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सियासतनामा: कहां है कानून व्यवस्था?, ईडी बनाम स्कूल, चवन्नी तो पलट गई

सैयद सलमान मुंबई

कहां है कानून व्यवस्था?

कल्याण के भाजपा विधायक गणपत गायकवाड किसी सुनसान जगह या भीड़भाड़ वाले इलाके में नहीं, बल्कि पुलिस स्टेशन में गोलीबारी करते हैं। दहिसर में फेसबुक लाइव पर हंसते-मुस्कुराते पूर्व नगरसेवक अभिषेक घोसालकर की गोली मारकर हत्या कर दी जाती है। पुणे में पत्रकार निखिल वागले की कार पर हमला किया जाता है। कार के शीशे तोड़े जाते हैं, कार पर स्याही फेंकी जाती है। भाजपा कार्यकर्ताओं पर आरोप है कि उन्होंने इस घटना को अंजाम दिया। मात्र यही नहीं, ऐसी कई घटनाएं हैं, जो दर्शाती हैं कि महाराष्ट्र की स्थिति क्या है। खुद भाजपा विधायक गोलीबारी करने के बाद कहते पाए गए कि `अगर शिंदे महाराष्ट्र के सीएम बने रहे तो हम केवल अपराधियों को आगे बढ़ते हुए देखेंगे।’ बात तो सही है, वरना एक चुना विधायक इस कदर गुस्सैल वैâसे हो जाता है कि वह सरेआम पुलिस स्टेशन में फायरिंग करे। एक अपराधी अपने दफ्तर में बुलाकर किसी की हत्या करे। कुछ उपद्रवी इकठ्ठा होकर पत्रकार पर हमला करें। यह सत्ताधारियों के अहंकार का नतीजा है। और कानून? यह किस चिड़िया का नाम है?

ईडी बनाम स्कूल

दिल्ली आबकारी नीति मामले में अरविंद केजरीवाल पर शिकंजा कसा जा रहा है। ईडी ने सीएम केजरीवाल को पूछताछ के लिए पांच बार समन जारी किया, लेकिन इसे राजनीतिक साजिश बताते हुए अरविंद केजरीवाल ईडी के सामने पेश नहीं हुए हैं। वे तो सोशल मीडिया पर जवाब देते पाए जाते हैं कि, `तुम जितने समन भेजोगे, हम उतने स्कूल बनाएंगे।’ वे धड़ाधड़ दिल्ली में स्कूलों की नई इमारतों का शिलान्यास कर रहे हैं। उनका कहना है कि केंद्र ईडी के जाल में उन्हें फंसाने का अपना धर्म करे, वो स्कूलों की संख्या बढ़ाते हुए अपना धर्म निभायेंगे। केजरीवाल ने पिछले दिनों यह दावा भी किया था कि भाजपा, `आप’ के विधायकों को पैसों का ऑफर कर रही है। भाजपा ने इससे इनकार किया था और अरविंद केजरीवाल के खिलाफ पुलिस में शिकायत की थी। भाजपा के लिए केजरीवाल एक बहुत बड़ा रोड़ा हैं। देखना यह है कि केजरीवाल कब तक उसके चंगुल से बच पाते हैं। जो भी हो भाजपा नीत केंद्र सरकार और केजरीवाल के बीच की इस सियासी जंग पर खूब चटखारे लिए जा रहे हैं।

चवन्नी तो पलट गई

‘जो रोगी को भाए, वही वैद्य बताए’ वाली बात जयंत चौधरी पर फिट बैठती है। उनकी पार्टी आरएलडी का अखिलेश की पार्टी सपा से भी गठबंधन था और वह इंडिया गठबंधन का भी हिस्सा बनी हुई थी। ये कोई नई बात नहीं है। वो पाला बदलते रहे हैं। वो एनडीए का हिस्सा रह चुके हैं। किसान आंदोलन मामले में लाठीचार्ज झेल चुके जयंत चौधरी ने अभी दो वर्ष पहले भाजपा के साथ जाने से इनकार करते हुए कहा था, `मैं कोई चवन्नी थो़ड़े ही हूं, जो पलट जाऊंगा।’ पर हाय री सियासत, कुछ-एक सीटों की शर्त पर एनडीए का हिस्सा बनने की मजबूरी बताई जा रही है। सहारा लिया गया सरकार द्वारा चौधरी चरण सिंह को भारत रत्न देने की घोषणा का। जयंत यह कहते पाए गए, `मैं किस मुंह से इनकार करूं?’ इन बहानेबाजियों से इतर देखा जाए तो भाजपा के साथ लोकसभा चुनाव लड़ना आरएलडी की प्राथमिकता रही है। वर्षवार आंकड़े यही बताते हैं। खैर, पश्चिमी उत्तर प्रदेश की सियासत में आरएलडी की भूमिका रहती है। अब जयंत की नई भूमिका के बाद किसानों की भूमिका पर सबकी नजर रहेगी। लेकिन चवन्नी तो आखिर पलट ही गई।

खुल गई कलई

झारखंड में हेमंत सोरेन की गिरफ्तारी हुई। चंपई सोरेन के नेतृत्व में सरकार ने सदन में विश्वास मत जीत लिया, लेकिन इसके बाद भाजपा की अंदरूनी कलह सामने आई। भाजपा के एक विधायक और सांसद इस मामले में आपस में भिड़ गए। सांसद निशिकांत दुबे के सोशल मीडिया पोस्ट पर भाजपा विधायक रणधीर सिंह ने सवाल उठाया। उन्होंने आरोप लगाया कि सोशल मीडिया पर दुबे की पोस्ट से यह धारणा बनी कि भाजपा सरकार को गिराने की कोशिश कर रही थी। इतना ही नहीं, उनका कहना है कि निशिकांत दुबे सांसद हैं तो केंद्र की राजनीति करें, वो राज्य में हस्तक्षेप क्यों कर रहे हैं? बवाल इस बात पर हुआ कि निशिकांत दुबे ने कह दिया था कि झामुमो के १८ विधायक भाजपा के संपर्क में हैं। निशिकांत दुबे मीडिया में बने रहने के लिए कुछ न कुछ मसाला सोशल मीडिया पर परोसते रहते हैं। शायद उनकी ही पार्टी के विधायक को यह रास नहीं आ रहा और उन्होंने इसकी सार्वजनिक आलोचना कर दी। इससे यह तो क्लियर हुआ कि अनुशासित पार्टी का दम भरने वाली भाजपा की कलई खुल गई।

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