सैयद सलमान मुंबई
देश की सुरक्षा सर्वोपरि है, इससे किसी भी देशवासी को इनकार नहीं है। इस मुद्दे पर राजनाथ सिंह को लेकर भी किसी के मन में शायद ही संशय है। लेकिन मोदी-शाह की जोड़ी ने जबसे केंद्र में नेतृत्व संभाला है, तबसे जिन नेताओं के पर कतर दिए गए हैं, उनमें राजनाथ सिंह का नाम सबसे ऊपर है। गाहे-बगाहे राजनाथ सिंह चर्चा में आना चाहते हैं, लेकिन उन्हें दरकिनार कर दिया जाता है। एक वीडियो याद कीजिए, जिसमें दिखता है कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी सहित कई दिग्गज नेताओं को जब पुष्पमाला पहनाई जा रही थी, तब उसमें से बड़े ही दयनीय तरीके से राजनाथ सिंह ने अपना सिर बाहर निकाला था। यह राजनाथ सिंह जैसे कद्दावर नेता के लिए शर्मिंदगी भरा था। वही राजनाथ सिंह जब कहते हैं कि आतंकवादी भारत में शांति भंग करने और पड़ोसी देश भागने की कोशिश करेंगे तो हिंदुस्थान उन्हें पाकिस्तान में घुसकर मारेगा तो लगता है कि बात गंभीर है। लेकिन चुनाव के वक्त उनके बयान से जरूर संशय होता है। भाजपा के पास अब मूल मुद्दों से हटकर ऐसे ही भावनात्मक मुद्दों का ही सहारा है।
समाज में फूट
बसपा चीफ मायावती के भतीजे आकाश आनंद और भीम आर्मी चीफ चंद्रशेखर अब आमने सामने आ गए हैं। आकाश आनंद ने नगीना लोकसभा क्षेत्र में जनसभा कर बसपा के चुनाव अभियान की शुरुआत कर दी है, जहां उन्होंने चंद्रशेखर पर खूब सियासी हमले किए। चंद्रशेखर पर एक सीट के लिए इंडिया गठबंधन के आगे झुकने का आरोप लगाते हुए आकाश आनंद ने तल्ख टिप्पणी की कि तब भी चंद्रशेखर के साथ किसी ने समझौता नहीं किया। इस बीच उनकी जुबान से अपशब्द भी निकले। वैसे देखा जाए तो चंद्रशेखर ने दलित राजनीति के साथ अल्पसंख्यकों को भी अपने साथ जोड़ा है। यही तरीका मायावती का भी रहा है। चंद्रशेखर दलितों में तेजी से लोकप्रिय हो रहे हैं और आकाश आनंद बसपा का उभरता सितारा हैं। दोनों की जमीन एक है। लेकिन दोनों के बीच अगर ऐसी शत्रुता उभरती है तो यह दलित समाज के लिए उचित नहीं होगा। भाजपा जैसे दलों के लिए यही मुफीद है कि हर समाज आपस में लड़ता रहे। मायावती परिपक्व राजनीतिज्ञ हो गई हैं, उन्हें इस मसले को गंभीरता से सुलझाना चाहिए।
पोल खोल
देश भर में भाजपा ४०० पार का नारा देती फिर रही है, लेकिन मोदी-शाह के गुजरात में ही उसे फजीहत का सामना करना पड़ रहा है। पिछले दिनों गुजरात के साबरकांठा से भीखाजी ठाकोर और वडोदरा की सांसद और पार्टी उम्मीदवार रंजन भट्ट ने निजी कारण बताकर लोकसभा चुनाव लड़ने से इनकार किया था। पार्टी उस सदमे से अभी उबरी नहीं थी कि केंद्रीय मंत्री परषोत्तम रूपाला की उम्मीदवारी वापस लेने की मांग को लेकर क्षत्रिय महिलाओं ने ‘जौहर’ यानी आत्मदाह करने की धमकी दे दी है। यह महिलाएं उनकी ‘राजपूत विरोधी’ आपत्तिजनक, अभद्र और अशोभनीय टिप्पणी को लेकर बेहद नाराज हैं। इतना ही नहीं, पूरा राजपूत समाज कई प्रदेशों में रूपाला का पुरजोर विरोध कर रहा है। सोचिए उनमें इस आदमी के लिए कितना गुस्सा होगा कि मौत को गले लगाने को भी वे तैयार हैं। एक तरफ तो बिना रीढ़ की हड्डी वाले नेता भाजपा में टिकट की लालच में जाना चाहते हैं, जबकि सच्चाई यह है कि वहां आपस में ही जूतम पैजार मची हुई है। ऐसी घटनाएं भाजपा की पोल खोल रही हैं।
दलबदल है मूल मंत्र
‘युवा न्याय’, ‘नारी न्याय’, ‘किसान न्याय’, ‘श्रमिक न्याय’ और ‘हिस्सेदारी न्याय’ जैसे शीर्षक देकर कांग्रेस ने अपने घोषणापत्र को ‘न्याय पत्र’ का नाम दिया है। २०२४ लोकसभा चुनाव के लिए जारी कांग्रेस के घोषणा पत्र में गरीब परिवार की महिलाओं को १ लाख रुपए सालाना, ३० लाख नौकरियां, एमएसपी को कानूनी दर्जा, जाति जनगणना, मनरेगा मजदूरी ४०० रुपए, जांच एजेंसियों का दुरुपयोग रोकने और पीएमएलए कानून में बदलाव जैसे कई लोकलुभावन वादों का जिक्र किया गया है। न्याय पत्र नाम देने से ही घोषणा पत्र में राहुल गांधी की न्याय यात्रा की पूरी छाप नजर आती है। कांग्रेस ने विश्वास दिलाया है कि इसे केवल कागजों तक सीमित न रखकर सार्वजनिक भागीदारी सुनिश्चित करने की कोशिश की गई है। युवाओं, महिलाओं, किसानों के मुद्दे छूने से इस वर्ग के मतदाता और किसानों का समर्थन मिलने की उम्मीद की जा रही है। हालांकि, भाजपा इसे लेकर कांग्रेस पर हमलावर है। वैसे भाजपा अभी तक दूसरे दल के नेताओं को आयात करने में ही लगी है। भाजपा ने दल-बदल को ही जीत का मूल मंत्र मान लिया है और वही उसका घोषणापत्र है।
(लेखक मुंबई विश्वविद्यालय, गरवारे संस्थान के हिंदी पत्रकारिता विभाग में समन्वयक हैं। देश के प्रमुख प्रिंट और इलेक्ट्रॉनिक मीडिया से जुड़े वरिष्ठ पत्रकार और राजनीतिक विश्लेषक हैं।)