सामना संवाददाता / मुंबई
महाराष्ट्र की उपराजधानी नागपुर में मोबाइल की लत गंभीर समस्या बनते जा रही है। शहर के विभिन्न मनोचिकित्सक के पास आनेवाले १०० में से छह मरीज को मोबाइल की लत लग चुकी है। मनोचिकित्सक सोसायटी ने इसे भविष्य के लिए चिंताजनक और खतरनाक बताया है। इस समस्या ने चिकित्सकों को भी परेशान कर दिया है।
नागपुर के मेडिकल कॉलेज व अस्पताल के मनोरोग विभाग में प्रतिदिन लगभग १२० मरीज इलाज के लिए आते हैं। इनमें से ६ प्रतिशत लोगों को रात में नींद न आने की शिकायत होती है। इन मरीजों से पूछताछ करने पर पता चला कि उन्हें सोशल मीडिया, रील देखने, वेब सीरीज देखने, देर रात तक गेम खेलने की लत है। उक्त जानकारी मानसोपचार सोसायटी नागपुर ब्रांच के डॉ. मनीष ठाकरे ने दी है। उन्होंने कहा कि मोबाइल की लत से मूड में बदलाव, चिड़चिड़ापन, अनिद्रा, अवसाद और अन्य परिवर्तन हो सकते हैं। इससे व्यक्ति की एकाग्रता पर भी असर पड़ता है। इसलिए व्यक्ति का इलाज करते समय उसकी लत को कम करने के लिए उसके मोबाइल के उपयोग को धीरे-धीरे कम करना होगा। डॉ. मनीष ठाकरे ने यह भी कहा कि मन पर नियंत्रण पाने के लिए कुछ मानसिक रोगों की हल्की दवाइयों का प्रयोग करना पड़ता है।
डॉ. सुधीर महाजन ने कहा कि लत की परिभाषा वर्तमान में लगातार शराब पीने पर लागू होती है, लेकिन वैज्ञानिक तरीके से मोबाइल की लत को मान्यता नहीं दी गई है। इसके अलावा कई माता-पिता की शिकायत होती है कि उनके बच्चे जब पढ़ने बैठते हैं तो दस से पंद्रह मिनट से ज्यादा ध्यान लगाकर नहीं पढ़ते हैं। लेकिन मोबाइल पर वे लगातार २ से ३ घंटे तक बने रहते हैं। चूंकि मोबाइल की स्क्रीन लगातार बदलती रहती है, इसलिए वहां एकाग्रता का कोई संबंध नहीं होता है। लेकिन माता-पिता को बच्चों के मोबाइल, टीवी या किसी अन्य स्क्रीन को देखने पर प्रतिबंध लगाने की आवश्यकता है, ताकि बच्चों को इस गंभीर लत से बचाया जा सके। आजकल बच्चों की ज्यादातर रुचि संगीत सुनने या टीवी पर कुछ देखने में लगती है। लेकिन इसे बदलने के लिए माता-पिता को विशेष प्रयास करने की जरूरत है। डॉ. अभिजीत बनसोड ने कहा कि बच्चों को नशे की लत से लेकर मोबाइल तक से बचाना संभव है। उन्होंने यह भी कहा कि वर्तमान में छोटे परिवार व्यवस्था में भी पारिवारिक अलगाव के कारण किशोरों में अवसाद और आत्महत्या की प्रवृत्ति बढ़ रही है।