रविंद्र मिश्रा
जैसे कोई डॉक्टर किसी मरीज का इलाज करते समय यह नहीं पूछता कि मरीज किस जाति, धर्म का है, वैसे ही हर समाजसेवी को चाहिए कि समाजसेवा करते समय यह भूल जाए कि वह किस की मदद कर रहा है? उसे हमेशा इंसानियत ही नजर आनी चाहिए। बुजुर्ग कहते थे कि पहले घर में दीया जलाओ, फिर मंदिर में जाओ, यानी हम जिस मोहल्ले में पैदा हुए, पले-बढ़े, जिस समाज ने हमें उठने-बैठने का सलीका सिखाया, उस समाज के प्रति भी तो हमारी कोई जिम्मेदारी बनती है। इसी उद्देश्य एवं समाज को मजबूत बनाने के लिए पैâजुल्ला खान ने ‘मेरा मोहल्ला, मेरी जिम्मेदारी’ कार्यक्रम को माध्यम बनाकर समाजसेवा का कार्य करना शुरू किया। साल १९७७ में दक्षिण-मुंबई के डोंगरी इलाके में पैदा हुए फैजुल्ला खान मूलत: हैदराबाद के निवासी हैं, जिनके पूर्वज मुंबई में बस गए थे। पूर्वजों से मिले संस्कारों ने ही फैजुल्ला खान को समाज के लोगों की सेवा करने के लिए प्रेरित किया। लोगों की सेवा करना उनका एक उद्देश्य ही बन गया जो आज भी सतत् जारी है। पढ़ाई पूरी करने के बाद वे पिता के कारोबार से जुड़ गए, फिर भी काम-काज से फुर्सत निकालकर समाजसेवा कार्य में कोई अवरोध नहीं पैदा होने दिया। इसके बाद उन्होंने वाई खान फाउंडेशन की स्थापना कर उसके माध्यम से लोगों की मदद कार्य को शुरू किया। जरूरतमंद छात्रों को लेखन सामग्री, गणवेश आदि की व्यवस्था कर उन्हें आगे की पढ़ाई के लिए प्रेरित किया। बेटियां पढ़-लिख कर आगे बढ़ें, देश का नाम रोशन करें, इसके लिए हर संभव प्रयास फैजुल्ला खान की तरफ से किया जा रहा है। ५,००० मधुमेह मरीजों को दवाइयां मुफ्त में उपलब्ध कराया। ‘मौलाना आजाद विचार मंच’ मुंबई के अध्यक्ष होने के नाते दलितों, शोषितों तथा अल्पसंख्यकों पर होने वाले अन्याय को लेकर समय-समय पर आवाज बुलंद करने का भी काम संस्था के माध्यम से किया। युवाओं में बढ़ रही नशावृत्ति को रोकने के लिए उन्होंने संस्था की ओर से कई उपक्रम चलाए। इस बारे में फैजुल्ला का कहना है कि हमने ५० युवकों को इलाज के लिए नशामुक्ति केंद्र भेजा। इसी तरह देश में फैले कोरोना के चलते जब लोग अपने घरों में कैद हो गए थे, तो उस समय भी हम अपनी संस्था के माध्यम से मुंबई के विभिन्न क्षेत्रों में रहनेवाले लोगों के लिए मुफ्त भोजन की व्यवस्था कराई थी। मनपा तथा सरकारी कर्मचारियों के लिए किट की भी व्यवस्था कराई। १०० से अधिक लोगों को उनके गांव जाने में मदद की। उन्होंने समाज में भाईचारा बढ़ाने के उद्देश्य से ‘एक शाम मुहब्बत के नाम’ कार्यक्रम का आयोजन किया था। इस कार्यक्रम में सभी धर्म गुरुओं को आमंत्रित किया गया था, जहां हजारों की संख्या में हर धर्म, समुदाय के लोग उपस्थित हुए थे। किसी ने ठीक ही कहा है कि एक हाथ मदद का बढ़ाओ यारों, दुनिया अपने आप तुम्हारे पास आएगी। समाजसेवा का यह कार्य ऊपर वाले का आदेश मानकर निरंतर जारी है।