उमेश गुप्ता/वाराणसी
पर्व-उत्सवों का शहर बनारस बाबा श्रीकाशी विश्वनाथ का तिलकोत्सव, विवाह और गौना की रस्म तो निभाता ही है, भोले बाबा के आराध्य प्रभु श्रीराम और श्रीकृष्ण से जुड़े पर्वों को भी सिर माथे लगाता है। यह जुड़ाव श्रीसीताराम विवाह पंचमी पर साफ नजर आता है। इस बार यह तिथि छ दिसंबर को पड़ रही है। इस विशेष उत्सव पर काशी में सियाराम सहित चारों भाइयों की कोहबर की झांकी का दर्शन श्रद्धालुओं को मिलता है। शुक्रवार को मार्गशीर्ष (अगहन) शुक्ल पंचमी तिथि पर रामनगर स्थित जनकपुर मंदिर में श्रीराम विवाह पंचमी की धूम दिखाई दी। चारों भाइयों के सिर सेहरा सजाकर एक ही मंडप में विवाह संपन्न कराया गया। इस अवसर पर 36वीं वाहिनी पीएसी की ओर से राजा श्रीरामचंद्र को गार्ड आफ आनर की सलामी दी जाती है। प्रभु को लड्डू व खाझा का भोग लगाया गया।
काशिराज परिवार की महिला सदस्य उमा बबुनी ने इस ख्यात मंदिर को आकार दिया था। विभोर भक्तजनों ने प्रभु के कोहबर की झांकी को वर्ष 1804 में मंदिर बनाकर संजोया। मंदिर स्थापना से पहले मूर्तियों को तब तक बनवाया गया, जब तक वे मन को भा नहीं गई। जानकार बताते हैं कि चौथी बार बनी प्रतिमाएं मंदिर में स्थापित की गईं। इससे पहले बनीं मूर्तियों को गंगा में विसर्जित कर दिया गया। रामनगर की विश्व प्रसिद्ध रामलीला वर्ष 1806 में शुरू हुई तो राम विवाह से जुड़े प्रसंगों का मंचन होने लगा। तब से यह परंपरा अनवरत चल आ रही है। सीता पंचमी पर आयोजित होने वाले श्री राम विवाह महोत्सव में काशीराज परिवार के सदस्य भी शामिल होते है। इस बार कुंवर अनंत नारायण सिंह के पुत्र ने शिरकत किया।
काशी के अन्य राम जानकी मंदिरों में भी श्री राम सीता जी का विवाह धूमधाम के साथ संपन्न हुआ। इस दौरान भव्य श्री राम बारात भी निकाली गई, जिसमें बाराती के रूप में काशीवासी शामिल हुए।