने की थी? नहीं न? तो फिर विपक्ष को क्यों बीच में लाना? साफ-साफ क्यों नहीं कहते कि मटन पार्टी करते हुए अपनी जयकार करवानी थी, लेकिन खर्च के नाम पर कंजूसी कर बैठे। अब जो खाने आए थे वो क्या केवल ‘शोरबे’ पर गुजारा करते? अभी तो एक सांसद के यहां जूतमपैजार हुई है, झूठे आश्वासन देने वाले अनेक भाजपा सांसदों के यहां ऐसी घटनाएं घटित होने लगे तो आश्चर्य नहीं होना चाहिए।

(लेखक मुंबई विश्वविद्यालय, गरवारे संस्थान के हिंदी पत्रकारिता विभाग में समन्वयक हैं। देश के प्रमुख प्रिंट और इलेक्ट्रॉनिक मीडिया से जुड़े वरिष्ठ पत्रकार और राजनीतिक विश्लेषक हैं।)

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